धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा
जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन व्रज में श्रीकृष्ण
के प्रेयसी राधा का जन्म हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राधा भी श्रीकृष्ण की तरह ही अनादि और अजन्मी हैं, उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ। इस पुराण में राधा
के संबंध में बहुत ही ऐसी बातें बताई गई हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण के बाएं अंग से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई, प्रकट होते ही उसने भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में फूल अर्पित किए। श्रीकृष्ण से बात करते-करते वह उनके साथ सिंहासन पर बैठ गई। यह सुंदर कन्या ही राधा हैं।
एक बार गोलोक में श्रीकृष्ण विरजादेवी के समीप थे। श्रीराधा को यह ठीक नहीं लगा। श्रीराधा सखियों सहित वहां जाने लगीं, तब श्रीदामा नामक गोप ने उन्हें रोका। इस पर श्रीराधा ने उस गोप को असुर योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब उस गोप ने भी श्रीराधा को यह श्राप दिया कि आपको भी मानव योनि में जन्म लेना पड़ेगा। वहां गोकुल में श्रीहरि के ही अंश महायोगी रायाण नामक एक वैश्य होंगे। आपका छाया रूप उनके साथ रहेगा। भूतल पर लोग आपको रायाण की पत्नी ही समझेंगे, श्रीहरि के साथ कुछ समय आपका विछोह रहेगा।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के
अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का समय आया तो उन्होंने राधा
से कहा कि तुम शीघ्र ही वृषभानु के घर जन्म लो। वृषभानु की पत्नी बड़ी ही साध्वी
हैं, उनका नाम कलावती है। वे लक्ष्मी के अंश से प्रकट हुई हैं।
वास्तव में वे पितरों की मानसी कन्या हैं। श्रीराधा ने गोकुल में अवतार लिया। वे
व्रज में वृषभानु वैश्य की कन्या हुईं।
राधा देवी अयोनिजा थीं, यानी वे माता के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुई थीं। उनकी माता ने गर्भ में वायु को धारण कर रखा था। उन्होंने योगमाया की प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया परंतु वहां स्वेच्छा से श्रीराधा प्रकट हो गईं। 12 वर्ष बीतने पर माता-पिता ने राधा का विवाह रायाण नामक वैश्य के साथ कर दिया। उस समय राधा घर में अपनी छाया को स्थापित करके स्वयं अंतर्धान हो गई।
उस छाया के साथ ही रायाण का विवाह हुआ। कुछ समय तक श्रीकृष्ण वृंदावन में श्रीराधा के साथ आमोद-प्रमोद करते रहे। इसके बाद श्रीदामा के श्राप के कारण उनका वियोग हो गया। इस बीच में श्रीकृष्ण ने पृथ्वी का भार उतारा। सौ वर्ष पूर्ण हो जाने पर तीर्थयात्रा के प्रसंग से श्रीराधा ने श्रीकृष्ण का दर्शन प्राप्त किया। इसके बाद श्रीकृष्ण राधा के साथ गोलोकधाम पधारे।
इस प्रकार करें राधा जन्माष्टमी
का व्रत
श्रीराधा जन्माष्टमी पर व्रत रखें व विधिविधान से राधाकृष्ण
की प्रतिमा की पूजा करें। श्रीराधाकृष्ण के मंदिर में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, तोरण आदि अर्पित करें तथा
श्रीराधाकृष्ण की प्रतिमा को सुगंधित फूल, धूप, गंध आदि चढ़ाएं। मंदिर के बीच
में पांच रंगों से मंडप बनाकर उसके अंदर सोलह दल के आकार का कमल यंत्र बनाएं। उस
कमल यंत्र के बीच में श्रीराधाकृष्ण की मूर्ति पश्चिम दिशा में मुख
कर स्थापित करें।
कर स्थापित करें।
इसके बाद अपनी शक्ति के अनुसार पूजा की सामग्री से उनकी पूजा अर्चना कर नैवेद्य चढ़ाएं। दिन में इस प्रकार पूजा करने के बाद रात में जागरण करें। जागरण के दौरान भक्ति पूर्वक श्रीकृष्ण व राधा के भजनों को सुनें। शास्त्रों के अनुसार, जो मनुष्य इस प्रकार श्रीराधाष्टमी का व्रत करता है उसके घर सदा लक्ष्मी निवास करती है। यह व्रत सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला है। जो भक्त इस व्रत को करते हैं उसे विष्णु लोक में स्थान मिलता है।
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