धार्मिक कार्यक्रम में या सामान्यत: किसी भी पूजा-अर्चना में घर के मुख्यद्वार
पर या बाहर की दीवार स्वस्तिक का निशान बनाकर स्वस्ति वाचन करते हैं। स्वस्तिक
श्रीगणेश का ही प्रतीक स्वरूप है। किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक के
नहीं किया जा सकता। चूंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, इसलिए स्वस्तिक का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्रीगणेश का पूजन कर उनसे
विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुख्य द्वार पर श्रीगणेश का चित्र या स्वस्तिक
बनाने से घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। ऐसे घर में हमेशा गणेशजी कृपा
रहती है और धन-धान्य की कमी नहीं होती। साथ ही, स्वस्तिक धनात्मक
ऊर्जा का भी प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो
जाती है। स्वस्तिक का चिन्ह वास्तु के अनुसार भी कार्य करता है, इसे घर के बाहर भी बनाया जाता है जिससे स्वस्तिक के प्रभाव से हमारे घर पर
किसी की बुरी नजर नहीं लगती और घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है। इसी वजह से
घर के मुख्य द्वार पर श्रीगणेश का छोटा चित्र लगाएं या स्वस्तिक या अपने धर्म के
अनुसार कोई शुभ या मंगल चिन्ह लगाएं।
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