चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी हिंदू नव वर्ष का
पहला दिन। इसी दिन से वासंतिक नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है। इन 9 दिनों में मां दुर्गा की विशेष आराधना की जाती
है। हिंदू परिवारों में नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है, जिसमें ज्वारे (एक प्रकार का धान) बोया जाता
है। इसकी विधि इस प्रकार है-
घट स्थापना की विधि
सबसे पहले उस स्थान को गाय के गोबर से लीपें, जहां घट स्थापना की जानी है। एक बड़े मिट्टी के
दीपक में जौ बोएं। इस दीपक को पूजा के स्थान पर स्थापित कर दें। अब अपनी इच्छा के
अनुसार मिट्टी,
तांबे, चांदी या सोने का कलश लें। इस कलश में कुएं का
पानी भरकर इसमें पूजा की सुपारी, सिक्का,
हल्दी की गांठ डाल दें।
अब इस कलश के ऊपर पान (डंठल वाले) या अशोक के पत्ते के साथ नारियल रख दें। यह कलश
पूजन स्थान पर स्थापित कर दें। कलश के नीचे थोड़े गेहूं भी रखें। अबीर, गुलाल, कुंकुम,
फूल व चावल से इस कलश
की पूजा करें।
इसलिए विशेष है चैत्र
नवरात्रि
हिंदू धर्म के अनुसार वर्ष में चार नवरात्रि होती
है। इनमें प्रमुख है चैत्र व आश्विन नवरात्रि। इनके अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी
होती है, लेकिन अधिकांश लोग इन दो नवरात्रियों के बारे में
ही जानते हैं। इस बार चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 28 मार्च मंगलवार, से हो रहा है। चैत्र व आश्विन मास में आने वाली इन दोनों नवरात्रियों के
बीच कुछ समानताएं हैं जो इस प्रकार हैं-
ऋतु विज्ञान के अनुसार, ये दोनों मास (चैत्र व आश्विन) गर्मी और सर्दी की संधि के महत्वपूर्ण मास हैं। शीत का आगमन आश्विन से प्रारंभ हो जाता है और ग्रीष्म का चैत्र से। ऋतु मूलक बासंती संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से और नक्षत्र मूलक शारदीय नव वर्ष आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ हो जाता है। उक्त दोनों संवत्सरों के प्रारंभिक नौ दिन 'नवरात्र' नाम से प्रसिद्ध हैं।
'नव' शब्द नवीन अर्थक और नौ संख्या का वाचक हैं। अत: नूतन संवत्सर के प्रारंभिक दिन होने के कारण उक्त दिनों को 'नव' कहना सुसंगत है तथा दुर्गाओं की संख्या भी 'नौ' होने से नौ दिन तक उपासना होती है। कृषि प्रधान देश भारत में फसलों की दृष्टि से भी 'आश्विन' और 'चैत्र' मास का विशेष महत्व है। चैत्र में आषाढ़ी फसल अर्थात गेहूं, जौं आदि और आश्विन में श्रावणी फसल धान तैयार होकर घरों में आने लगते हैं। अत: इन दोनों अवसरों पर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है।
घट स्थापना की विधि
सबसे पहले उस स्थान को गाय के गोबर से लीपें, जहां घट स्थापना की जानी है। एक बड़े मिट्टी के
दीपक में जौ बोएं। इस दीपक को पूजा के स्थान पर स्थापित कर दें। अब अपनी इच्छा के
अनुसार मिट्टी,
तांबे, चांदी या सोने का कलश लें। इस कलश में कुएं का
पानी भरकर इसमें पूजा की सुपारी, सिक्का,
हल्दी की गांठ डाल दें।
अब इस कलश के ऊपर पान (डंठल वाले) या अशोक के पत्ते के साथ नारियल रख दें। यह कलश
पूजन स्थान पर स्थापित कर दें। कलश के नीचे थोड़े गेहूं भी रखें। अबीर, गुलाल, कुंकुम,
फूल व चावल से इस कलश
की पूजा करें।
अखंड ज्योत जलाने की विधि
घट
स्थापना के साथ अखंड ज्योत भी जलाई जाती है। इसके लिए पूजा स्थान पर ही गाय के
शुद्ध घी का दीपक जलाएं तथा कुमकुम, चावल व फूल से उसकी पूजा करें।
नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए दीपक की स्थापना करें-
भो
दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।
इसलिए विशेष है चैत्र
नवरात्रि
हिंदू धर्म के अनुसार वर्ष में चार नवरात्रि होती
है। इनमें प्रमुख है चैत्र व आश्विन नवरात्रि। इनके अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी
होती है, लेकिन अधिकांश लोग इन दो नवरात्रियों के बारे में
ही जानते हैं। इस बार चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 28 मार्च मंगलवार, से हो रहा है। चैत्र व आश्विन मास में आने वाली इन दोनों नवरात्रियों के
बीच कुछ समानताएं हैं जो इस प्रकार हैं-ऋतु विज्ञान के अनुसार, ये दोनों मास (चैत्र व आश्विन) गर्मी और सर्दी की संधि के महत्वपूर्ण मास हैं। शीत का आगमन आश्विन से प्रारंभ हो जाता है और ग्रीष्म का चैत्र से। ऋतु मूलक बासंती संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से और नक्षत्र मूलक शारदीय नव वर्ष आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ हो जाता है। उक्त दोनों संवत्सरों के प्रारंभिक नौ दिन 'नवरात्र' नाम से प्रसिद्ध हैं।
'नव' शब्द नवीन अर्थक और नौ संख्या का वाचक हैं। अत: नूतन संवत्सर के प्रारंभिक दिन होने के कारण उक्त दिनों को 'नव' कहना सुसंगत है तथा दुर्गाओं की संख्या भी 'नौ' होने से नौ दिन तक उपासना होती है। कृषि प्रधान देश भारत में फसलों की दृष्टि से भी 'आश्विन' और 'चैत्र' मास का विशेष महत्व है। चैत्र में आषाढ़ी फसल अर्थात गेहूं, जौं आदि और आश्विन में श्रावणी फसल धान तैयार होकर घरों में आने लगते हैं। अत: इन दोनों अवसरों पर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है।
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