परिवर्तन
संसार का नियम है। समय के साथ काफी सारी चीजें बदल जाती हैं। यही कारण है कि
परंपराओं में भी समय के साथ बदलाव आता है या उन्हें भूला दिया जाता है। आइए जानते
हैं कुछ ऐसी ही प्राचीन परंपराओं के बारे में, जिनका
पालन आजकल कम ही लोग करते हैं, लेकिन
ये परंपराएं स्वास्थ के लिए बेहद फायदेमंद हैं….
तुलसी
और पंचामृत
रोजाना तुलसी और पंचामृत का सेवन करना चाहिए। इसलिए प्राचीनकालीन घरों के आंगन में तुलसी का पौधा जरूर होता था और भगवान को पंचामृत चढ़ाया जाता था। ऐसा करने से कैंसर सहित कई बड़े रोगों से बचाव होता था।
रोजाना तुलसी और पंचामृत का सेवन करना चाहिए। इसलिए प्राचीनकालीन घरों के आंगन में तुलसी का पौधा जरूर होता था और भगवान को पंचामृत चढ़ाया जाता था। ऐसा करने से कैंसर सहित कई बड़े रोगों से बचाव होता था।
पीपल को जल चढ़ाना
पीपल का पेड़ सबसे ज्यादाऑक्सीजन पैदा करता है। जहां अन्य पेड़-पौधे रात के समय में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं, वहीं पीपल का पेड़ रात में भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मुक्त करता है। इसी वजह से बड़े-बुजुर्गों ने इसके संरक्षण पर विशेष बल दिया है।पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से शरीर को शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है।.
पीपल का पेड़ सबसे ज्यादाऑक्सीजन पैदा करता है। जहां अन्य पेड़-पौधे रात के समय में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं, वहीं पीपल का पेड़ रात में भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मुक्त करता है। इसी वजह से बड़े-बुजुर्गों ने इसके संरक्षण पर विशेष बल दिया है।पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से शरीर को शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है।.
सुरमा
लगाना
सुरमा एक रत्न है जो काले रंग का होता है। सुरमा रत्न का उपयोग नेत्रांजन बनाने में होता है। सुरमा दो तरह का होता है- एक सफेद और दूसरा काला। काले सुरमे का काजल बनता है। सुरमा लगाने का प्रचलन मध्य एशिया में भी रहा है और भारत में भी। दोनों ही तरह के सुरमा लगाने से जहां व्यक्ति किसी की नजर से बच जाता है, वहीं उसकी आंखें भी लंबी उम्र तक स्वस्थ रहती हैं।
सुरमा एक रत्न है जो काले रंग का होता है। सुरमा रत्न का उपयोग नेत्रांजन बनाने में होता है। सुरमा दो तरह का होता है- एक सफेद और दूसरा काला। काले सुरमे का काजल बनता है। सुरमा लगाने का प्रचलन मध्य एशिया में भी रहा है और भारत में भी। दोनों ही तरह के सुरमा लगाने से जहां व्यक्ति किसी की नजर से बच जाता है, वहीं उसकी आंखें भी लंबी उम्र तक स्वस्थ रहती हैं।
गुड़-चने
व सत्तू का सेवन
प्राचीनकाल में लोग जब तीर्थ, भ्रमण या अन्य कहीं दूसरे गांव जाते थे तो साथ में गुड़, चना या सत्तू रखकर ले जाते थे। घर में भी अक्सर लोग इसका सेवन करते थे। दरअसल, सत्तू पाचन में हल्का होता है व शरीर को छरहरा बना देता है।
प्राचीनकाल में लोग जब तीर्थ, भ्रमण या अन्य कहीं दूसरे गांव जाते थे तो साथ में गुड़, चना या सत्तू रखकर ले जाते थे। घर में भी अक्सर लोग इसका सेवन करते थे। दरअसल, सत्तू पाचन में हल्का होता है व शरीर को छरहरा बना देता है।
नीम की दातून
यह परंपरा अब कुछ गांवों में ही प्रचलित है कि नीम की छाल
या डंडी तोड़कर उससे दांत साफ किए जाएं। कभी-कभी 4 बूंद
सरसों के तेल में नमक मिलाकर भी दांत साफ किए जाते थे। इन दोनों ही कामों को करने
से दांत मजबूत व पेट साफ रहता था। साथ ही, इसके
ज्योतिषीय फायदे भी थे। वैज्ञानिक कहते हैं कि दांतों और मसूड़ों के मजबूत बने
रहने से आंखें, कान और दिमाग भी स्वस्थ रहते
हैं।
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