Friday, March 31, 2017

कौन था महिषासुर क्यों पड़ा उसका ये नाम, जानें अनोखी कहानी


नवदुर्गा में से एक कात्यायन ऋषि की कन्या ने ही महिषासुर का वध किया था। उसका वध करने के बाद वे महिषासुर मर्दिनी कहलाई। 

कौन था महिषासुर?
महिषासुर दानवराज रम्भासुर का पुत्र था, जो बहुत शक्तिशाली था। कथा के अनुसार महिषासुर का जन्म पुरुष और महिषी (भैंस) के संयोग से हुई थी। इसलिए उसे महिषासुर कहा जाता था। वह अपनी इच्छा के अनुसार भैंसे व इंसान का रूप धारण कर सकता था। उसने अमर होने की इच्छा से ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की। ब्रह्माजी उसके तप से प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और इच्छानुसार वर मांगने को कहा। महिषासुर ने उनसे अमर होने का वर मांगा। ब्रह्माजी ने कहा जन्मे हुए जीव का मरना तय होता है। तुम कुछ और वरदान मांगो। महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- आप मुझे ये आशीर्वाद दें कि देवता, असुर और मानव कोई भी मुझे न मार पाए। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु हो। ब्रह्माजी 'एवमस्तु' यानी ऐसा ही हो कहकर अपने लोक चले गए।

वरदान पाकर लौटने के बाद महिषासुर सभी दैत्यों का राजा बन गया। उसने दैत्यों की विशाल सेना का गठन कर पाताल लोक और मृत्युलोक पर आक्रमण कर सभी को अपने अधीन कर लिया। फिर उसने देवताओं के इन्द्रलोक पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव ने भी देवताओं का साथ दिया, लेकिन महिषासुर के हाथों सभी को पराजय का सामना करना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया। वह तीनों लोकों का अधिपति बन गया।

जब सभी देव भगवान विष्णु के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि आप भगवती महाशक्ति की आराधना करें। सभी देवताओं ने आराधना की। तब भगवती का जन्म हुआ। इन देवी की उत्पत्ति महिषासुर के अंत के लिए हुई थी, इसलिए इन्हें 'महिषासुर मर्दिनी' कहा गया। समस्त देवताओं के तेज से प्रकट हुई देवी को देखकर पीड़ित देवताओं की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल दिया।

भगवान विष्णु ने देवी को चक्र प्रदान किया। इसी तरह, सभी देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिए। इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार और दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिए उस देवी को अर्पित कर दिया। विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से शोभित किया।अब बारी थी युद्ध की। थोड़ी देर बाद महिषासुर ने देखा कि एक विशालकाय रूपवान स्त्री अनेक भुजाओं वाली और अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर शेर पर बैठ उसकी ओर आ रही है।

महिषासुर की सेना का सेनापति आगे बढ़कर देवी के साथ युद्ध करने लगा। उदग्र नामक महादैत्य भी 60 हजार राक्षसों को लेकर इस युद्ध में कूद पड़ा। महानु नामक दैत्य एक करोड़ सैनिकों के साथ, अशीलोमा दैत्य पांच करोड़ और वास्कल नामक राक्षस 60 लाख सैनिकों के साथ युद्ध में कूद पड़े। सारे देवता इस महायुद्ध को बड़े कौतूहल से देख रहे थे। दानवों के सभी अचूक अस्त्र-शस्त्र देवी के सामने बौने साबित हो रहे थे। रणचंडिका देवी ने तलवार से सैकड़ों असुरों को एक ही झटके में मौत के घाट उतार दिया और असुरों की पूरी सेना के साथ ही महिषासुर का भी वध कर दिया।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-according-to-hindu-mythology-mahishasura-news-hindi-5562159-PHO.html

Thursday, March 30, 2017

ज्वालामुखी देवी


 

हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर स्तिथ है ज्वालामुखी देवी। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। मान्यता है यहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहाँ पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहाँ पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।  इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।

अकबर और ध्यानु भगत की कथा (Akbar & Dhyanu bhagat Story)
इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुडी है। जिन दिनों भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था,उन्हीं दिनों की यह घटना है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक धयानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली मे उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया।

बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं।
अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है ? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं।
अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई।
ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से ज़िंदा कर दिया।
यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया | उसने अपनी सेना बुलाई और खुद  मंदिर की तरफ चल पड़ा | वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई | उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं।| तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन (पचास किलो) सोने  का छतर चढ़ाया | लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया |
आप आज भी वह बादशाह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं |
पास ही गोरख डिब्बी का चमत्कारिक स्थान :
मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। थोडा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। कहते है की यहाँ गुरु गोरखनाथ जी पधारे थे और कई चमत्कार दिखाए थे।  यहाँ पर आज भी एक पानी का कुण्ड है जो देख्नने मे खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे पानी ठंडा है। ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि.मी. की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. कि दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है।

चमत्कारिक है ज्वाला :
पृत्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकला वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहाँ पर ज्वाला प्राकर्तिक न होकर चमत्कारिक है क्योंकि अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती ऊर्जाका इस्तेमाल किया जाए। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस ऊर्जाको नहीं ढूंढ पाए। वही अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाए। यह दोनों बाते यह सिद्ध करती है की यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।

यहां पहुंचे कैसे?
यहां पहुंचना बेहद आसान है। यह जगह वायु मार्ग, सड़क मार्ग और रेल मार्ग से अच्छी तरह जुडी  हुई है।

वायु मार्ग
ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहा से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग
रेल मार्ग से जाने वाले यात्रि पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मरांदा होते हुए पालमपुर आ सकते है। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरो से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। यात्री अपने निजी वाहनो व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहा तक पहुंच सकते है। दिल्ली से ज्वालाजी के लिए दिल्ली परिवहन निगम की सीधी बस सुविधा भी उपलब्ध है।

Tuesday, March 28, 2017

चैत्र नवरात्रि

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी हिंदू नव वर्ष का पहला दिन। इसी दिन से वासंतिक नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है। इन 9 दिनों में मां दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है। हिंदू परिवारों में नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है, जिसमें ज्वारे (एक प्रकार का धान) बोया जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है-

घट स्थापना की विधि

सबसे पहले उस स्थान को गाय के गोबर से लीपें, जहां घट स्थापना की जानी है। एक बड़े मिट्टी के दीपक में जौ बोएं। इस दीपक को पूजा के स्थान पर स्थापित कर दें। अब अपनी इच्छा के अनुसार मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश लें। इस कलश में कुएं का पानी भरकर इसमें पूजा की सुपारी, सिक्का, हल्दी की गांठ डाल दें। अब इस कलश के ऊपर पान (डंठल वाले) या अशोक के पत्ते के साथ नारियल रख दें। यह कलश पूजन स्थान पर स्थापित कर दें। कलश के नीचे थोड़े गेहूं भी रखें। अबीर, गुलाल, कुंकुम, फूल व चावल से इस कलश की पूजा करें।

अखंड ज्योत जलाने की विधि
घट स्थापना के साथ अखंड ज्योत भी जलाई जाती है। इसके लिए पूजा स्थान पर ही गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं तथा कुमकुम, चावल व फूल से उसकी पूजा करें। नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए दीपक की स्थापना करें-

भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।

इसलिए विशेष है चैत्र नवरात्रि

हिंदू धर्म के अनुसार वर्ष में चार नवरात्रि होती है। इनमें प्रमुख है चैत्र व आश्विन नवरात्रि। इनके अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती है, लेकिन अधिकांश लोग इन दो नवरात्रियों के बारे में ही जानते हैं। इस बार चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 28 मार्च मंगलवार, से हो रहा है। चैत्र व आश्विन मास में आने वाली इन दोनों नवरात्रियों के बीच कुछ समानताएं हैं जो इस प्रकार हैं-
ऋतु विज्ञान के अनुसार, ये दोनों मास (चैत्र व आश्विन) गर्मी और सर्दी की संधि के महत्वपूर्ण मास हैं। शीत का आगमन आश्विन से प्रारंभ हो जाता है और ग्रीष्म का चैत्र से। ऋतु मूलक बासंती संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से और नक्षत्र मूलक शारदीय नव वर्ष आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ हो जाता है। उक्त दोनों संवत्सरों के प्रारंभिक नौ दिन 'नवरात्र' नाम से प्रसिद्ध हैं।
'
नव' शब्द नवीन अर्थक और नौ संख्या का वाचक हैं। अत: नूतन संवत्सर के प्रारंभिक दिन होने के कारण उक्त दिनों को 'नव' कहना सुसंगत है तथा दुर्गाओं की संख्या भी 'नौ' होने से नौ दिन तक उपासना होती है। कृषि प्रधान देश भारत में फसलों की दृष्टि से भी 'आश्विन' और 'चैत्र' मास का विशेष महत्व है। चैत्र में आषाढ़ी फसल अर्थात गेहूं, जौं आदि और आश्विन में श्रावणी फसल धान तैयार होकर घरों में आने लगते हैं। अत: इन दोनों अवसरों पर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है।

Friday, March 24, 2017

मंत्र जप करने का क्या कारण है, जानें इस मान्यता का सही कारण

हिंदू धर्म में मंत्र जपने का बहुत महत्व है। मन को एक तंत्र में लाना ही मंत्र होता है। यदि आपके मन में एक साथ कई विचार चल रहे हैं तो उन सभी को समाप्त करके मात्र एक विचार को स्थापित करना ही मंत्र का लक्ष्य होता है।

यह लक्ष्य पाने के बाद आपका दिमाग एक ही दिशा में गति करने वाला होगा।जब ऐसा हो जाता है तो कहते हैं कि मंत्र सिद्ध हो गया। ऐसा मंत्र को लगातार जपते रहने से होता है। दरअसल, मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। अब सवाल यह उठता है कि सिद्ध होने के बाद क्या होता है या कि उसका क्या लाभ?

मंत्र जप क्यों?
मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है, मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है और मं‍त्र से किसी यक्षिणी और यक्ष को भी साधा जाता है। 'मंत्र साधना' भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है। यदि आपके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या या बाधा है तो उस समस्या को मंत्र जप के माध्यम से हल कर सकते हैं। मंत्र के द्वारा हम खुद के मन या मस्तिष्क को बुरे विचारों से दूर रखकर उसे नए और अच्छे विचारों में बदल सकते हैं।

किसी मंत्र, भगवान का नाम या किसी श्लोक का जप करना हिंदू धर्म में वैदिक काल से ही प्रचलित रहा है। जप-साधना में मंत्रों की निश्चित संख्या होती है। इसलिए जप में गणना जरूरी है। जप गणना के लिए माला का उपयोग किया जाता है। हिंदू शास्त्रों में जप करने के तरीके और महत्व को बताया गया है। कहते हैं कि बौद्ध धर्म के कारण यह परंपरा अरब और यूनान में प्रचलित हो गई।

 माला नियम
जप करते वक्त माला फेरी जाती है जिससे जप संख्या का पता चलता है। यह माला 108 मनकों की होती है। जिस माला से जाप करें, उसे दाहिने हाथ में रखना चाहिए। जप करते समय माला का भूमि पर स्पर्श नहीं होना चाहिए।
माला के प्रकार
रक्त चंदन, लाल चंदन, मूंगा, स्फटिक, रुद्राक्ष, काठ, तुलसी, मोती, कीमती पत्थर एवं कमल गट्टे आदि प्रकार की माला होती है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-GYVG-benefits-of-mantra-chanting-news-hindi-5512657-PHO.html

Thursday, March 23, 2017

इन 4 का अपमान गलती से भी न करें, वरना नर्क में झेलनी पड़ेगी कई सजाएं

वाल्मीकि रामायण में 4 ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जिनका अपमान करना महापाप है। इन 4 का अपमान करने वाला चाहे कितनी ही पूजा-पाठ या दान-धर्म कर ले, लेकिन उसका पाप नहीं मिटता और उसे इसकी सजा भुगतनी ही पड़ती है। इसलिए, ध्यान रखें कि भूलकर भी आपसे इन 4 लोगों का अपमान न हो जाए।

जानें कौन हैं ये 4 लोग-
मातरं पितरं विप्रमाचार्य चावमन्यते।
स पश्यति फलं तस्य प्रेतराजवशं गतः।।

1. माता

मां को भगवान का दर्जा दिया जाता है। कई धर्म ग्रंथों में मां का सम्मान करने और भूलकर भी उनका अपमान न करने के बारे में बताया गया है। माता की सेवा करने वाला मनुष्य जीवन में सभी सफलताएं पाता है। इसके विपरीत उनका अपमान करने वाला मनुष्य कभी खुश नहीं रह पाता। ऐसे मनुष्य पर भगवान भी रूठे हुए रहते हैं और उसे अपने किसी भी पुण्य कर्म का फल नहीं मिलता। इसलिए, ध्यान रखें किसी भी परिस्थिति में अपनी माता का अपमान न करें।

2. पिता

हर मनुष्य को अपने माता-पिता में ही अपना पूरा विश्व जानना चाहिए। जो व्यक्ति अपने पिता का सम्मान नहीं करता, उनकी आज्ञा का पालन नहीं करता, वह पशु के समान माना जाता है। माता-पिता का अपमान करना मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण माना जाता है। ऐसा करने वाला मनुष्य चाहे कितनी ही तरक्की कर ले, लेकिन वह समाज में मान-सम्मान नहीं पाता। इसलिए किसी को भी अपने पिता का अपमान बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।

3. गुरु या शिक्षक

हमें शिक्षा और ज्ञान देने वाले को गुरु कहा जाता हैं। गुरु का दर्जा बहुत ऊंचा माना जाता है। सभी धर्म ग्रंथों में गुरु का सम्मान करने की बात कही गई है। जो छात्र अपने गुरु का सम्मान नहीं करता, उनकी दी गई शिक्षा का अनादर करता है, वह कभी भी सफलता हासिल नहीं कर पाता। गुरु का अपमान करने वालों को कभी भी सम्मान नहीं मिलता। ये एक ऐसा पाप कहा गया है, जिसका प्रायश्चित किसी भी तरह नहीं किया जा सकता। इसलिए कभी भी अपने गुरुओं का अपमान नहीं करना चाहिए।

4. ज्ञानी या पंडित

ज्ञानी और पंडित देवतुल्य माने जाते हैं। वे भी देवताओं के समान पूजनीय होते हैं। ज्ञानी लोगों की संगति से हमें कई लाभ होते हैं, हमारी किसी भी मुश्किल परिस्थिति का हल ज्ञानी मनुष्य अपनी सूझ-बूझ और अनुभव से निकाल सकता है। ऐसे लोगों का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों का अपमान  करना महापाप कहा जाता है और इसके कई दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। इसलिए, ज्ञानी या पंडितों का हमेशा सम्मान करें।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-never-disrespect-these-4-people-news-hindi-5553289-PHO.html

Wednesday, March 22, 2017

आए दिन घर-परिवार में होते हैं लड़ाई-झगड़े, ये 3 बातें हो सकती है कारण

गरुडपुराण में 3 ऐसे बातों के बारे में बताया गया है, जो घर-परिवार में लड़ाई-झगड़ों का कारण बनते हैं। इन बातों पर ध्यान न दिया जाए तो परिवार के लोगों में दूरियां बढ़ती ही जाती है। जो मनुष्य घर में चल रहे क्लेश को खत्म करके स्थाई यानी जीवनभर सुख और शांति चाहता है, उसे तो यह तीन आदतें तुरंत ही छोड़ देना चाहिए।
श्लोक-
यदीच्छेच्छाश्र्वतीं प्रीतिं त्रीन् दोषान् परिवर्जयेत्।
धूतमर्थप्रयोगं च परोक्षे दारदर्शनम्।।

1. पैसों का लेन-देन करना
पैसा हर किसी के जीवन का आधार होता है। पैसों के बिना सुखी जीवन की कामना करना संभव नहीं होता। कई लोग बिना मेहमत किए पैसों की चाह रखते हैं, जिसके चलते वे अपने मित्रों और रिश्तेदारों से पैसों का देन-लेन करते रहते हैं। कई बार यही बात मनुष्य के संबंधों की बर्बादी का कारण भी बन जाती है। यह आदत मनुष्य के संबंधों के साथ उसकी सुख-शांति भी छीन सकती है। इसलिए जितनी जल्दी हो सकें इस आदत को छोड़ देना चाहिए।
2. जुआ खेलना
जुआ खेलना कई लोगों की आदत में आ जाता है। कई लोग इसे स्टेटस सिंबल भी मानते हैं, लेकिन यह आदत किसी भी मनुष्य के मान-सम्मान और जीवन को खत्म कर सकती है। जुए की लत में मनुष्य अपना लालच पूरा करने के लिए खुद के साथ-साथ अपने परिवार के भी नुकसान का कारण बन जाता है। यह आदत किसी के भी जीवन को दुःखों और शर्मिदगी से भर सकती है। जितनी जल्दी हो सके इसे छोड़ने में ही भलाई होती है।
3. स्त्रियों को बुरी नजर से देखना
काम भावना मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरियों में से एक होती है। हर किसी को अपने काम भाव पर नियंत्रण रखना चाहिए, वरना यही बात उसके लिए दुःखों और परेशानियों का कारण भी बन सकती है। जो मनुष्य पराई स्त्रियों को बुरी नजर से देखता है, वह अपनी काम भावना को शांत करने के लिए किसी के भी साथ बुरा व्यवहार भी कर सकता है। जिसकी वजह से उसका पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है। स्थाई सुख चाहने वालों के ऐसा भावनाएं त्याग देनी चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-3-reason-cause-fights-in-family-news-hindi-5554668-PHO.html

Tuesday, March 21, 2017

शास्त्रों से- घर में न रखें ये 4 चीजें, वरना बढ़ता है दुर्भाग्य

पूजा-पाठ में हम कई प्रकार की चीजों का उपयोग करते हैं। कुछ चीजें स्थाई रूप से पूजा में काम आती हैं तो कुछ चीजें हर बार खरीदकर लानी होती हैं। कभी-कभी जाने-अनजाने हम घर में पूजा से जुड़ी कुछ ऐसी चीजें रखी रहने देते हैं जो नकारात्मकता बढ़ाती है, जिनकी वजह से देवी-देवताओं की कृपा नहीं मिल पाती है और घर में दरिद्रता का आगमन हो जाता है।

सूखे हार-फूल
घर में जब भी पूजा-पाठ होता है तो भगवान को हार-फूल अवश्य चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद कभी-कभी ये हार-फूल घर में ही रखे-रखे सूख जाते हैं और ऐसे ही पड़े रहते हैं। सूखे हार-फूल घर में रखना अशुभ माना गया है। इसीलिए इन्हें घर के गमलों में डाल देना चाहिए। ताकि अन्य पौधों के लिए ये खाद का काम कर सके।

सूखा तुलसी का पौधा
घर में तुलसी होना बहुत शुभ रहता है और जो लोग नियमित रूप इसकी पूजा भी करते हैं, उन्हें धर्म लाभ के साथ ही आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। यदि किसी कारण के तुलसी का पौधा सूख जाता है तो उसे घर में नहीं रखना चाहिए। ये अशुभ माना गया है। यदि आप चाहें तो सूखे पौधे को किसी तालाब में या नदी में प्रवाहित कर सकते हैं।

टूटे या खंडित दीपक
पूजा में हमेशा अखंडित दीपक का ही उपयोग करना चाहिए। यदि दीपक मिट्टी का है और कहीं से थोड़ा सा भी टूट जाए तो पूजा में उसका उपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसे दीपक को घर में भी नहीं रखना चाहिए।

खंडित मूर्तियां
घर के मंदिर में या घर में किसी भी प्रकार से खंडित मूर्तियों को नहीं रखना चाहिए। यदि मिट्टी की कोई मूर्ति खंडित हो जाए या किसी धातु की कोई मूर्ति किसी कारण से टेढ़ी-मेढ़ी हो जाए तो उसे भी घर में नहीं रखना चाहिए। ऐसी मूर्तियों को किसी में पीपल के नीचे रख देना चाहिए या किसी नदी-तालाब में प्रवाहित कर देना चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JYO-RAN-worship-tips-and-money-problems-we-should-remember-these-thing-in-pray-news-hind-5553422-.html