महाभारत के सौप्तिक पर्व के
अनुसार दुर्योधन को मरा हुआ समझने के बाद से द्रोण पुत्र अश्वत्थामा गुस्से से भरा
हुआ था। उस दिन की युद्ध समाप्ति के बाद कौरवों का पक्ष लगभग पूरी तरह खत्म हो
चुका था। मगर कृपाचार्य, कृतवर्मा
और अश्वत्थामा तीनों ने हार नहीं मानी और वे विश्राम के लिए वन की ओर चले गए अगले
दिन फिर से युद्ध लड़ने के मन से। घने जंगल में एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे।
उस दिन के युद्ध के बाद अश्वत्थामा का शरीर तो विश्राम चाहता था, लेकिन उसके दिमाग में इतना
क्रोध था कि वह कैसे भी पांडवों से बदला लेना चाहता था।
पांडवों से बदला लेने की
चाहत में वो पेड़ की तरफ देख रहा था तभी उसने एक उल्लू को शांति से अपने घोंसले में
सोए कौओं पर हमला करते देखा। उस उल्लू ने कुछ ही देर में सारे कौओं को मार डाला यह
दृश्य देखकर अश्वत्थामा को लगा कि वो भी पांडवों को इसी तरह खत्म कर सकता है। उसने
अपना ये निर्णय कृपाचार्य व कृतवर्मा को सुनाया और उनके मना करने पर भी उन्हें
जैसे-तैसे मना कर अपने साथ कर लिया। इसके बाद अश्वत्थामा तुरंत उठा और अपने रथ पर
सवार हो गया। उसके पीछे-पीछे रथ पर सवार होकर कृतवर्मा व कृपाचार्य भी चल दिए।
जैसे ही अश्वत्थामा पांडवों
की छावनी के बाहर पहुंचा। उसे एक दिव्य पुरुष के दर्शन हुए, जिन्होंने कपड़ों के रूप में मृग चर्म पहन रखा था। साथ ही, सांपों की जनेऊ को धारण कर रखा था। अश्वत्थामा उस दिव्य
रूप को देखकर भी घबराया नहीं उसने उन पर अनेक अस्त्रों- शस्त्रों की बारिश कर दी, लेकिन उसका एक भी अस्त्र या शस्त्र काम न आ पाया। ये
देखकर उसे समझ आया कि ये महापुरुष और कोई नहीं स्वयं शिव है।
ये जानकर उसने शिव की आराधना की और हवन करके खुद को उसमें
होम देने की कोशिश की। ये देखकर भगवान शिव ने उससे कहा कि द्रोण पुत्र मेरा
श्रीकृष्ण से बहुत प्रेम है और मैं उनसे हर तरह से प्रसन्न हूं, लेकिन कुछ पांचालों की मृत्यु
तुम्हारे हाथों निश्चित है। ये कहकर शिवजी ने उसे एक तलवार दी और उसके शरीर में
विलीन हो गए। इसके बाद अश्वत्थामा पांडवों की छावनी में घुसा और सबसे पहले अपने
पिता का वध करने वाले धृष्टद्युम्न को खोज कर उसे बिना किसी अस्त्र- शस्त्र के
पीट-पीटकर मार डाला।
धृष्टद्युम्न के बाद उसने
अनेकों क्षत्रियों का तेजी से संहार करना शुरू कर दिया। शिखंडी को मारा और पांडवों
की छावनी में हाहाकार मचा दिया। धृष्टद्युम्न की मौत की खबर जब पांचाली के पुत्रों
को हुई तो उन्होंने अश्वत्थामा का वीरता के साथ सामना किया, लेकिन उनकी मौत निश्चित थी। इसलिए पांचाली के पांचों
पुत्रों को अश्वत्थामा ने मार डाला। इसके बाद अश्वत्थामा आचार्य कृप व कृतवर्मा के
पास पहुंचा उन्हें गले लगाया। तीनों ने ये निश्चय किया कि अगर दुर्योधन जीवित है
तो उसे ये शुभ समाचार सुनाना चाहिए। वे तीनों वहां पहुंचे जहां दुर्योधन मरणासन्न
स्थिति में पड़ा था। उन्होंने देखा कि अब भी दुर्योधन मरा नहीं है। तीनों उसे देखकर
रोने लगे।
अश्वत्थामा ने दुर्योधन से
कहा आपके इस अंतिम समय में आपको मैं कुछ आनंद देने वाला समाचार सुनाना चाहता हूं।
इससे आपको सुख मिलेगा। पांडवों के पक्ष में अब सिर्फ पांच पांडव, श्रीकृष्ण और सात्यकि ये सात लोग बचे हैं और हमारी ओर से
मैं, आचार्य कृप व कृतवर्मा कुशल हैं। मैंने पांचाली के
पुत्रों और अन्य योद्धाओं को खत्म कर दिया है। दुर्योधन को ये सुनते ही जैसे गहरी
शांति मिली और उसने अश्वत्थामा से कहा तुमने वो काम किया है जो हम कोई भी न कर
सके। इतना कहकर दुर्योधन ने अपने प्राण त्याग दिए।
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