सनातन धर्म में भगवान की पूजा से संबंधित अनेक
नियम बताए गए हैं। उनमें एक नियम ये भी है कि पूजा के पात्र यानी बर्तन तांबे के
होने चाहिए। विद्वानों का मत है कि तांबे से बने बर्तन पूरी तरह से शुद्ध होते हैं, क्योंकि इसे बनाने में किसी अन्य धातु का उपयोग नहीं किया
जाता। इसलिए तांबे के बर्तनों का उपयोग पूजा में करना श्रेष्ठ होता है। इससे जुड़ी
एक कथा का वर्णन वराहपुराण में मिलता है। जो इस प्रकार है-
वराह पुराण के अनुसार, पूर्वकाल में गुडाकेश नाम का एक राक्षस था, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और उस राक्षस से वरदान मांगने को कहा।
गुडाकेश ने भगवान विष्णु से कहा कि- आपके चक्र से मेरी मृत्यु हो और मेरा पूरा शरीर तांबे के रूप में परिवर्तित हो जाए। उस तांबे का उपयोग आपकी पूजा के लिए बनाए गए पात्रों (बर्तन) में हो और ऐसी पूजा से आप प्रसन्न हों। इससे तांबा अत्यंत पवित्र धातु बन जाएगी।
भगवान विष्णु ने गुडाकेश को ये वरदान दे दिया और समय आने पर चक्र से उसके शरीर के टुकड़े कर दिए। गुडाकेश के मांस से तांबा, रक्त से सोना, हड्डियों से चांदी का निर्माण हुआ।
बैक्टीरिया यानी की कीटाणुओं का
हमारे आसपास मौजूद हाने का दावा आयुर्वेद द्वारा आधुनिक विज्ञान से बहुत पहले ही
अपनी रचनाओं में किया गया था। इस बात को साबित करने का सबसे पहला उदाहरण है
आयुर्वेद द्वारा तांबे के बर्तन में पानी पीने का महत्व। मनुष्य के स्वास्थ्य को
महत्वपूर्ण समझते हुए आयुर्वेद ने तांबे के बर्तन में ही पानी पीने की सलाह दी है।
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