हिंदू धर्म में आरती के बाद भगवान का चरणामृत दिया जाता है। इस शब्द का अर्थ
है भगवान के चरणों से प्राप्त अमृत। इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है व मस्तक से
लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। इसे अमृत के समान माना गया है। कहते हैं
भगवान श्रीराम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं
भव-बाधा से पार हो गया, बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया। चरणामृत का
महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है। चरणामृत का जल हमेशा तांबे के
पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को खत्म करने की शक्ति
होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से
लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है, जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि
चरणामृत मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को
बढ़ाता है।
It true
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