Saturday, March 4, 2017

सिर्फ कौरव ही नहीं सभी पांडव भी मारे जाते अगर ये योद्धा आ जाता मैदान में


महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत का श्रेय भगवान कृष्ण को जाता है। जिस तरीके से पांडवों ने कम सेना के बावजूद कौरवों का विनाश किया ये सब कृष्ण की रणनीति का ही कमाल था। बहुत कम लोग जानते हैं कि महाभारत में एक योद्धा ऐसा भी था जिसके कुरुक्षेत्र में आ जाने से कौरव-पांडव दोनों पक्षों के सारे योद्धा मारे जाते और अकेला वो ही योद्धा जीवित बचता। उस योद्धा के पास भगवान शिव का वरदान था, लेकिन कृष्ण ने उसे युद्ध में आने से रोक दिया। आइए जानते हैं कौन था वो योद्धा और कौन सी शक्तियां थी उसके पास।

 महाभारत हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इसे पांचवां वेद भी कहा जाता है। महाभारत की कथा में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कई पात्र जुड़े हुए थे। हर किसी का अपना अलग ही महत्व था। जिनमें से कई पात्रों से तो आप जानते हैं, लेकिन आज हम आपको महाभारत के कुछ ऐसे पात्रों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में शायद कम ही लोग जानते होंगे..

1. विकर्ण- कौरव होकर भी इन्होंने किया था द्रौपदी के चीरहरण का विरोध

विकर्ण धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों में से एक था। धृतराष्ट्र और गांधारी के सभी पुत्र दुष्ट और बुरे आचरण वाले थे, लेकिन विकर्ण उनसे अलग था। चाहे कुरूक्षेत्र के युद्ध में उसने कौरवों का साथ दिया था, लेकिन वह सही और गलत में अंतर जानता था। युधिष्ठिर जुए में धन-संपत्ति के साथ-साथ अपने परिवार और अपनी पत्नी द्रौपदी तक को हार गया था। जिसकी वजह से द्रौपदी पर दुर्योधन का अधिकार हो गया था। भरी सभा में कौरवों द्वारा द्रौपदी का अपमान किया गया, लेकिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणार्चाय किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया। तब केवल विकर्ण ने इस अर्धम का विरोध किया था। वह बार-बार दुर्योधन, दुःशासन सहित सभी कौरवों को यह अधर्म करने से रोक रहा था, लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी और आगे चलकर यहीं अपमान कौरवों के विनाश का कारण बना।

कौन था वो योद्धा-

बर्बरीक, भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र था। वह बहुत शक्तिशाली और पराक्रमी था। उसने कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर तीन अजेय बाण लिए थे। साथ ही अग्नि देव ने उसे एक दिव्य धनुष दिया था। बर्बरीक ने युद्ध करने की कला अपनी मां से सिखी थी। उसने अपनी मां को युद्ध में कमजोर पक्ष की ओर से ही युद्ध करने का वचन भी दिया था।

बर्बरीक के दिव्य बाणों और कमजोर पक्ष का युद्ध में साथ देने की कसम के कारण श्रीकृष्ण नहीं चाहते थे कि वह युद्ध में भाग ले। अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेता तो पहले तो वह निश्चित ही अपने पिता भीम के पक्ष का साथ देता, लेकिन जब कौरवों का पक्ष कमजोर होने लगता तो वह उनसे जा मिलता। अपने पराक्रम से पांडवों से पक्ष को कमजोर बना देने के बाद वह फिर उनके पक्ष में आ जाता। इस तरह वह अपने अलावा हर किसी का नाश कर देता। पांडवों को युद्ध विजयी बनाने के लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर दान में मांग लिया था। उन्हें अपना सिर दान में देने के बदले बर्बरीक ने पूरा युद्ध अपनी आंखों से देखने के लिए दिव्य दृष्टि मांगी थी। तब भगवान कृष्ण ने उसके सिर को एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित कर दिया और उसके बिना शरीर के सिर को दिव्य दृष्टि भी प्रदान की थी। ताकी वह पूरा युद्ध अपनी आंखों से देख सकें।

यह खासियत थी बर्बरीक के बाणों की-

श्रीकृष्ण युद्ध में कमजोर पक्ष का साथ देने वाली बर्बरीक की प्रतिज्ञा के बारे में जानते थे। इसलिए, वह बर्बरीक की योग्यता की परीक्षा लेना चाहते थे। उन्होंने बर्बरीक को अपने तीनों बाणों का महत्व बताने को कहा। तब बर्बरीक ने अपने पहले बाण की योग्यता बताते हुए कहा कि यह बाण उन सभी वस्तुओं पर निशान लगा देता है, जिन्हें में खत्म करना चाहता हूं। दूसरा बाण उन सभी वस्तुओं को निशान लगा देता है, जिन्हें में बचाना चाहता हूं। अंतिम बाण पहले बाण से निशान लगाई सभी वस्तुओं का विनाश कर देता है। अंत में तीनों बाण पुनः मेरे के पास लौट आएंगे।

युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने सभी योद्धाओं से एक सवाल किया था कि वह योद्धा अकेले इस युद्ध को कितने दिनों में खत्म कर सकता है। श्रीकृष्ण के इस सवाल पर सभी योद्धाओं ने अपनी-अपनी योग्यताओं के अनुसार इसका उत्तर दिया। भीष्म ने बीस दिन, द्रोणार्चाय ने पच्चीस, कर्ण ने चौबीस और अर्जुन ने अट्ठाईस दिनों में युद्ध को अकेले समाप्त करने की बात कही थी। यही सवाल जब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा, तब उसने एक ही क्षण में युद्ध खत्म करने की बात कही थी। बर्बरीक की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण को उसकी योग्याता पर विश्वास हो गया था।

श्रीकृष्ण ने ली थी बर्बरीक की परीक्षा-

बर्बरीक की यह बात सुन भगवान कृष्ण ने उसे इन बाणों का प्रयोग करके दिखाने को कहा। एक पेड़ की सभी पत्तियों में अपने एक ही बाण से छेद करके दिखाने को कहा और उसकी योग्यता का पता लगाने के लिए उस पेड़ के एक पत्ते को अपने पैर के नीचे रख दिया। बर्बरीक के बाणों से उस पेड़ के सभी पत्तों के साथ श्रीकृष्ण के पैरों के नीचे रखे पत्ते पर भी छेद कर दिया। बर्बरीक का यह पराक्रम देख कर श्रीकृष्ण को उसकी योग्यता पर विश्वास हो गया था।

कृष्ण ने दिया था उसे खाटू श्याम होने का वरदान-

बर्बरीक के महान दान से खुश होकर भगवान कृष्ण ने उसे कलियुग में खाटुश्याम के नाम से पूजित होने का वरदान भी दिया था। राजस्थान स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर में श्रीकृष्ण के वरदान स्वरूप बर्बरीक ही खाटू श्याम के रूप में हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-great-warrior-barbarik-of-mahabharat-in-hindi-news-hindi-5501771-PHO.html

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