धार्मिक अनुष्ठानों में कुश नाम की घास से बना आसन बिछाया जाता है। पूजा-पाठ
आदि कर्मकांड करने से इंसान के अंदर जमा आध्यात्मिक शक्ति पुंज का संचय कहीं लीक
होकर फालतू न हो जाए यानी पृथ्वी में न समा जाए, उसके लिए कुश का
आसन वि्द्युत कुचालक का काम करता है। इस आसन के कारण पार्थिव विद्युत प्रवाह पैरों
से शक्ति को खत्म नहीं होने देता है। कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर
मंत्र जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाते हैं। कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झड़ते
और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता। उल्लेखनीय हे कि वेद ने कुश को
तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दुषित वातावरण को पवित्र
करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।
कुश की पवित्री पहनना जरूरी क्यों?कुश की अंगुठी बनाकर अनामिका उंगली मे पहनने का विधान है, ताकि हाथ में संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश मिलता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकता है। कर्मकांड के दौरान यदि भूल से हाथ जमीन पर लग जाए तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा। इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए, तो इसका बुरा असर हमारे दिल और दिमाग पर पड़ता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-why-use-the-kush-in-religious-works-5062800-NOR.html
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