भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष
की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 24 अगस्त, गुरुवार को है। विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने
से कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। इस व्रत
की विधि इस प्रकार है-
विधि
इस दिन महिलाएं निर्जल (बिना कुछ खाए-पीए) रहकर व्रत करती
हैं। इस व्रत में बालूरेत से भगवान शंकर व माता पार्वती का मूर्ति बनाकर पूजन किया
जाता है। घर को साफ-स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि से सजाएं। एक पवित्र चौकी पर शुद्ध
मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि
सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सखी की आकृति
(प्रतिमा) बनाएं।
प्रतिमाएं बनाते समय भगवान का स्मरण करें। देवताओं का
आह्वान कर षोडशोपचार पूजन करें। व्रत का पूजन रात भर चलता है। महिलाएं जागरण करती
हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी
प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम
के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण
किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। भगवती-उमा की पूजा के
लिए ये मंत्र बोलें-
ऊं उमायै नम:, ऊं
पार्वत्यै नम:,
ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:,
ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं
शिवायै नम:
भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करें-
ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:,
ऊं शम्भवे नम:, ऊं
शूलपाणये नम:,
ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं
शिवाय नम:,
ऊं पशुपतये नम:, ऊं
महादेवाय नम:
पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है, तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं
और अन्न ग्रहण करती हैं।
धर्म
ग्रंथों के अनुसार हरितालिका तीज व्रत की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व
जन्म का स्मरण कराने के लिए सुनाई थी, जो इस
प्रकार है-
पार्वती अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती के रूप में भी वे भगवान शंकर की प्रिय पत्नी थीं। एक बार सती के पिता दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें द्वेषतावश भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा, लेकिन आमंत्रित किए बिना भगवान शंकर ने जाने से इंकार कर दिया। तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं।
वहां उन्होंने अपने पति शिव का अपमान होने के कारण यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी। अगले जन्म में सती का जन्म हिमालय राजा और उनकी पत्नी मैना के यहां हुआ। बाल्यावस्था में ही पार्वती भगवान शंकर की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा, लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी।
पार्वती अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती के रूप में भी वे भगवान शंकर की प्रिय पत्नी थीं। एक बार सती के पिता दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें द्वेषतावश भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा, लेकिन आमंत्रित किए बिना भगवान शंकर ने जाने से इंकार कर दिया। तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं।
वहां उन्होंने अपने पति शिव का अपमान होने के कारण यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी। अगले जन्म में सती का जन्म हिमालय राजा और उनकी पत्नी मैना के यहां हुआ। बाल्यावस्था में ही पार्वती भगवान शंकर की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा, लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी।
पार्वती ने यह बात अपनी सखी को बताई। वह सखी पार्वती को एक घने जंगल में ले गई। पार्वती ने जंगल में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर कठोर तप किया, जिससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर पार्वती से वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी धर्मपत्नी बनाने का वरदान मांगा, जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार किया। इस तरह माता पार्वती को भगवान शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए।
महिलाओं में संकल्प शक्ति बढ़ाता
है ये व्रत
हरितालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है। इस दिन महिलाएं
बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखती हैं। यह व्रत संकल्प शक्ति का एक अनुपम उदाहरण है।
संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिए मन में निश्चय करना। कर्म का मूल संकल्प है। इस
प्रकार संकल्प हमारी आंतरिक शक्तियों का सामूहिक निश्चय है। इसका अर्थ है- व्रत
संकल्प से ही उत्पन्न होता है। व्रत का संदेश यह है कि हम जीवन में लक्ष्य
प्राप्ति का संकल्प लें। संकल्प शक्ति के आगे असंभव दिखाई देता लक्ष्य संभव हो
जाता है। माता पार्वती ने जगत को दिखाया कि संकल्प शक्ति के सामने ईश्वर भी झुक
जाता है।
अच्छे कामों
का संकल्प सदा सुखद परिणाम देता है। इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विशेषतः: महिलाओं
के संदर्भ में यह है कि आज समाज में महिलाएं बीते समय की तुलना में अधिक
आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं। महिलाओं की भूमिका में भी बदलाव आए हैं। घर से बाहर
निकलकर पुरुषों की भांति सभी कार्य क्षेत्रों में सक्रिय हैं। ऐसी स्थिति में
परिवार और समाज इन महिलाओं की भावनाओं एवं इच्छाओं का सम्मान करें, उनका विश्वास
बढ़ाएं, ताकि स्त्री
और समाज सशक्त बनें।
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