हमारे यहां हर धर्म के देवस्थलों पर नंगे पांव प्रवेश करने का रिवाज है। चाहे मंदिर हो या मस्जिद गुरुद्वारा हो या जैनालय सभी धर्मों के देवस्थलों के पर सभी श्रद्धालु जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही प्रवेश करते हैं। दरअसल, देवस्थानों का निर्माण कुछ इस प्रकार से किया जाता है कि उस स्थान पर काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती रहती है।
नंगे पैर जाने से वह ऊर्जा पैरों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती
है। जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक रहती है। साथ ही, नंगे पैर चलने से एक्यूप्रेशर के फायदे भी मिलते हैं।
दरअसल, आजकल अधिकांश लोग
घर में भी हर समय चप्पल पहनें रहते हैं। इसलिए हम देवस्थानों में जाने से पूर्व
कुछ देर ही सही पर जूते-चप्पल रूपी भौतिक सुविधा का त्याग करते हैं।
इस त्याग को तपस्या के रूप में भी देखा जाता है। जूते-चप्पल में लगी गंदगी से मंदिर की
पवित्रता भंग ना हो, इस वजह से भी देवस्थानों में नंगे पैर जाते हैं।
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