भद्रा के समय में किसी शुभ
काम की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। इसलिए भद्रा काल की अशुभता को मानकर
कोई भी आस्थावान व्यक्ति इस समय में शुभ काम नहीं करता। 7 अगस्त को रक्षाबंधन है और इस दिन भद्रा मुहूर्त का विशेष
ध्यान रखा जाता है यानी भद्रा का समय होने पर राखी नहीं बांधी जाती है। आइए जानते
हैं कि आखिर क्यों भद्रा अशुभ होती है...
पुराणों के अनुसार भद्रा
भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनि देव की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी
कठोर बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने
उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया। भद्रा की
स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा
और उत्पादन आदि कामों को निषेध माना गया, लेकिन
इस समय में तंत्र कार्य, अदालती
और राजनीतिक चुनाव कार्य सफलता देने वाले माने गए हैं।
पंचांग
में भद्रा का महत्व
हिंदू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं।
हिंदू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं।
इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती
है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यूं तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ
है कल्याण करने वाली, लेकिन
इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष
विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब
यह मृत्युलोक में होती है, तब
सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है। जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ
व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ
कार्य वर्जित होते हैं। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में
बताया गया है।
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