माना जाता है कि हवन, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से। ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के दिल से डर दूर हो
जाता है। साथ ही उसके रास्ते में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। उस पर
माता की कृपा से कोई संकट नहीं आता।
ऐसे करें कन्या पूजन
नवरात्र में मुख्य रूप से दो से
दस वर्ष की कन्याओं के पैरों के पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में
माना गया है कि एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए। एक वर्ष से
छोटी कन्याओं का पूजन, इसलिए
नहीं करना चाहिए, क्योंकि
वह प्रसाद नहीं खा सकतीं और उन्हें प्रसाद आदि के स्वाद का ज्ञान नहीं होता। पूजन
के दिन कन्याओं पर जल छिड़कर पूजन कर भोजन कराना व भोजन के बाद उनके पैर छूकर
यथाशक्ति दान देना चाहिए।
आयु अनुसार माना गया है कन्याओं
का रूप
नवरात्र में सभी तिथियों को
एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। दो वर्ष की कन्या
(कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या
त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और
परिवार में सुख-समृद्धि आती है।चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी
पूजा से परिवार का कल्याण होता है। जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है।
रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।
छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप
कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की
प्राप्ति होती है।आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से
वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका
पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है और असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं। दस वर्ष की
कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है।
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