सनातन धर्म के
अनुसार अनेक परंपराएं ऐसी हैं। जिनको अधिकांश धर्म मानने वाले फॉलो करते हैं, लेकिन इनका सही कारण नहीं
जानते। आइए आज हम आपको बताते हैं कुछ ऐसी ही परंपराओं और उनसे जुड़े असली कारणों के
बारे में...
1. मंदिर
में दर्शन करने के बाद परिक्रमा करना जरूरी क्यों?
भगवान की परिक्रमा का धार्मिक
महत्व तो है ही, विद्वानों का मत है भगवान की
परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है, सुरक्षा
प्राप्त होती है और पापों का नाश होता है। परिक्रमा करने का व्यवहारिक और
वैज्ञानिक पक्ष वास्तु और वातावरण में फैली सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है।
मंदिर में भगवान की प्रतिमा के
चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का घेरा होता है, यह
मंत्रों के उच्चारण, शंख, घंटाल आदि की ध्वनियों से
निर्मित होता है। हम भगवान कि प्रतिमा की परिक्रमा इसलिए करते हैं ताकि हम भी
थोड़ी देर के लिए इस सकारात्मक ऊर्जा के बीच रहें और यह हम पर अपना असर डाले।इसका
एक महत्व यह भी है कि भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब पैदा हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान
सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है।
2. आरती
के बाद चरणामृत क्यों लेना चाहिए?
हिंदू धर्म में आरती के बाद भगवान का चरणामृत दिया जाता है। इस शब्द का अर्थ है भगवान के चरणों से प्राप्त अमृत। इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है व मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। इसे अमृत के समान माना गया है। कहते हैं भगवान श्रीराम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया, बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया। चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है।चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को खत्म करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है, जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि चरणामृत मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
हिंदू धर्म में आरती के बाद भगवान का चरणामृत दिया जाता है। इस शब्द का अर्थ है भगवान के चरणों से प्राप्त अमृत। इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है व मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। इसे अमृत के समान माना गया है। कहते हैं भगवान श्रीराम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया, बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया। चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है।चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को खत्म करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है, जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि चरणामृत मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
3. चतुर्थी
पर चंद्रमा की पूजा क्यों की जाती है?
चतुर्थी स्त्रियों के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण पर्व व अवसर होता है। पत्नियों की ऐसी दृढ़ मान्यता है कि चंद्रमा की पूजा करने और कृपा प्राप्त करने से उनके पति की उम्र व सुख-समृद्धि में इजाफा होता है, लेकिन इस परंपरा को बनाए जाने के पीछे वैज्ञानिक कारण क्या है ये बहुत कम लोग जानते हैं। दरअसल, चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होने के कारण, पृथ्वीवासियों को बड़ी गहराई से प्रभावित करता है।
चतुर्थी स्त्रियों के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण पर्व व अवसर होता है। पत्नियों की ऐसी दृढ़ मान्यता है कि चंद्रमा की पूजा करने और कृपा प्राप्त करने से उनके पति की उम्र व सुख-समृद्धि में इजाफा होता है, लेकिन इस परंपरा को बनाए जाने के पीछे वैज्ञानिक कारण क्या है ये बहुत कम लोग जानते हैं। दरअसल, चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होने के कारण, पृथ्वीवासियों को बड़ी गहराई से प्रभावित करता है।
कहते हैं चंद्रमा से निकलने वाली सूक्ष्म विकिरण इंसान को शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर असर डालती हैं।चौथ या महीने की अन्य चतुर्थी के दिन चंद्रमा की कलाओं का प्रभाव विशेष असर दिखाता है। इसलिए चतुर्थी के दिन की पूजा से विशेष लाभ होता है।चंद्रमा को जल चढ़ाते समय, चंद्रमा की किरणें पानी से परावर्तित होकर साधक को आश्चर्यजनक मनोबल प्रदान करती हैं। ज्योतिष के अनुसार चंद्र की पूजा जरूर करना चाहिए, क्योंकि चंद्रमा को मन का कारक या देवता होने के कारण मन को सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास से भर देता है।
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