सनातन धर्म में पूजा पाठ से जुड़े अनेक रिवाज़ हैं। मगर कुछ
रिवाज़ ऐसे हैं जो वैदिक काल से चले आ रहे हैं। वे सभी लोग पूजा पाठ में विश्वास
रखते हैं,
रोजाना आरती व पूजा
करते हैं उनके लिए यह जानना जरूरी है कि हर पूजन से पहले यह स्वस्ति वाचन करना
चाहिए। यह मंगल पाठ सभी देवी-देवताओं को जाग्रत करता है।
स्वास्तिवाचन का महत्व
स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मंत्र शुभ और शांति के लिए
प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे
हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दुर्वा या कुशा से जल के छींटे
डाले जाते थे व यह माना जाता था कि इससे नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है। स्वस्ति
मंत्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।
स्वस्तिवाचन मंत्र
जगत के कल्याण के लिए, परिवार
के कल्याण के लिए स्वयं के कल्याण के लिए, शुभ
वचन कहना ही स्वस्तिवाचन है। मंत्र बोलना नहीं आने की स्थिति में अपनी भाषा में
शुभ प्रार्थना करके पूजा शुरू करना चाहिए।
ऊं शांति सुशान्ति: सर्वारिष्ट शान्ति भवतु। ऊं
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।
ऊं उमामहेश्वराभ्यां नम:। वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम:। ऊं
शचीपुरन्दराभ्यां नम:।
ऊं मातापितृ चरण कमलभ्यो नम:।
ऊं इष्टदेवाताभ्यो नम:।
ऊं
कुलदेवताभ्यो नम:।
ऊं ग्रामदेवताभ्यो नम:।
ऊं स्थान देवताभ्यो नम:।
ऊं
वास्तुदेवताभ्यो नम:।
ऊं सर्वे देवेभ्यो नम:।
ऊं सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नम:।
ऊं
सिद्धि बुद्धि सहिताय श्रीमन्यहा गणाधिपतये नम:।
ऊं स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
ऊं शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
ऊं शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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