महाभारत में यूं तो बहुत से दृश्य ऐसे हैं जो बहुत बड़ा
संदेश देते हैं, लेकिन कुरुक्षेत्र में युद्ध के पहले अनूठी घटनाएं
घटी हैं जिनमें से एक है गीता का जन्म। युद्ध से ठीक पहले के दृश्य की विशेषता यह
रही कि एक ही परिवार एक साथ भी खड़ा था और आमने-सामने भी खड़ा था। थोड़ी देर बाद
कौरव-पांडवों के बीच युद्ध आरंभ होने वाला था। उसी समय अर्जुन की निराशा का समापन
करने के लिए श्रीकृष्ण बोलने लगे।
गीता हिंसा के वातावरण में बोले गए प्रेम के अद्भुत बोल
हैं। जब चारों ओर इतनी नकारात्मकता फैली हो, तब भगवान कृष्ण
संसार के सबसे अद्भुत वक्तव्य जारी कर रहे थे। गीता की विशेषता यह है कि रोमांच
के साथ रोमांस किया जा रहा था। रोमांस का अर्थ होता है प्रेम की अनुभूति। कृष्ण
जैसे परत दर परत जीवन खोल रहे थे। उनके शब्द प्रेम से घुले हुए थे। हमारे परिवारों
में भी कई बार कुरुक्षेत्र जैसे अवसर आ जाते हैं। अपने अपनों के सामने होते हैं।
चाहे वे पिता-पुत्र, भाई-भाई या पति-पत्नी हों। ऐसे समय गीता बहुत बड़ा
आश्वासन है। हमारे रिश्तों के बीच गीता अवश्य घटते रहनी चाहिए, क्योंकि अर्जुन का विरोध था कि मैं वह नहीं करूंगा जो आप कह
रहे हैं।
कृष्ण चाहते थे जो मैं कह रहा हूं उसे तुम समझ लो और उसके बाद वह करो, जो तुम्हे ठीक लगे। आज परिवारों की भाषा ऐसी ही होनी चाहिए। अब परिवारों में नेतृत्व बंट चुका है। पहले एक दादा, पिता या बड़ा भाई जो कह देता था उसे सब मान लेते थे। अब परिवारों में शक्ति के छोटे-छोटे केंद्र बन गए हैं। ऐसे समय सदस्यों को एक-दूसरे के साथ जीने, समझने और करने के लिए जिस भाषा की जरूरत है वह गीता में बसी है। इसलिए प्रत्येक घर में न सिर्फ गीता रखी जाए बल्कि जरूरत पड़ने पर उसे पढ़ा भी जाए और जीवन में उतारा जाए।
- पं. विजयशंकर मेहता
http://religion.bhaskar.com/news/JM-SEHE-self-help-tips-in-hindi-news-hindi-5476737-PHO.htmlकृष्ण चाहते थे जो मैं कह रहा हूं उसे तुम समझ लो और उसके बाद वह करो, जो तुम्हे ठीक लगे। आज परिवारों की भाषा ऐसी ही होनी चाहिए। अब परिवारों में नेतृत्व बंट चुका है। पहले एक दादा, पिता या बड़ा भाई जो कह देता था उसे सब मान लेते थे। अब परिवारों में शक्ति के छोटे-छोटे केंद्र बन गए हैं। ऐसे समय सदस्यों को एक-दूसरे के साथ जीने, समझने और करने के लिए जिस भाषा की जरूरत है वह गीता में बसी है। इसलिए प्रत्येक घर में न सिर्फ गीता रखी जाए बल्कि जरूरत पड़ने पर उसे पढ़ा भी जाए और जीवन में उतारा जाए।
- पं. विजयशंकर मेहता
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