काम कितना भी मुश्किल क्यों ना हो, यदि किसी व्यक्ति के
पास ‘बुद्धि और बल’ है तो कामयाबी आसानी से प्राप्त की जा सकती है।
बुद्धि और बल में निपुणता का नाम ही योग्यता है। इन दोनों गुणों से ही व्यक्ति
योग्य बनता है। समय अनुसार इन दोनों गुणों का उपयोग करते हुए किसी बड़े शत्रु पर
भी विजय प्राप्त की जा सकती है।
सुंदरकांड के प्रसंग से समझिए बुद्धि
और बल का महत्व...
सुंदरकांड
में हनुमानजी ने मां सीता से भोजन मांगा था। तब सीताजी ने हनुमानजी से कहा अशोक
वाटिका में जाकर फल खा लो। सीताजी ने कहा-
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी।
परम सुभट
रजनीचर भारी।।
सीताजी ने कहा हे बेटा! सुनो, बड़े भारी योद्धा राक्षस इस वन की रखवाली करते हैं।
सीताजी ने कहा हे बेटा! सुनो, बड़े भारी योद्धा राक्षस इस वन की रखवाली करते हैं।
इस बात
पर हनुमानजी का जवाब था-
तिन कर
भय माता मोहि नाहीं।
जौं
तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।।
हे माता!
यदि आप मन में सुख मानें, प्रसन्न
होकर आज्ञा दें तो मुझे उनका भय बिल्कुल नहीं है।
जिस
आत्मविश्वास से हनुमानजी सीताजी को कह रहे थे, एक क्षण
के लिए सीताजी को लगा कि कहीं यह अतिशयोक्ति तो नहीं है। फिर सीताजी को हनुमानजी
से किया हुआ वार्तालाप याद आया।
सीताजी
जानती थीं कि अशोक वाटिका में प्रवेश करने का अर्थ है, सीधे रावण तक पहुंचना और रावण के सामने केवल बल से काम नहीं
चलेगा, बल के साथ-साथ बुद्धि भी चाहिए। वे हनुमानजी के भीतर दोनों
को संयुक्त रूप से देख चुकी थीं।
हनुमानजी
ने बुद्धि का प्रयोग करते हुए ही लंका प्रवेश किया और सीता की खोज की थी। इस दौरान
उन्होंने बल का प्रयोग करते हुए लंका की रखवाली करने वाली लंकिनी पर भी विजय
प्राप्त की थी।
देखि
बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति
चरन हृदय धरि तात मधुर फल खाहु।।
हनुमानजी
को बुद्धि और बल में निपुण देखकर जानकीजी ने कहा - जाओ। हे तात! श्रीरघुनाथजी के
चरणों को हृदय में धारण करके मीठे फल खाओ।
इस
प्रसंग में हनुमानजी के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि जीवन तभी सुंदर है, जब हमारे पास बुद्धि और बल दोनों हों।
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