होली का पर्व यानी उल्लास, उमंग और रंगों का त्यौहार, लेकिन रंगों से होली खेलने से एक दिन पहले हमारे यहां होलिका दहन की परंपरा भी है। होलिका दहन की परंपरा कोई अंधविश्वास नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक कारण भी है।होलिका दहन पर्व पूर्ण रूप से वैज्ञानिकता पर आधारित है। दरअसल इस समय से ठंड का मौसम खत्म होता है। गर्मी के मौसम की शुरूआत होती है।
मौसम बदलने के कारण अनेक
प्रकार के संक्रामक रोगों का शरीर पर आक्रमण होता है। इन संक्रामक रोगों को
वायुमंडल में ही भस्म कर देने का यह सामूहिक अभियान होलिका दहन है। पूरे देश में
रात्रि काल में एक ही दिन होली जलाने से वायुमण्डलीय कीटाणु जलकर भस्म हो जाते
हैं। यदि एक जगह से ये उड़कर कीटाणु दूसरी जगह जाना भी चाहे तो उन्हें स्थान नहीं
मिलेगा।
आग की गर्मी से कीटाणु भस्म
हो जाएंगे। साथ ही जलती होलिका के चारो और परिक्रमा करने से एक सौ चालीस फेरेनहाइट
गर्मी शरीर में प्रवेश कर जाती है। उसके बाद यदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु हम
पर आक्रमण करते हैं तो उनका प्रभाव हम पर नहीं होता, बल्कि
हमारे अंदर आ चुकी उष्णता से वे स्वयं नष्ट हो जाते है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-science-of-holi-celebration-news-hindi-5547734-PHO.html
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