दान
से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है और साथ ही जाने-अनजाने में किए गए पाप कर्मों के
फल भी नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस पुण्य
कर्म में समाज में समानता का भाव बना रहता है और जरुरतमंद व्यक्ति को भी जीवन के
लिए उपयोगी चीजें प्राप्त हो पाती है। यहां जानिए दान से जुड़ी ऐसी बातें, जिनका ध्यान रखने पर विशेष फल
प्राप्त होते हैं।
1. अन्न, जल, घोड़ा, गाय, वस्त्र, शय्या, छत्र और आसन, इन 8 वस्तुओं का दान, पूरे जीवन शुभ फल प्रदान करता
है। शास्त्रों की मान्यता है कि जब आत्मा देह त्याग देती है तब आत्मा को जीवन में
किए गए पाप और पुण्यों का फल भोगना पड़ता है। पाप कर्मों के भयानक फल आत्मा को
मिलते हैं। इन 8 चीजों का दान मृत्यु के बाद के
इन कष्टों को भी दूर कर सकता है।
2. जो व्यक्ति पत्नी, पुत्र एवं परिवार को दुःखी करते
हुए दान देता है, वह दान पुण्य प्रदान नहीं करता है। दान सभी की प्रसन्नता के
साथ दिया जाना चाहिए।
3. जरुरतमंद के घर जाकर किया हुआ
दान उत्तम होता है। जरुरतमंद को घर बुलाकर दिया हुआ दान मध्यम होता है।
4. यदि कोई व्यक्ति गायों, ब्राह्मणों और रोगियों को दान
कर रहा है तो उसे दान देने से रोकना नहीं चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति पाप का
भागी होता है।
5. तिल,
कुश,
जल और चावल, इन चीजों को हाथ में
लेकर दान देना चाहिए। अन्यथा वह दान दैत्यों को प्राप्त हो जाता है।
6. दान देने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए
और दान लेने वाले का मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। ऐसा करने से दान देने वाले
की आयु बढ़ती है और दान लेने वाले की भी आयु कम नहीं होती है।
7. पितर देवता को तिल के साथ तथा देवताओं को चावल के
साथ दान देना चाहिए।
8. मनुष्य को अपने द्वारा न्यायपूर्वक अर्जित किए हुए
धन का दसवां भाग किसी शुभ कर्म में लगाना चाहिए। शुभ कर्म जैसे गौशाला में दान
करना, किसी जरुरतमंद व्यक्ति को खाना खिलाना, गरीब बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करना आदि।
9. गाय,
घर,
वस्त्र,
शय्या तथा कन्या, इनका दान एक ही व्यक्ति को करना चाहिए।
10. गोदान श्रेष्ठ माना गया है। यदि आप गोदान नहीं कर
सकते हैं तो किसी रोगी की सेवा करना,
देवताओं का पूजन, ब्राह्मण और ज्ञानी लोगों के पैर धोना, ये तीनों कर्म भी गोदान
के समान पुण्य देने वाले कर्म हैं।
11. दीन-हीन,
अंधे,
निर्धन,
अनाथ,
गूंगे,
विकलांगों तथा रोगी मनुष्य की सेवा के लिए जो
धन दिया जाता है, उसका महान पुण्य प्राप्त होता है।
12. जो ब्राह्मण विद्याहीन हैं, उन्हें दान ग्रहण नहीं करना चाहिए। विद्याहीन ब्राह्मण दान ग्रहण करता है
तो उसे हानि हो सकती है।
13. गाय,
सोना (स्वर्ण), चांदी, रत्न, विद्या,
तिल,
कन्या,
हाथी,
घोड़ा,
शय्या,
वस्त्र,
भूमि,
अन्न,
दूध,
छत्र तथा आवश्यक सामग्री सहित घर, इन 16 वस्तुओं के दान को महादान माना गया है। इनके दान से
अक्षय पुण्य के साथ ही कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
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