मनुस्मृति के एक श्लोक में बताया गया है कि किन लोगों के सामने आ जाने पर
स्वयं मार्ग से हटकर इन्हें पहले जाने देना चाहिए। ये श्लोक तथा इससे जुड़ा लाइफ
मैनेजमेंट इस प्रकार है –
चक्रिणो दशमीस्थस्य रोगिणो भारिणः स्त्रियाः।
स्नातकस्य च राज्ञश्च पन्था देयो वरस्य च।।
स्नातकस्य च राज्ञश्च पन्था देयो वरस्य च।।
अर्थात्- रथ पर सवार व्यक्ति, वृद्ध, रोगी, बोझ
उठाए हुए व्यक्ति, स्त्री, स्नातक, राजा
और वर (दूल्हा)। इन आठों को आगे जाने का मार्ग देना चाहिए और स्वयं एक ओर हट जाना
चाहिए।
1. रथ पर सवार व्यक्ति
यदि
कहीं जाते समय सामने रथ पर सवार कोई व्यक्ति आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर उसे मार्ग
देना चाहिए। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो रथ पर सवार व्यक्ति किसी
ऊंचे राजकीय पद पर हो सकता है या वह राजा के निकट का व्यक्ति भी हो सकता है। मार्ग
न देने की स्थिति में वह आपका नुकसान भी कर सकता है। वतर्मान में रथ का स्थान चार
पहिया वाहनों ने ले लिया है।
2. वृद्ध
अगर रास्ते में कोई
वृद्ध स्त्री या पुरुष आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर उसे पहले मार्ग दे देना चाहिए।
वृद्ध लोग सदैव सम्मान के पात्र होते हैं। उन्हें किसी भी स्थिति में अपमानित नहीं
करना चाहिए। यदि वृद्ध को रास्ता न देते हुए हम पहले उस मार्ग का उपयोग करेंगे तो
यह वृद्ध व्यक्ति का अपमान करने जैसा हो जाएगा। वृद्ध के साथ ऐसा व्यवहार करने के
कारण समाज में हमें भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाएगा।
3. रोगी
रोगी व्यक्ति दया व
स्नेह का पात्र होता है। यदि रास्ते में कोई रोगी सामने आ जाए तो उसे पहले जाने
देना ही शिष्टता है। संभव है रोगी उपचार के लिए जा रहा हो। अगर हम उसे मार्ग न
देते हुए पहले स्वयं रास्ते का उपयोग करेंगे तो हो सकता है रोगी को उपचार मिलने
में देरी हो जाए। उपचार में देरी से रोगी को किसी विकट परिस्थिति का सामना भी करना
पड़ सकता है।
4. बोझ उठाए हुआ व्यक्ति
यदि मार्ग पर एक ही
व्यक्ति के निकलने का स्थान हो और सामने बोझ उठाए हुआ व्यक्ति आ जाए तो पहले उसे
ही जाने देना चाहिए। ऐसा हमें मानवीयता के कारण करना चाहिए। जिस व्यक्ति के सिर या
हाथों में बोझ होता है वह सामान्य स्थिति में खड़े मनुष्य से अधिक कष्ट का अनुभव
कर रहा होता है। ऐसी स्थिति में हमें उसे ही पहले रास्ता देना चाहिए।
5. स्त्री
यदि मार्ग में कोई
स्त्री आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर पहले उसे ही जाने देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि
हिंदू धर्म में स्त्री को बहुत ही सम्माननीय माना गया है। किसी भी तरीके से स्त्री
का अनादर नहीं करना चाहिए। स्त्री को मार्ग न देते हुए स्वयं पहले उस रास्ते का
उपयोग करना स्त्री का अनादर करने जैसा ही है। स्त्री का अनादर करने से धन की देवी
लक्ष्मी व विद्या की देवी सरस्वती दोनों ही रूठ जाती हैं और ऐसा करने वाले के घर
में कभी निवास नहीं करती। इसलिए स्त्री के मार्ग से स्वयं पीछे हटकर उसे ही पहले
जाने देना चाहिए।
6. स्नातक
ब्रह्मचर्य आश्रम में
रहते हुए गुरुकुल में सफलता पूर्वक शिक्षा पूरी करने वाले विद्यार्थी को एक समारोह
में पवित्र जल से स्नान करा कर सम्मानित किया जाता था। इन्हीं विद्वान विद्यार्थी
को स्नातक कहा जाता था। वर्तमान परिदृश्य में स्नातक को वेद व शास्त्रों का ज्ञान
रखने वाला विद्वान माना जा सकता है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वेद-वेदांगों का
संपूर्ण ज्ञान हों और वह सामने आ जाए तो उसे पहले जाने देना चाहिए। क्योंकि ऐसा ही
व्यक्ति समाज में ज्ञान की रोशनी फैलाता है। इसलिए वह हर स्थिति में आदरणीय होता
है।
7. राजा
राजा प्रजा का
पालन-पोषण करने वाला व विपत्तियों से उनकी रक्षा करने वाला होता है। राजा ही अपनी
प्रजा के हित के लिए निर्णय लेता है। राजा हर स्थिति में सम्माननीय होता है। अगर
जिस मार्ग पर आप चल रहे हों, उसी पर राजा भी आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर राजा
को जाने देना चाहिए। ऐसा न करने पर राजा आपको दंड भी दे सकता है। वर्तमान स्थिति
में बड़े अधिकारी या मंत्री को राजा के समान समझा जा सकता है।
8. दूल्हा
मनुस्मृति के अनुसार, दूल्हा यानी जिस
व्यक्ति का विवाह होने जा रहा हो, वह आपके मार्ग में आ जाए तो पहले उसे ही जाने
देना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि दूल्हा बना व्यक्ति भगवान शिव का स्वरूप होता है, इसलिए वह भी सम्मान
करने योग्य कहा गया है।
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