Friday, September 29, 2017

कन्या पूजन

माना जाता है कि हवन, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से। ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के दिल से डर दूर हो जाता है। साथ ही उसके रास्ते में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। उस पर माता की कृपा से कोई संकट नहीं आता।

ऐसे करें कन्या पूजन
नवरात्र में मुख्य रूप से दो से दस वर्ष की कन्याओं के पैरों के पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में माना गया है कि एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए। एक वर्ष से छोटी कन्याओं का पूजन, इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह प्रसाद नहीं खा सकतीं और उन्हें प्रसाद आदि के स्वाद का ज्ञान नहीं होता। पूजन के दिन कन्याओं पर जल छिड़कर पूजन कर भोजन कराना व भोजन के बाद उनके पैर छूकर यथाशक्ति दान देना चाहिए।

आयु अनुसार माना गया है कन्याओं का रूप
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।

छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।आठ वर्ष की कन्या शाम्‍भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है और असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है।

Wednesday, September 27, 2017

नवरात्र स्पेशल: देवी के 4 अनोखे मंदिर, हर किसी से जुड़ा है कोई न कोई चमत्कार

नवरात्र में सभी जगह माता की पूजा-अर्चना की जा रही है। आज हम आपको माता के कुछ ऐसे प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो की अपने चमत्कारों और इतिहास के लिए प्रसिद्ध हैं।

करणी माता मंदिर (राजस्थान)
राजस्थान के प्रसिद्ध शहर बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर एक छोटा से गांव में देवी एक अद्भुत मंदिर है। यह मंदिर जोधपुर के सड़क मार्ग पर ही पड़ता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यहां पर दिया जाने वाले प्रसाद है। इस मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में चूहों का झूठा प्रसाद दिया जाता है। इस मंदिर में करणी माता के साथ-साथ हजारों चूहे भी रहते हैं। जिस वजह से इसे चूहे वाला मंदिर भी कहा जाता है।

माना जाता है कि करणी माता साक्षात देवी दुर्गा का ही अवतार है। यहां के निवासियों का कहना है कि कई हजार साल पहले इसी जगह की एक गुफा में देवी दुर्गा ने करणी अवतार लिया था और कई सालों तक उसी गुफा में ध्यान करती रहीं।
मंदिर के परिसर में कई काले और सफेद चूहे घूमते रहते हैं। यहां की एक मान्यता है कि अगर किसी भक्त को मंदिर में सफेद चूहे के दर्शन हो जाते हैं तो उसकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।

बगलामुखी माता मंदिर (मध्यप्रदेश)
तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता हैं। उनमें से एक हैं बगलामुखी। माता बगलामुखी के पूरे विश्व में केवल तीन ही प्राचीन मंदिर माने जाते हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। जिनमें से एक है दतिया (मध्यप्रदेश) में, दूसरा है कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) और तीसरा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में।

मध्यप्रदेश के शाजापुर नामक जिले में नलखेड़ा नाम की एक छोटी सी जगह है। यहां पर माता बगलामुखी का एक सुंदर मंदिर है, जो की तांत्रिक क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जो भी मनुष्य अपनी इच्छा पूरी करने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ बगलमुखी माता की पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

इस मंदिर में माता बगलामुखी के साथ-साथ माता लक्ष्मी, भगवान कृष्ण, भगवान हनुमान, भैरव देव और देवी सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर में बिल्वपत्र, चंपा, सफेद आँकड़ा, आँवला, नीम एवं पीपल के पेड़ एक साथ स्थित हैं। इसके आसपास सुंदर और हरा-भरा बगीचा बना हुआ है। नवरात्रि में यहां पर भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

सिमसा माता मंदिर (हिमाचल प्रदेश)
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के लड़-भड़ोल तहसील के सिमस नामक खूबसूरत जगह पर माता सिमसा का एक चमत्कारी मंदिर है। यह एक ऐसा मंदिर है, जहां माता सिमसा हर रोज अपना चमत्कार दिखाती है। माता सिमसा या देवी सिमसा को संतान-दात्री के नाम से भी जाना जाता है, क्यों इस मंदिर में प्रार्थना करने से निःसंतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है। हर वर्ष यहां कई नि:संतान दंपति संतान पाने की इच्छा ले कर माता सिमसा के दरबार में आते हैं।

नवरात्र में नि:संतान महिलाएं माता सिमसा के मंदिर में डेरा डालती हैं और दिन रात मंदिर के फर्श पर सोती हैं। कहा जाता है कि जो महिलाएं माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा लेकर से मंदिर में आती है, माता सिमसा उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

तनोट माता मंदिर (राजस्थान)
जैसलमेर से लगभग 130 कि.मी. की दूरी पर बना माता तनोट का मंदिर भारत-पाकिस्तान की बार्डर के पास ही है। इस मंदिर कई भक्तों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था का कारण 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान के युद्ध में हुआ देवी का चमत्कार है।
1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने इस क्षेत्र में कई बम फेंके। सभी बम माता के मंदिर के आस-पास वाले क्षेत्र में ही फेंके गए थे। इस युद्ध के दौरान माता ने अपना चमत्कार दिखाया और यहां फेंके गए बमों में से एक भी बम माता के इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया। साथ ही कई बम तो फटे तक नहीं। इस चमत्कार को देखकर लोगों को माता पर और भी आस्था बढ़ गई।

तनोट माता को हिंगलाज माता का ही एक रूप है। हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है। हर साल आश्विन और चै‍त्र नवरात्र में यहां माता को प्रसन्न करने के लिए विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

Tuesday, September 26, 2017

9 दिन इन रूपों में करें देवी की आराधना

धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्र में हर तिथि पर माता के एक विशेष रूप की पूजा करने से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। जानिए नवरात्र में किस दिन देवी के कौन से स्वरूप की पूजा करें-
हिमालय की पुत्री हैं मां शैलपुत्री
शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि यानी पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।

हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। इसलिए इस दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।

तप की शक्ति का प्रतीक हैं मां ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि की द्वितिया तिथि पर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्म शक्ति यानी तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही, सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योगशास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।
 कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं मां चंद्रघंटा

नवरात्र की तृतीया तिथि यानी तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को समर्पित है। यह शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश किया था। नवरात्र के तीसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। इनकी पूजा से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

रोग, शोक दूर करती हैं मां कूष्मांडा देवी

नवरात्र की चतुर्थी तिथि की प्रमुख देवी मां कूष्मांडा हैं। देवी कूष्मांडा रोगों को तुरंत नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु को धन-धान्य और संपदा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कूष्मांडा ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कूष्मांडा पड़ा।
मां कूष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही, भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।

देवी स्कंदमाता की पूजा से मिलती है शांति व सुख

नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जानते हैं। स्कंदमाता हमें सीखाती हैं कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर संग्राम है व हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन की शक्ति मिलती रहे। इसलिए स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती हैं।

भय का नाश करती हैं देवी कात्यायनी

नवरात्र की षष्ठी तिथि पर आदिशक्ति दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा करने का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्र के छठे दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। माता कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रृति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।

शत्रुओं का नाश करती हैं देवी कालरात्रि

महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। मां कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि की आराधना के समय भक्त को अपने मन को भानु चक्र जो ललाट अर्थात सिर के मध्य स्थित करना चाहिए। इस आराधना के फलस्वरूप भानु चक्र की शक्तियां जागृत होती हैं। मां कालरात्रि की भक्ति से हमारे मन का हर प्रकार का भय नष्ट होता है। जीवन की हर समस्या को पलभर में हल करने की शक्ति प्राप्त होती है। शत्रुओं का नाश करने वाली मां कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती है।

मन की शांति मिलती है मां महागौरी की पूजा से

नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। मां महागौरी का रंग अत्यंत गोरा है, इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। नवरात्र का आठवां दिन हमारे शरीर का सोम चक्रजागृत करने का दिन है। सोमचक्र उर्ध्व ललाट में स्थित होता है। श्री महागौरी की आराधना से सोमचक्र जागृत हो जाता है और इस चक्र से संबंधित सभी शक्तियां श्रद्धालु को प्राप्त हो जाती है। मां महागौरी के प्रसन्न होने पर भक्तों को सभी सुख स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही, इनकी भक्ति से हमें मन की शांति भी मिलती है।

सुख-समृद्धि के लिए करें मां सिद्धिदात्री की पूजा

नवरात्र के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं। अंतिम दिन भक्तों को पूजा के समय अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र, जो कि हमारे कपाल के मध्य स्थित होता है, वहां लगाना चाहिए। ऐसा करने पर देवी की कृपा से इस चक्र से संबंधित शक्तियां स्वत: ही भक्त को प्राप्त हो जाती हैं। सिद्धिदात्री के आशीर्वाद के बाद श्रद्धालु के लिए कोई कार्य असंभव नहीं रह जाता और उसे सभी सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

Monday, September 25, 2017

वैष्णों देवी की प्राचीन गुफा में आज भी मौजूद है भैरव का शरीर

देवी का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल वैष्णो देवी मंदिर जम्मू-कश्मीर की त्रिकुटा पहाड़ियों पर बसा है। हर साल लाखों भक्त यहां की यात्रा करते हैं। जितना महत्व वैष्णो देवी का है, उतना ही महत्व यहां की गुफा का भी है। देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए एक प्राचीन गुफा का प्रयोग किया जाता था। यह गुफा बहुत ही चमत्कारी और रहस्यों से भरी हुई है।
जानिए वैष्णो देवी की गुफा से जुड़े 6 अनोखे रहस्य...
1. माता वैष्‍णो देवी के दर्शन के ल‌िए वर्तमान में ज‌िस रास्ते का इस्तेमाल क‌िया जाता है, वह गुफा में प्रवेश का प्राकृत‌िक रास्ता नहीं है। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए कृत्र‌िम रास्ते का न‌िर्माण 1977 में ‌‌क‌िया गया। वर्तमान में इसी रास्ते से श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंचते हैं।
2. क‌िस्मत वाले भक्तों को प्राचीन गुफा से आज भी माता के भवन में प्रवेश का सौभाग्य म‌िल जाता है। यहां पर न‌ियम है क‌ि जब कभी भी दस हजार के कम श्रद्धालु होते हैं तब प्राचीन गुफा का द्वार खोल द‌िया जाता है।
3. मां माता वैष्णो देवी के दरबार में प्राचीन गुफा का काफी महत्व है। मान्यता है कि प्राचीन गुफा के अंदर भैरव का शरीर मौजूद है। माता ने यहीं पर भैरव को अपने त्र‌िशूल से मारा था और उसका सिर उड़कर भैरव घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया।
4. प्राचीन गुफा का महत्व इसल‌िए भी है क्योंक‌ि इसमें प‌व‌ित्र गंगा जल प्रवाह‌ित होता रहता है। इस जल से पवित्र होकर माता के दरबार में पहुंचने का विशेष महत्व माना जाता है।
5. वैष्‍णो देवी मंदिर तक पहुंचने वाली घाटी में कई पड़ाव भी हैं, जिनमें से एक है आद‌ि कुंवारी या आद्यकुंवारी। यहीं एक और गुफा भी है, ज‌िसे गर्भजून के नाम से जाना जाता है। गर्भजून गुफा को लेकर मान्यता है क‌ि माता यहां 9 महीने तक उसी प्रकार रही ‌‌‌थी जैसे एक श‌िशु माता के गर्भ में 9 महीने तक रहता है।
6. गर्भजून गुफा को लेकर माना जाता है कि इस गुफा में जाने से मनुष्य को फ‌िर गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। अगर मनुष्य गर्भ में आता भी है तो गर्भ में उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता है और उसका जन्म सुख एवं वैभव से भरा होता है।

Friday, September 22, 2017

नवरात्र में कुलदेवी पूजन किया जाता है

नवरात्र में कुल देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। वैसे दोनों ही नवरात्र महत्वपूर्ण होते र्हं। मगर फिर भी इस नवरात्र को कुल देवी-देवताओं के पूजन की दृष्टि से विशेष मानते है, क्योंकि ये नवरात्र हिंदू कैलेंडर के प्रथम दिन से शुरू होते हैं। इसलिए इन्हे बड़े नवरात्र भी कहा जाता है।

दुर्गा सप्तशती के अनुसार माता ने ऐसा आशीर्वाद दिया था कि जो भी अष्टमी और नवमी पर मेरी महापूजा करेगा। उसके कुल में हमेशा धनधान्य रहेगा और मैं उसके कुल की स्वयं रक्षा करूंगी। ये भी मान्यता है कि हर कुल की एक देवी होती हैं और कहा जाता है कि कुल देवी पूरे कुल की रक्षा करती है। नवरात्र के नौ दिनों में अष्टमी और नवमी को ही कुल माता का पूजन किया जाता है।

एक मान्यता ये भी है कि नवरात्र में कुलदेवी का पूजन इसलिए किया जाता है ताकि पूरे साल कुल में हर्षोउल्लास और खुशी का माहौल रहे और कुल में जिस भी बच्चे का जन्म हो वह अपने कुल का नाम रोशन करे। हिंदू धर्म मानने वाली लगभग हर जाति में नवरात्र के दौरान कुलदेवी का विशेष मंत्र जप व अनुष्ठान या पूजन किया जाता है।

Wednesday, September 20, 2017

भोजन करने से पहले और बाद में बोलने चाहिए ये मंत्र ...

भोजन से पहले ये मंत्र बोलें :-
ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।


भोजन के बाद ये मंत्र बोलें :-
अगस्त्यम कुम्भकर्णम च शनिं च बडवानलनम।
भोजनं परिपाकारथ स्मरेत भीमं च पंचमं ।।
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।

Tuesday, September 19, 2017

ग्रंथों में बताए गए हैं चार युग, ये है इन युगों से जुड़े अनोखे रहस्य

ज्योतिष ग्रंथ सूर्य सिद्धांत व अन्य पुराणों के अनुसार एक तिथि वह समय होता है, जिसमें सूर्य और चंद्र के बीच का देशांतरीय कोण बारह अंश बढ़ जाता है। तिथियां दिन में किसी भी समय आरंभ हो सकती हैं और इनकी अवधि उन्नीस से छब्बीस घंटे तक हो सकती है। पंद्रह तिथियों का एक पक्ष या पखवाड़ा माना गया है। शुक्ल और कृष्ण पक्ष मिलाकर दो पक्ष का एक महीना। फिर दो महीने की एक ऋतु और इस तरह तीन ऋतुएं मिलकर एक अयन बनता है और दो अयन यानी उत्तरायन और दक्षिणायन। इस तरह दो अयनों का एक वर्ष पूरा होता है।15 मानव दिन एक पितृ दिवस कहलाता है यही एक पक्ष है। 30 पितृ दिवस का एक पितृ मास यानी महीना कहलाता है। 12 पितृ मास का एक पितृ वर्ष यानी पितरों का जीवनकाल 100 का माना गया है तो इस मान से 1500 मानव वर्ष हुए और इसी तरह पितरों के एक मास से कुछ दिन कम यानी मानव के एक वर्ष का देवताओं का एक दिव्य दिवस होता है, जिसमें दो अयन होते हैं पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। तीस दिव्य दिवसों का एक दिव्य मास यानी महीना। बारह दिव्य महीनों का एक दिव्य वर्ष कहलाता है।
1.    4800 दिव्य वर्ष अर्थात एक कृत युग (सतयुग)। मानव वर्ष के मान से 1728000 वर्ष।

2.    3600दिव्य वर्ष अर्थात एक त्रेता युग। मानव वर्ष के मान से 1296000 वर्ष।

3.    2400दिव्य वर्ष अर्थात एक द्वापर युग। मानव वर्ष के मान से 864000 वर्ष।

4.    1200 दिव्य वर्ष अर्थात एक कलि युग। मानव वर्ष के मान से 432000 वर्ष।

12000 दिव्य वर्ष यानी 4 युग यानी एक महायुग जिसे दिव्य युग भी कहते हैं। आइए जानते हैं इन युगों से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जो कम ही लोग जानते हैं....

सतयुग
17,28,000 वर्ष के सतयुग में मनुष्य की लंबाई 32 फिट और उम्र 100000 वर्ष की बताई गई है। इसका तीर्थ पुष्कर और अवतार मत्स्य, हयग्रीव, कूर्म, वाराह, नृसिंह हैं। इस युग में जन्म लेने वाला पाप 0% जबकि 100 प्रतिशत पुण्य कर्म करता है। इस युग की मुद्रा रत्नों की और बर्तन सोने के हुआ करते थे।
त्रेतायुग
12,96,000 वर्ष की कालावधि का त्रेतायुग तीन पैरों पर खड़ा है। इस युग में मनुष्य की आयु 10000 वर्ष और लंबाई 21 फिट की बतायी गई है। इसका तीर्थ पुष्कर और अवतार वामन, परशुराम और राम हैं। इस युग में पाप 25% जबकि पुण्य कर्म 75% होते हैं। रत्नों की मुद्रा और चांदी के पात्रों का चलन रहता है।
द्वापरयुग
8.64,000 वर्ष का समय लिए द्वापरयुग दो पैरों पर खड़ा है। इस युग में इंसान की आयु 1000 वर्ष और लंबाई 11 फिट बताई गई है। इस युग का तीर्थ कुरुक्षेत्र और अवतार भगवान श्रीकृष्ण हैं। इस युग में पाप कर्म 50% और पुण्य भी 50% होते हैं। इस युग चांदी की मुद्रा और तांबे के पात्र चलन में रहते हैं।
कलियुग
4,32,000 वर्ष समय का कलियुग को एक पैर पर खड़ा बताया गया है। इस युग में मनुष्य की आयु 100 वर्ष और लंबाई 5 फिट 5 इंच बताई गई है। इसका तीर्थ गंगा और अवतार बुद्ध व कल्कि बताए गए हैं। इस युग में पाप कर्म 75% और पुण्य कर्म 25% होते हैं। इस युग की मुद्रा लोहा और पात्र मिट्टी के हैं।