धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्र में हर
तिथि पर माता के एक विशेष रूप की पूजा करने से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है।
जानिए नवरात्र में किस दिन देवी के कौन से स्वरूप की पूजा करें-
हिमालय की पुत्री हैं मां शैलपुत्री
शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि यानी पहले दिन मां
शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, देवी का यह नाम
हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता
का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्र
के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।
हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार
का महत्व सर्वप्रथम है। इसलिए इस दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए
माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में
स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है।
स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।
तप की शक्ति का
प्रतीक हैं मां ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि की द्वितिया तिथि पर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
होती है। देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्म शक्ति यानी तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी
आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही, सभी मनोवांछित
कार्य पूर्ण होते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योगशास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।
कष्टों से मुक्ति
दिलाती हैं मां चंद्रघंटामां ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योगशास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।
नवरात्र की तृतीया तिथि यानी तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को
समर्पित है। यह शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का
अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। असुरों के साथ
युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश किया था। नवरात्र के
तीसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। इनकी पूजा से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने
वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती
है।
रोग, शोक दूर करती हैं
मां कूष्मांडा देवी
नवरात्र की चतुर्थी तिथि की प्रमुख देवी मां कूष्मांडा हैं।
देवी कूष्मांडा रोगों को तुरंत नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु
को धन-धान्य और संपदा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। मां दुर्गा
के इस चतुर्थ रूप कूष्मांडा ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया।
इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कूष्मांडा पड़ा।
मां कूष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही, भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।
मां कूष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही, भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।
देवी स्कंदमाता
की पूजा से मिलती है शांति व सुख
नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान
स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से
जानते हैं। स्कंदमाता हमें सीखाती हैं कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर
संग्राम है व हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन की शक्ति मिलती रहे।
इसलिए स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित
होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व
सुख का अनुभव कराती हैं।
भय का नाश करती
हैं देवी कात्यायनी
नवरात्र की षष्ठी तिथि पर आदिशक्ति दुर्गा के कात्यायनी
स्वरूप की पूजा करने का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर
आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती
हैं। नवरात्र के छठे दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। माता कात्यायनी की उपासना
से आज्ञा चक्र जाग्रृति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं। वह इस
लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा
विनष्ट हो जाते हैं।
शत्रुओं का नाश
करती हैं देवी कालरात्रि
महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। मां
कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि की
आराधना के समय भक्त को अपने मन को भानु चक्र जो ललाट अर्थात सिर के मध्य स्थित
करना चाहिए। इस आराधना के फलस्वरूप भानु चक्र की शक्तियां जागृत होती हैं। मां
कालरात्रि की भक्ति से हमारे मन का हर प्रकार का भय नष्ट होता है। जीवन की हर
समस्या को पलभर में हल करने की शक्ति प्राप्त होती है। शत्रुओं का नाश करने वाली मां
कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती है।
मन की शांति
मिलती है मां महागौरी की पूजा से
नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है।
आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। मां महागौरी का रंग अत्यंत
गोरा है, इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। नवरात्र का
आठवां दिन हमारे शरीर का सोम चक्रजागृत करने का दिन है। सोमचक्र उर्ध्व ललाट में
स्थित होता है। श्री महागौरी की आराधना से सोमचक्र जागृत हो जाता है और इस चक्र से
संबंधित सभी शक्तियां श्रद्धालु को प्राप्त हो जाती है। मां महागौरी के प्रसन्न
होने पर भक्तों को सभी सुख स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही, इनकी भक्ति से
हमें मन की शांति भी मिलती है।
सुख-समृद्धि के
लिए करें मां सिद्धिदात्री की पूजा
नवरात्र के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
मां सिद्धिदात्री भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं। अंतिम दिन
भक्तों को पूजा के समय अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र, जो कि हमारे कपाल
के मध्य स्थित होता है, वहां लगाना चाहिए। ऐसा करने पर देवी की कृपा से इस चक्र से
संबंधित शक्तियां स्वत: ही भक्त को प्राप्त हो जाती हैं। सिद्धिदात्री के आशीर्वाद
के बाद श्रद्धालु के लिए कोई कार्य असंभव नहीं रह जाता और उसे सभी सुख-समृद्धि
प्राप्त होती है।
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