किसी भी मांगलिक काम, आराधना, अनुष्ठान व काम में सर्वप्रथम
गणेश-पूजा करके उनकी कृपा पाई जाती है। गणेश जी को दूर्वा चढाने की भी मान्यता है।
माना जाता है कि उन्हे दूर्वा चढाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, क्योंकि श्री गणेश को हरियाली बहुत
पंसद है। मगर गणेश जी को दुर्वा यदि मंत्र बोलते हुए चढ़ाई जाए तो बहुत जल्दी शुभ
परिणाम मिलता है।
पौराणिक
कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था। इस दैत्य के कोप से
स्वर्ग और धरती पर त्राही-त्राही मची हुई थी। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को
जिंदा निगल जाता था। दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और
प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने शिवजी से प्रार्थना की
कि वे अनलासुर के आतंक का नाश करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की
प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल श्रीगणेश ही कर सकते हैं।
जब श्रीगणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने
लगी। कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हो रही थी।
तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ
बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन
शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई। जिसके कारण
गणेश जी को दूर्वा चढाने मात्र से ही हर काम पूरे हो जाते है। इसलिए उन्हें यहां
दिए मंत्र बोलकर दूर्वा चढ़ाएं हर मनोकामना पूरी हो जाएगी।
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः
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