सनातन धर्म के अनुसार, श्राद्ध
पक्ष में परिजनों की मृत्यु तिथि के अनुसार ही श्राद्ध करने का विधान है, लेकिन श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी तिथि को श्राद्ध करने की
मनाही है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया है कि
इस तिथि पर केवल उन परिजनों का ही श्राद्ध करना चाहिए, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
इस तिथि पर अकाल मृत्यु (हत्या, दुर्घटना, आत्महत्या आदि) से मरे पितरों का श्राद्ध करने का ही महत्व है। इस तिथि पर स्वाभाविक रूप से मृत परिजनों का श्राद्ध करने से श्राद्ध करने वाले को अनेक प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उन परिजनों का श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना श्रेष्ठ रहता है।
1.चतुर्दशी तिथि पर
अकाल (हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना) रूप से मृत परिजनों का श्राद्ध करना चाहिए।
2. जिन पितरों की मृत्यु ऊपर लिखे गए कारणों से हुई हो तथा मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं व अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
3. याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार, भी चतुर्दशी तिथि को श्राद्ध नहीं करना चाहिए। इस दिन श्राद्ध करने वाला विवादों में फंस सकता है।
5. महाभारत के अनुसार, जिन पितरों की मृत्यु स्वभाविक
रूप से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर
करने से श्राद्धकर्ता विवादों में घिर जाते हैं। उन्हें शीघ्र ही लड़ाई में जाना
पड़ता है। जवानी में उनके घर के सदस्यों की मृत्यु हो सकती है।
6.चतुर्दशी श्राद्ध के संबंध में ऐसा ही वर्णन कूर्मपुराण में भी मिलता है कि चतुर्दशी को श्राद्ध करने से अयोग्य संतान की प्राप्ति होती है।
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