जैसे-जैस कोई व्यक्ति सफल
होता है, वैसे-वैसे उसकी बुराई करने वालों की संख्या भी बढ़ती है।
बुराई करने वाले लोग प्रतिष्ठा पर बुरा असर डालते हैं, वे लगातार अपमान करने का प्रयास करते रहते हैं। इनसे बचने
के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि अपने काम से उन्हें गलत साबित करें। साथ ही, ऐसे लोगों को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए और इन्हें पूरी
तरह नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए। महाभारत में श्रीकृष्ण और शिशुपाल के प्रसंग से
हम सीख सकते हैं कि यदि कोई हमारा अपमान करता है तो क्या करना चाहिए...
शिशुपाल की सौ गलतियां
श्रीकृष्ण ने की थी माफ
महाभारत में शिशुपाल और
श्रीकृष्ण का प्रसंग काफी चर्चित रहा है। शिशुपाल श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था और
चेदी नगर का राजा था। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की माता को वचन दिया था कि वे शिशुपाल
की 100 गलतियां माफ करेंगे, लेकिन 100 गलतियों के बाद उसे उचित सजा भी
अवश्य देंगे।
ये है शिशुपाल और श्रीकृष्ण का प्रसंग
विदर्भराज के रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली नामक
पांच पुत्र और एक पुत्री रुक्मिणी थी। रुक्मिणी के माता-पिता उसका विवाह श्रीकृष्ण
के साथ करना चाहते थे, लेकिन
रुक्मी (रुक्मिणी का बड़ा भाई) चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के
साथ हो। अतः उसने रुक्मिणी का टीका शिशुपाल के यहां भिजवा दिया। रुक्मिणी
श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी, इसलिए
उसने श्रीकृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा। श्रीकृष्ण भी रुक्मिणी से
प्रेम करते थे और वे ये भी जानते थे कि रुक्मिणी के माता-पिता रुक्मिणी का विवाह
मुझसे ही करना चाहते हैं, लेकिन
बड़ा भाई रुक्मी मुझसे शत्रुता के कारण ये विवाह नहीं होने देना चाहता है।
श्रीकृष्ण ने रुक्मी के विरोध के बावजूद रुक्मिणी से विवाह किया। इस विवाह को
चेदिराज शिशुपाल ने अपना अपमान समझा और वह श्रीकृष्ण को शत्रु समझने लगा।
कुछ समय बाद जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया। इस
आयोजन में सभी प्रमुख राजाओं को आमंत्रित किया गया। चेदिराज शिशुपाल भी यज्ञ में
आया था। देवपूजा के समय श्रीकृष्ण का सम्मान देखकर शिशुपाल क्रोधित हो गया और उसने
श्रीकृष्ण को अपशब्द कहना शुरू कर दिए। यज्ञ में उपस्थित सभी लोगों ने शिशुपाल को
समझाने की कोशिश की, लेकिन
वह नहीं माना। अर्जुन और भीम शिशुपाल को मारने के लिए खड़े हो गए तो श्रीकृष्ण ने
उन सभी को रोक दिया। शिशुपाल लगातार गालियां देता रहा और श्रीकृष्ण गालियां गिनते
रहे। जब वह सौ अपशब्द कह चुका, तब
श्रीकृष्ण ने उसे अंतिम चेतावनी दी कि अब रुक जाओ, अन्यथा
परिणाम अच्छा नहीं होगा। श्रीकृष्ण के समझाने के बाद भी शिशुपाल नहीं रुका और उसने
फिर से अपशब्द कहा। इसके बाद शिशुपाल के मुख से अपशब्द निकलते ही श्रीकृष्ण ने
सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट दिया।
इस प्रसंग से हम यह सीख ले सकते हैं कि यदि कोई हमारा अपमान
करता है तो पहले उसे समझाने के पूरे प्रयास करना चाहिए। यदि लगातार समझाने के बाद
भी व्यक्ति हमारे मान-सम्मान को ठेस पहुंचा रहा है तो उसे उचित जवाब देना चाहिए।
ऐसे लोगों को चुप करने के लिए हमें लगातार श्रेष्ठ काम करना चाहिए और उसकी बातों
को गलत साबित करना चाहिए।
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