फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से होलाष्टक शुरू होगा, जो फाल्गुन पूर्णिमा
तक रहेगा। होलाष्टक के साथ मांगलिक कार्यों पर भी विराम लग जाएगा। इस बार फाल्गुन
पूर्णिमा 12 मार्च को सूर्य उदय से 08.24 बजे तक रहेगी। गौधूलि बेला शाम 06.25 से 7 बजे तक, वहीं चौघड़िया शुभ
मुहूर्त में शाम 06.23 से 07.54 तक होलिका दहन करना शुभ रहेगा। इस दिन सर्वार्थ
सिद्धि योग व राजयोग रहेगा।
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल व पूर्णिमा
को राहु उग्र रूप में रहते हैं। इसलिए इन आठ दिनों में मनुष्य सुखद व दुखद
आकांक्षाओं से ग्रसित हो जाता है। अत: इस दौरान शुभ कार्य जैसे- विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन, गोद भराई, उपनयन संस्कार नहीं होते हैं।
होलाष्टक में व्यापार प्रारंभ, वाहन या मशीनरी की खरीदारी की जा सकती
है। संपत्ति की खरीदी भी की जा सकती है। नया पद भी इस दौरान ज्वाइन किया जा सकता
है। होलाष्टक में औजार व अग्नि से संबंधी उद्योग शुरू कर सकते हैं। बच्चों से
संबंधित संस्कार जैसे- कर्णवेधन, अन्न्प्राशन
भी होलाष्टक का विचार नहीं किया जाता।
त्यौहारों के देश भारत में
साल भर कोई न कोई त्यौहार आता ही रहता है परंतु साल के सभी त्यौहारों का अंतिम
त्यौहार होली माना गया है। तभी तो कहते हैं ‘राखी लाई पूरी, होली लाई भात’। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक के अगले आठ दिन
होलाष्टक के रूप में मनाए जाते हैं। इस दिन गंध, पुष्प,
नैवेद्य, फल, दक्षिणा
आदि से भगवान विष्णु जी का पूजन करने का विधान है, 5 मार्च
को अन्नपूर्णा अष्टमी से होलाष्टक आरम्भ हो रहे हैं जो 12 मार्च तक चलेंगे।
पौराणिक मान्यता है कि दैत्यराज
हिरण्यकशिपु ने विष्णु भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए थे परंतु भक्त
प्रह्लाद का वह बाल भी बांका न कर सका परंतु जब वह अपनी बहन होलिका से मिला तो
दोनों ने मिलकर प्रह्लाद को मारने की पूरी योजना फाल्गुन मास की अष्टमी से ही
आरम्भ कर दी थी ताकि किसी को त्यौहार में कोई संदेह भी न रहे। इसी कारण आठ दिन
पहले से ही होलाष्टक आरम्भ हो जाते हैं।
होली उत्सव- होलाष्टक 12 मार्च
तक चलेंगे। इसी दिन पूर्णिमा वाले दिन लोग एक-दूसरे पर रंग लगाकर खुशी का इजहार
करेंगे तथा होली पर्व मनाया जाएगा। होलिका दहन वैसे तो होली से एक दिन पूर्व
रात्रिकाल को मनाया जाता है परंतु प्रदोष काल में होली दहन करने की परम्परा है
इसीलिए होली दहन 12 मार्च को प्रदोष काल में होगा। लोगों में
परस्पर प्रेम, एकता, स्नेह व भाईचारे
की भावना का संचार करने का प्रतीक होली उत्सव 12 मार्च को
पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर
में मनाया जाएगा तथा 13 मार्च को श्री आनंदपुर साहिब और श्री
पांवटा साहिब में होला मेला के रूप में मनाया जाएगा।
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