कुंती का पुत्र और दुर्योधन
का मित्र कर्ण भी महाभारत युद्ध में बहुत ही खास पात्र था। कर्ण के पास एक शक्ति
ऐसी थी, जिससे वह अर्जुन को भी हरा सकता था, लेकिन उस शक्ति का उपयोग उसे पहले ही करना पड़ गया था।
1.कर्ण को इंद्र ने दी थी दिव्य शक्ति
इस संबंध में महाभारत का एक
प्रसंग है। इस प्रसंग के अनुसार जब इंद्र ने कर्ण से उसके कुंडल और कवच मांगे तो
बदले एक दिव्य शक्ति कर्ण को दी थी। इंद्र ने कर्ण से कहा था कि इस शक्ति का उपयोग
जिस पर भी करोगे, वह
अवश्य मर जाएगा, लेकिन इस शक्ति का उपयोग सिर्फ
एक बार ही हो सकता है। इसीलिए कर्ण ने उस शक्ति को अर्जुन के लिए संभाल कर रख लिया
था। महाभारत युद्ध में जब भीम का पुत्र घटोत्कच आया तो उसने कौरव सेना में खलबली
मचा दी। कोई भी यौद्धा घटोत्कच को काबू नहीं कर पा रहा था। तब कौरव सेना के
महाबलियों ने कर्ण से कहा कि इंद्र द्वारा दी गई शक्ति का उपयोग करों और इस राक्षस
को मार डालो, नहीं तो ये पूरी कौरव सेना को
खत्म कर देगा। इसके बाद सभी की बात मानते हुए कर्ण ने उस शक्ति का उपयोग करके
घटोत्कच को मार डाला। इस प्रकार अर्जुन के लिए बचाकर
रखी गई दिव्य शक्ति का उपयोग कर्ण ने घटोत्कच के लिए कर लिया।
2.तब कर्ण को नहीं हरा सकते थे पांडव
जब भीम का पुत्र घटोत्कच मारा गया तो सभी पांडव दुखी थे, उस समय श्रीकृष्ण प्रसन्न दिखाई
दे रहे थे। यह देखकर अर्जुन को आश्चर्य हुआ। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि भीम
का पुत्र मारा गया है, पांडव
सेना घबरा रही है और आप प्रसन्न क्यों हैं? इस
प्रश्न के जवाब में श्रीकृष्ण ने कहा कि अभी यही दिखाई दे रहा है कि कर्ण ने
घटोत्कच को मार दिया है, लेकिन
सच ये है कि घटोत्कच ने कर्ण को मार दिया है। इंद्र ने कर्ण से कुंडल और कवच पहले
ही ले लिए थे। इसके बाद उसके पास सिर्फ एक ही अजेय शक्ति थी, जिसका उपयोग घटोत्कच के लिए कर
लिया। इंद्र की दी हुई शक्ति कर्ण के पास रहती तो उसे जीत पाना किसी के लिए भी
संभव नहीं था। यदि कुंडल और कवच भी कर्ण के पास होते तो इंद्र सहित सभी देवता भी
युद्ध में उसका सामना नहीं कर सकते थे।
3.कर्ण ने कैसे प्राप्त किया अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान
कर्ण कुंती का पुत्र था, लेकिन
कुंती ने जन्म के तुरंत बाद ही उसे छोड़ दिया था। इसके बाद कर्ण का पालन-पोषण सूत
अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने किया था। इसी कारण कर्ण को 'सूत-पुत्र और 'राधेय' भी कहा गया। एक समय जब कर्ण को
मालूम हुआ कि परशुराम अपने सारे अस्त्र-शस्त्र ब्राह्मणों को ही दान कर रहे हैं।
कई ब्राह्मण उनसे शक्तियां मांगने पहुंच रहे थे। द्रोणाचार्य ने भी उनसे कुछ
शस्त्र लिए थे। कर्ण ब्राह्मण नहीं था, लेकिन
वह परशुराम से शस्त्र लेने का अवसर गंवाना नहीं चाहता था।
इसके लिए कर्ण ने ब्राह्मण का वेश बनाकर परशुराम से भेंट
की। उस समय तक परशुराम अपने सारे शस्त्र दान कर चुके थे। फिर भी कर्ण की सीखने की
इच्छा को देखते हुए, उन्होंने
उसे अपना शिष्य बना लिया। कई दिव्यास्त्रों का ज्ञान भी कर्ण को दिया। इस प्रकार
झूठ बोलकर परशुराम से अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान कर्ण ने हासिल कर लिया।
4.परशुराम ने दिया कर्ण को श्राप
कर्ण परशुराम से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उस दौरान एक दिन गुरु और शिष्य, दोनों जंगल से गुजर रहे थे।
रास्ते में परशुराम को थकान महसूस हुई। उन्होंने कर्ण से कहा कि वे आराम करना
चाहते हैं। कर्ण एक घने पेड़ के नीचे बैठ गया और परशुराम उसकी गोद में सिर रखकर सो
गए। तभी कहीं से एक बड़ा कीड़ा आया और उसने कर्ण की जांघ पर डंक मारना शुरू कर
दिया। कर्ण को दर्द हुआ, लेकिन
गुरु भक्ति के कारण वह वैसे ही बैठा रहा।
कीड़ा बार-बार डंक मार रहा था, जिससे कर्ण की जांघ से खून बहने
लगा। खून की धारा परशुराम को लगी तो वे नींद से जाग गए। उन्होंने कीड़े को हटाया, फिर कर्ण से पूछा कि तुमने उस
कीड़े को हटाया क्यों नहीं।
कर्ण ने कहा कि मैं थोड़ा भी हिलता तो आपकी नींद खुल जाती, इससे मेरा सेवा धर्म टूट जाता।
परशुराम ने उसी समय समझ लिया कि इतनी सहनशक्ति किसी
ब्राह्मण में नहीं हो सकती। उन्होंने कर्ण से कहा कि तुम क्षत्रिय हो। कर्ण ने
अपनी गलती मान ली कि उसने झूठ बोलकर शिक्षा प्राप्त की है।
कर्ण के झूठ से क्रोधित होकर परशुराम ने उसे शाप दिया कि
जिस समय तुम्हें इन दिव्यास्त्रों की सबसे ज्यादा जरूरत होगी, उसी समय इनके प्रयोग की विधि
तुम भूल जाएगा।
जब महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन के बीच निर्णायक युद्ध
चल रहा था, तब कर्ण कोई दिव्यास्त्र नहीं
चला सका, क्योंकि वह सभी की विधि भूल
चुका था।
5.श्रीकृष्ण ने कर्ण से कहा था दुर्योधन का साथ छोड़ दो
महाभारत का एक प्रसंग है। पांडव बारह वर्ष का वनवास और एक
वर्ष का अज्ञातवास पूरा कर चुके थे। इसके बाद पांडव दुर्योधन और कौरवों से युद्ध
करने की तैयारी कर रहे थे। इस युद्ध को रोकने के लिए श्रीकृष्ण पांडवों के दूत
बनकर दुर्योधन को समझाने कौरवों की राजधानी हस्तिनापुर गए थे। श्रीकृष्ण ने
दुर्योधन को बहुत समझाया, लेकिन
वह नहीं माना। इसके बाद श्रीकृष्ण लौटने लगे तो भीष्म पितामह, विदुर, कर्ण आदि उन्हें हस्तिनापुर की
सीमा तक छोड़ने आए थे। नगर की सीमा आने पर सभी लौट गए, लेकिन श्रीकृष्ण ने कर्ण को रोक
लिया। श्रीकृष्ण ने कर्ण को पांडवों का बड़ा भाई होने का हवाला देते हुए दुर्योधन
का साथ छोड़ने का आग्रह किया।
कर्ण ने कहा ‘वासुदेव!
मैं यह सब जानता हूं, लेकिन
जिस समय मुझे अपमानित होना पड़ रहा था, उस
समय दुर्योधन ने मुझे अपनाकर सम्मानित किया। मुझ पर उसके बहुत से उपकार हैं। मेरे
भरोसे पर ही दुर्योधन ने पांडवों के खिलाफ युद्ध लड़ने का फैसला किया है। मैं उसके
साथ किसी प्रकार का विश्वासघात नहीं करूंगा।’
https://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-mahabharat-in-hindi-facts-about-mahabharat-karna-in-mahabharat-5669973-PHO.html?seq=1
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