Thursday, November 30, 2017

गीता जयंती ,गीता- जन्म-मरण से मुक्ति दिलाता है ये ग्रंथ

हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध शुरू होने से पहले योगीराज भगवान श्रीकृष्ण ने 18 अक्षौहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को छंद रूप में यानी गाकर उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहते हैं। चूंकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे, अत: इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता पड़ा। भगवद्गीता में कई विद्याओं का वर्णन है, जिनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या। माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है।

साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है। ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहंकार और गर्व के विकार से बचता है। ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है। गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है। गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है।

स्वयं भगवान ने दिया है गीता का उपदेश
विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती। हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है, क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं, जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है-

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।
श्रीगीताजी की उत्पत्ति धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुई थी। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है।
इसके छोटे-छोटे 18 अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश हैं, जो मनुष्य मात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं।

निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है गीता


महाभारत के अनुसार, जब कौरवों व पांडवों में युद्ध प्रारंभ होने वाला था। तब अर्जुन ने कौरवों के साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि श्रेष्ठ महानुभावों को देखकर तथा उनके प्रति स्नेह होने पर युद्ध करने से इंकार कर दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, जिसे सुन अर्जुन ने न सिर्फ महाभारत युद्ध में भाग लिया अपितु उसे निर्णायक स्थिति तक पहुंचाया। गीता को आज भी हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। गीता के माध्यम से ही श्रीकृष्ण ने संसार को धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा दी। वास्तव में यह उपदेश भगवान श्रीकृष्ण कलयुग के मापदंड को ध्यान में रखते हुए ही दिया है। कुछ लोग गीता को वैराग्य का ग्रंथ समझते हैं जबकि गीता के उपदेश में जिस वैराग्य का वर्णन किया गया है वह एक कर्मयोगी का है। कर्म भी ऐसा हो जिसमें फल की इच्छा न हो अर्थात निष्काम कर्म।
गीता में यह कहा गया है कि अपने धर्म का पालन करना ही निष्काम योग है। इसका सीधा का अर्थ है कि आप जो भी कार्य करें, पूरी तरह मन लगाकर तन्मयता से करें। फल की इच्छा न करें। अगर फल की अभिलाषा से कोई कार्य करेंगे तो वह सकाम कर्म कहलाएगा। गीता का उपदेश कर्मविहिन वैराग्य या निराशा से युक्त भक्ति में डूबना नहीं सिखाता, वह तो सदैव निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देता है।

Tuesday, November 28, 2017

अचानक ये 8 लोग सामने आ जाएं तो स्वयं पीछे हट जाना चाहिए

मनुस्मृति के एक श्लोक में बताया गया है कि किन लोगों के सामने आ जाने पर स्वयं मार्ग से हटकर इन्हें पहले जाने देना चाहिए। ये श्लोक तथा इससे जुड़ा लाइफ मैनेजमेंट इस प्रकार है –

चक्रिणो दशमीस्थस्य रोगिणो भारिणः स्त्रियाः।
स्नातकस्य च राज्ञश्च पन्था देयो वरस्य च।।
अर्थात्- रथ पर सवार व्यक्ति, वृद्ध, रोगी, बोझ उठाए हुए व्यक्ति, स्त्री, स्नातक, राजा और वर (दूल्हा)। इन आठों को आगे जाने का मार्ग देना चाहिए और स्वयं एक ओर हट जाना चाहिए।

1. 
रथ पर सवार व्यक्ति
यदि कहीं जाते समय सामने रथ पर सवार कोई व्यक्ति आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर उसे मार्ग देना चाहिए। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो रथ पर सवार व्यक्ति किसी ऊंचे राजकीय पद पर हो सकता है या वह राजा के निकट का व्यक्ति भी हो सकता है। मार्ग न देने की स्थिति में वह आपका नुकसान भी कर सकता है। वतर्मान में रथ का स्थान चार पहिया वाहनों ने ले लिया है।

2. वृद्ध

अगर रास्ते में कोई वृद्ध स्त्री या पुरुष आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर उसे पहले मार्ग दे देना चाहिए। वृद्ध लोग सदैव सम्मान के पात्र होते हैं। उन्हें किसी भी स्थिति में अपमानित नहीं करना चाहिए। यदि वृद्ध को रास्ता न देते हुए हम पहले उस मार्ग का उपयोग करेंगे तो यह वृद्ध व्यक्ति का अपमान करने जैसा हो जाएगा। वृद्ध के साथ ऐसा व्यवहार करने के कारण समाज में हमें भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाएगा।

3. रोगी

रोगी व्यक्ति दया व स्नेह का पात्र होता है। यदि रास्ते में कोई रोगी सामने आ जाए तो उसे पहले जाने देना ही शिष्टता है। संभव है रोगी उपचार के लिए जा रहा हो। अगर हम उसे मार्ग न देते हुए पहले स्वयं रास्ते का उपयोग करेंगे तो हो सकता है रोगी को उपचार मिलने में देरी हो जाए। उपचार में देरी से रोगी को किसी विकट परिस्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है।

4. बोझ उठाए हुआ व्यक्ति

यदि मार्ग पर एक ही व्यक्ति के निकलने का स्थान हो और सामने बोझ उठाए हुआ व्यक्ति आ जाए तो पहले उसे ही जाने देना चाहिए। ऐसा हमें मानवीयता के कारण करना चाहिए। जिस व्यक्ति के सिर या हाथों में बोझ होता है वह सामान्य स्थिति में खड़े मनुष्य से अधिक कष्ट का अनुभव कर रहा होता है। ऐसी स्थिति में हमें उसे ही पहले रास्ता देना चाहिए।

5. स्त्री

यदि मार्ग में कोई स्त्री आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर पहले उसे ही जाने देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि हिंदू धर्म में स्त्री को बहुत ही सम्माननीय माना गया है। किसी भी तरीके से स्त्री का अनादर नहीं करना चाहिए। स्त्री को मार्ग न देते हुए स्वयं पहले उस रास्ते का उपयोग करना स्त्री का अनादर करने जैसा ही है। स्त्री का अनादर करने से धन की देवी लक्ष्मी व विद्या की देवी सरस्वती दोनों ही रूठ जाती हैं और ऐसा करने वाले के घर में कभी निवास नहीं करती। इसलिए स्त्री के मार्ग से स्वयं पीछे हटकर उसे ही पहले जाने देना चाहिए।

6. स्नातक

ब्रह्मचर्य आश्रम में रहते हुए गुरुकुल में सफलता पूर्वक शिक्षा पूरी करने वाले विद्यार्थी को एक समारोह में पवित्र जल से स्नान करा कर सम्मानित किया जाता था। इन्हीं विद्वान विद्यार्थी को स्नातक कहा जाता था। वर्तमान परिदृश्य में स्नातक को वेद व शास्त्रों का ज्ञान रखने वाला विद्वान माना जा सकता है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वेद-वेदांगों का संपूर्ण ज्ञान हों और वह सामने आ जाए तो उसे पहले जाने देना चाहिए। क्योंकि ऐसा ही व्यक्ति समाज में ज्ञान की रोशनी फैलाता है। इसलिए वह हर स्थिति में आदरणीय होता है।

7. राजा

राजा प्रजा का पालन-पोषण करने वाला व विपत्तियों से उनकी रक्षा करने वाला होता है। राजा ही अपनी प्रजा के हित के लिए निर्णय लेता है। राजा हर स्थिति में सम्माननीय होता है। अगर जिस मार्ग पर आप चल रहे हों, उसी पर राजा भी आ जाए तो स्वयं पीछे हटकर राजा को जाने देना चाहिए। ऐसा न करने पर राजा आपको दंड भी दे सकता है। वर्तमान स्थिति में बड़े अधिकारी या मंत्री को राजा के समान समझा जा सकता है।

8. दूल्हा

मनुस्मृति के अनुसार, दूल्हा यानी जिस व्यक्ति का विवाह होने जा रहा हो, वह आपके मार्ग में आ जाए तो पहले उसे ही जाने देना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि दूल्हा बना व्यक्ति भगवान शिव का स्वरूप होता है, इसलिए वह भी सम्मान करने योग्य कहा गया है।

Monday, November 27, 2017

विष्णु पुराण में बताए गए ये 4 काम किसी को भी जल्दी खत्म कर लेना चाहिए

श्रेष्ठ जीवन के लिए विष्णु पुराण में ऐसी बातें बताई गई हैं, जिनका ध्यान रखने पर कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। जो लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं, वे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का भी सामना करते हैं। यहां जानिए विष्णु पुराण में बताए गए 4 ऐसे काम, जो जल्दी खत्म कर लेना चाहिए।

पहला काम है नहाना
नहाना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, लेकिन ज्यादा देर तक नहाने से सर्दी-जुकाम, बुखार हो सकता है। नहाने का काम जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी खत्म कर लेना चाहिए। सुबह-सुबह नहाना श्रेष्ठ माना गया है और सुबह के समय वातावरण में ठंडक होती है, इसीलिए सुबह-सुबह ज्यादा देर तक पानी में रहने से बीमारी हो सकती है।

दूसरा और तीसरा काम है सोना और जागना
अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए जरूरी है कि रोज पर्याप्त नींद ली जाए। सोने का समय बहुत कम या ज्यादा होने पर स्वास्थ्य बिगड़ सकता है, मोटापा बढ़ सकता है। कई लोगों के साथ ये समस्या होती है कि उन्हें जल्दी नींद नहीं आ पाती है, करवट बदलते रहते हैं और फिर देर रात नींद आती है। सोने में भी अधिक समय नहीं लगाना चाहिए। जल्दी नींद आ जाए, इसके लिए रोज ध्यान और योग करना चाहिए। कुछ देर शारीरिक परिश्रम भी करना चाहिए।
जागने के लिए सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त श्रेष्ठ बताया गया है। इस समय वातावरण साफ और पवित्र रहता है जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। रोज जल्दी जागकर ध्यान-योग करने और कुछ देर टहलने से शरीर निरोगी रहता है। जल्दी जागने के लिए रात को जल्दी सोना जरूरी है। इसीलिए इन दोनों कामों भी हमें अधिक समय नहीं लगाना चाहिए।

चौथा काम है व्यायाम
व्यायाम से शरीर हष्ट-पुष्ट रहता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, मौसमी बीमारियों से सुरक्षा होती है, लेकिन व्यायाम ज्यादा देर तक नहीं करना चाहिए। अधिक समय तक व्यायाम करने से थकान हो सकती है, शरीर में दर्द हो सकता है। इसीलिए व्यायाम उतने ही समय तक करना चाहिए, जितना हमारा शरीर सहन कर सके।

Saturday, November 25, 2017

एक चमत्कारी शिवलिंग, जिसका रहस्य कोई नहीं जान पाया

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मरौदा गांव में घने जंगल के बीच एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो भूतेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग माना जाता है। इस शिवलिंग से जुड़ा एक बहुत ही अनोखा रहस्य है, जो इसे और भी खास बनाता है। रहस्य की बात यह है कि हर साल इस शिवलिंग की लम्बाई चमत्कारिक रूप से बढ़ रही है।

हर साल शिवलिंग बढ़ता है 6-8 इंच
इस शिवलिंग के प्रति लोगों के मन में बहुत आस्था और विश्वास है। उसका सबसे बड़ा कारण यहां होने वाला चमत्कार। इस शिवलिंग की खासियत है कि ये शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है। यह जमीन से लगभग 18 फीट ऊंचा एवं 20 फीट गोलाकार है। प्रतिवर्ष इसकी ऊंचाई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ़ रही है।

ऐसे हुई थीं शिवलिंग की स्थापना

इस शिवलिंग के अस्तित्व में आने को लेकर एक कहानी प्रसिद्ध है। कहानी के अनुसार, सैंकड़ों साल पहले यहां एक शोभा सिंह नाम का व्यक्ति रहता था। वह रोज शाम को अपने खेतों को देखने जाता था, तभी उसे खेत से कुछ ही दूरी पर शिवलिंग की आकृति के एक टीले से सांड और शेर जैसे जानवरों की आवाज सुनाई दी।
जब शोभा सिंह ने यह बात गांव वालों को बताई तो उन्होंने इन जानवरों की खोज करने की कोशिश की, लेकिन दूर-दूर तक कोई जानवर नहीं मिला। तब इस टीले के प्रति लोगों की आस्था बढ़ने लगी और वे इसकी पूजा शिवलिंग के रूप में करने लगे।
गांव को लोगों के अनुसार, पहले यह शिवलिंग बहुत ही छोटा था, लेकिन समय के साथ-साथ इसकी लम्बाई और गोलाई बढ़ती रही, जो आज भी जारी है।

कई पुराणों में मिलता है इसका उल्लेख

यहीं स्थान भुतेश्वरनाथ, भकुरा महादेव के नाम से जाना जाता है। इस शिवलिंग का उल्लेख कई पुराणों में भी पाया जाता है। पुराणों के अनुसार, यह का एक अनोखा और महान शिवलिंग है। जिसकी पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

घने जगल में स्थापित हैं शिवलिंग

यह शिवलिंग घने जगल में स्थापित है, लेकिन फिर भी यहां आने वाले भक्तों की संख्या बहुत ज्यादा है। इस शिवलिंग से जुड़े चमत्कार की वजह से यह कई लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। कई भक्त तो हर साल शिवलिंग की बढ़ती लम्बाई के चमत्कार को देखने जाते है। कहा जाता है कि यहां पर की गई प्रार्थना जरुर पूरी होती है।

Friday, November 24, 2017

पति-पत्नी को तीर्थ यात्रा व पूजा-पाठ साथ ही करना चाहिए।

पति-पत्नी के मुख्य कर्तव्य में से एक है कि सभी पूजन कार्य दोनों एक साथ ही करेंगे। पति या पत्नी अकेले पूजा-अर्चना करते हैं तो उसका अधिक महत्व नहीं माना गया है। शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी एक साथ पूजादि कर्म करते हैं तो उसका पुण्य कई जन्मों तक साथ रहता है और पुराने पापों का नाश होता है।

पति-पत्नी के मुख्य कर्तव्य में से एक है कि सभी पूजन कार्य दोनों एक साथ ही करेंगे। पति या पत्नी अकेले पूजा-अर्चना करते हैं तो उसका अधिक महत्व नहीं माना गया है। शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी एक साथ पूजादि कर्म करते हैं तो उसका पुण्य कई जन्मों तक साथ रहता है और पुराने पापों का नाश होता है।

पति के हर कार्य में पत्नी हिस्सेदार होती है। शास्त्रों में इसी वजह सभी पूजा कर्म दोनों के लिए एक साथ करने का नियम बनाया गया है।दोनों एक साथ तीर्थ यात्रा करते हैं तो इससे पति-पत्नी को पुण्य तो मिलता है साथ ही परस्पर प्रेम भी बढ़ता है। स्त्री को पुरुष की शक्ति माना जाता है इसी वजह से सभी देवी-देवताओं के नाम के पहले उनकी शक्ति का नाम लिया जाता है जैसे सीताराम, राधाकृष्ण। इसी वजह से पत्नी के बिना पति का कोई भी धार्मिक कर्म अधूरा ही माना जाता है। इसीलिए पति-पत्नी को तीर्थ यात्रा व पूजा-पाठ साथ ही करना चाहिए।

Thursday, November 23, 2017

भगवान श्रीगणेश इस तरह पूजन करने से जल्दी प्रसन्न

शिवपुराण के अनुसार शिवजी के वरदान से गणेशजी की पूजा सभी देवताओं में सबसे पहले की जाती है। यहां जानिए गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए किन मंत्रों का जाप करना चाहिए।
रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं। पीले वस्त्र धारण करें। भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा को पवित्र जल से स्नान कराएं। इसके बाद सिंदूर, पीला चंदन, पीले फूल, अक्षत, जनेऊ, पीला रेशमी वस्त्र, दूर्वा और लड्डू का प्रसाद अर्पित करें। श्रीगणेश की पूजन-आरती करें। पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। अगर आप चाहें तो इन 11 मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं...

ऊँ गणाधिपाय नम:
ऊँ उमापुत्राय नम:
ऊँ विघ्ननाशनाय नम:
ऊँ विनायकाय नम:
ऊँ ईशपुत्राय नम:
ऊँ सर्वसिद्धप्रदाय नम:
ऊँ एकदन्ताय नम:
ऊँ इभवक्त्राय नम:
ऊँ मूषकवाहनाय नम:
ऊँ कुमारगुरवे नम:
इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश जल्दी प्रसन्न होते हैं।