Saturday, November 5, 2016

भगवान सूर्य के शिष्य

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान सूर्य की पूजा करने का विधान है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी व्रत के रूप में मनाया जाता है। इस बार ये व्रत 6 नवंबर, रविवार को है। धर्म ग्रंथों में भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा गया है यानी वो देवता जो हमें दिखाई देते हैं। शास्त्रों के अनुसार, सूर्यदेव की उपासना से ज्ञान, प्रसिद्धि, वैभव, ऐश्वर्य व जीवन का हर सुख मिल सकता है। सूर्य षष्ठी व्रत के अवसर पर हम आपको उन देवता, वीरों व महापुरुषों के बारे में बता रहे हैं, जो सूर्यदेव के उपासक रहे हैं। इनकी जानकारी इस प्रकार है-

1.
मय दानव
राक्षसराज रावण के ससुर यानी मंदोदरी के पिता मय दानव भी भगवान सूर्य के उपासक थे। मय दानव की तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उसे काल गणना का विद्वान होने का वरदान दिया था।

सूर्यदेव के प्रतिरूप ने दिया था मय दानव को ज्ञान

सतयुग के अंतिम चरण में मय दानव ने भगवान सूर्य की आराधना की। मय उनसे कोई शक्ति प्राप्त नहीं करना चाहता था, वो सिर्फ उनसे कालगणना और ज्योतिष के रहस्यों का जानना चाहता था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उसकी इच्छा पूरी की, लेकिन सूर्य कहीं ठहर नहीं सकते थे, सो उन्होंने अपने शरीर से एक और पुरुष की उत्पत्ति की और उसे आदेश दिया कि वो मय दानव को कालगणना और ज्योतिष के सारे रहस्यों को समझाए। सूर्य के प्रतिरूप से मिली शिक्षा के बाद मय दानव ने खुद भी ज्योतिष और वास्तु के कई सिद्धांत दिए जो आज भी कारगर हैं। सूर्य के प्रतिपुरुष और मयासुर के बीच की बातचीत को ही सूर्य सिद्धांत का नाम दिया गया।

2. हनुमान
धर्म ग्रंथों के अनुसार, हनुमानजी भगवान शिव के अवतार थे। इनके पिता का नाम केसरी व माता का नाम अंजनी था। हनुमानजी ने सूर्यदेव से ही वेदों व शास्त्रों की विद्या ग्रहण की थी। सूर्यदेव द्वार दी गई शिक्षा से ही हनुमान ज्ञानी व भगवान श्रीराम के परम भक्त हुए।

 हनुमानजी ने ऐसी पाई थी शिक्षा

जब हनुमानजी विद्या ग्रहण करने के योग्य हुए तो माता-पिता ने उन्हें सूर्यदेव के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। हनुमानजी ने जाकर सूर्यदेव से गुरु बनने के लिए प्रार्थना की। तब सूर्यदेव ने कहा कि मैं तो एक क्षण के लिए रूक नहीं सकता और न ही मैं रथ से उतर सकता हूं। ऐसी स्थिति में मैं तुम्हें किस तरह शास्त्रों का ज्ञान दे पाऊंगा।

तब हनुमानजी ने कहा कि आप बिना अपनी गति कम किए ही मुझे शास्त्रों का ज्ञान देते जाईए। मैं इसी अवस्था में आपके साथ चलते हुए विद्या ग्रहण कर लूंगा। सूर्यदेव ने ऐसा ही किया। सूर्यदेव वेद आदि शास्त्रों का रहस्य शीघ्रता से बोलते जाते और हनुमानजी शांत भाव से उसे ग्रहण करते जाते। इस प्रकार सूर्यदेव की कृपा से ही हनुमानजी को ज्ञान की प्राप्ति हुई।

3. भगवान श्रीराम
स्व भगवान श्रीराम भी सूर्यदेव की उपासना करते थे। श्रीराम का जन्म भी सूर्यवंश में हुआ था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सूर्यवंश की स्थापना महाराज इक्ष्वाकु ने की थी। इसी वंश में आगे जाकर राजा सगर, दिलीप, भगीरथ, दशरथ व भगवान श्रीराम हुए।

श्रीराम ने भगाया था मारीच को

त्रेतायुग में जब राक्षसों का उत्पात निरंतर बढ़ रहा था, उस समय ऋषि विश्वामित्र ने विचार किया कि इन राक्षसों का अंत स्वयं भगवान ही करेंगे। यह सोचकर विश्वामित्र राजा दशरथ के पास गए और श्रीराम व लक्ष्मण को अपने साथ ले जाने की आज्ञा मांगी। पिता की आज्ञा मानकर दोनों भाई ऋषि विश्वामित्र के साथ चल दिए।
आश्रम पहुंचने पर श्रीराम ने यज्ञ की रक्षा करने का प्रण किया। श्रीराम से अभय पाकर विश्वामित्र सहित अन्य ऋषि यज्ञ करने लगे। उसी समय मारीच व सुबाहु अन्य राक्षसों के साथ वहां आ गए। श्रीराम ने एक बाण मारकर मारीच को सौ योजन दूर समुद्र के पार फेंक दिया फिर सुबाहु का वध कर दिया।

4. वानरराज बाली
वानरों का राजा बाली भी भगवान सूर्य का उपासक था। वाली प्रतिदिन चार महासागरों पर जाकर भगवान सूर्य की उपासना करता था। वाली यह कार्य इतनी तेजी से करता था कि उसका वेग कोई देख भी नहीं पाता था।

 रावण को भी पराजित किया था बाली ने
एक बार राक्षसराज रावण बाली से युद्ध करने किष्किंधा गया। उस समय बाली संध्या उपासना करने समुद्र तट पर गया हुआ था। रावण युद्ध की इच्छा से समुद्र तट पर चला गया। यहां बाली ने रावण को अपनी कांख में दबाकर कुछ ही देर में चारों महासागर पर जाकर संध्या उपासना कर ली। बाली के पराक्रम को देखकर रावण ने उसे अपना मित्र बना लिया।

5. कर्ण
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण भगवान सूर्य का पुत्र था। वह सूर्यदेव की ही उपासना करता था। कर्ण का जन्म पांडवों की माता कुंती के गर्भ से हुआ था। कर्ण कवच-कुंडल के साथ ही जन्मा था।

 ऐसे हुआ था कर्ण का जन्म
यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक कन्या व वसुदेव नामक पुत्र था। इस कन्या को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन पुत्र कुंतीभोज को गोद दे दिया था। कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा। कुंती का विवाह राजा पाण्डु से हुआ था। जब कुंती बाल्यावस्था में थी, उस समय उसने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी।

सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र दिया, जिससे वह किसी भी देवता का आह्वान कर उससे पुत्र प्राप्त कर सकती थीं। विवाह से पूर्व इस मंत्र की शक्ति देखने के लिए एक दिन कुंती ने सूर्यदेव का आह्वान किया जिसके फलस्वरूप कवच-कुंडल पहने एक पुत्र का जन्म हुआ। लोक-लाज से भय से कुंती ने उस पुत्र को नदी में बहा दिया। वह पुत्र आगे जाकर दानवीर कर्ण के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

6. वराहमिहिर
वराहमिहिर महान ज्योतिषी व खगोलशास्त्री थे। इनका जन्म सन् 499 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह परिवार उज्जैन के निकट कपित्थ (वर्तमान में कायथा) नामक गांव का निवासी था। इनके पिता तथा ये स्वयं भी भगवान सूर्य के उपासक थे।

दिया था सबसे पहले गुरुत्वाकर्षण बल का सिद्धांत
वराहमिहिर उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। वराहमिहिर ने सुदूर देशों की यात्राएं की तथा अनेक सिद्धांत दिए। विज्ञान के इतिहास में वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने बताया कि सभी वस्तुओं का पृथ्वी की ओर आकर्षित होना किसी अज्ञात बल का आभारी है।
सदियों बाद न्यूटन ने इस अज्ञात बल को गुरुत्वाकर्षण बल नाम दिया। इन्होंने तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें वृहज्जातक, वृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका, लिखीं। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए हुए हैं, जो वराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-ravan-s-father-in-law-is-also-student-of-lord-surya-news-hindi-5451960-PHO.html

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