भगवान शिव को भांग
धतूरा पसंद है तो मां काली को खिचड़ी, देवी लक्ष्मी को खीर पसंद है तो गणेश जी को प्रसाद के रूप में मोदक सबसे
प्रिय है। गणेश जी का मोदक प्रेम ऐसा है कि तस्वीरों में गणेश जी के एक हाथ में
मोदक जरूर दिखता है। कुछ तस्वीरों में तो गणेश जी का वाहन मूषक भी गणेश जी के साथ
मोदक खाता हुआ दिखता है।
गणपत्यथर्वशीर्ष
में तो यहां तक लिखा है कि, "यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।" यानी जो भक्त गणेश जी को
एक हजार मोदक का भोग लगाता है गणेश जी उसे मनचाहा फल प्रदान करते हैं यानी उनकी
मुरादें पूरी होती हैं। मोदक के प्रति गणेश जी का यह प्रेम यूं ही नहीं है।
दरअसल गणेश जी का एक
दांत टूटा हुआ है इसलिए गणेश जी एकदंत कहलाते हैं। मोदक तलकर और स्टीम करके दो तरह
से बनाए जाते हैं। दोनों ही तरह से बने मोदक मुलायम और आसानी से मुंह में घुल जाने
वाले होते हैं इसलिए टूटे दांत होने पर भी गणेश जी इसे आसानी से खा लेते हैं।
इसलिए बिद्धिमान गणेश जी को मोदक बेहद पसंद है।
मोदक को शुद्ध आटा, घी, मैदा, खोआ, गुड़, नारियल से बनाया जाता है। इसलिए यह स्वास्थ्य के लिए गुणकारी और तुरंत
संतुष्टिदायक होता है। यही वजह है कि इसे अमृततुल्य माना गया है। मोदक के
अमृततुल्य होने की कथा पद्म पुराण के सृष्टि खंड में मिलती है।
गणेश पुराण के
अनुसार देवताओं ने अमृत से बना एक मोदक देवी पार्वती को भेंट किया। गणेश जी ने जब
माता पार्वती से मोदक के गुणों को जाना तो उसे खाने की इच्छा तीव्र हो उठी और
प्रथम पूज्य बनकर चतुराई पूर्वक उस मोदक को प्राप्त कर लिया। इस मोदक को खाकर गणेश
जी को अपार संतुष्टि हुई तब से मोदक गणेश जी का प्रिय हो गया।
यजुर्वेद में गणेश
जी को ब्रह्माण्ड का कर्ता धर्ता माना गया है। इनके हाथों में मोदक ब्रह्माण्ड का
स्वरूप है जिसे गणेश जी ने धारण कर रखा है। प्रलयकाल में गणेश जी ब्रह्माण्ड रूपी
मोदक को खाकर सृष्टि का अंत करते हैं और फिर सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मण्ड की रचना
करते हैं। गणेश पुराण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि गणेश जी परब्रह्म हैं
इनकी उपासना से ही देवी पार्वती के गणेश जो गजानन भी हैं पुत्र रूप में प्राप्त
हुए।
गणेश जी को
शास्त्रों और पुराणों में मंगलकारी माना गया है। मोदक गणेश जी के इसी व्यक्तित्व
को दर्शाता है। मोदक का अर्थ होता है आनंद देने वाला। गणेश जी मोदक खाकर आनंदित
होते हैं और भक्तों को आनंदित करते हैं।
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