Saturday, May 14, 2016

भगवान शिव के अवतार हैं आदि शंकराचार्य


आदि शंकराचार्य, जिन्हें शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है, वेदांत के अद्वैत मत के प्रणेता थे। स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। इनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पंचमी को हुआ था।
आदि शंकराचार्य के विषय में कहा गया है-
अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित्
षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्
अर्थात् आदि शंकराचार्य 8 वर्ष की आयु में चारों वेदों में निपुण हो गए, 12 वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, 16 वर्ष की आयु में शांकरभाष्य की रचना की तथा 32 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
ब्रह्मसूत्र के ऊपर शांकरभाष्य की रचना कर विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास भी शंकराचार्य के द्वारा किया गया है, जो कि सामान्य मानव के लिए सम्भव नहीं है। जिस समय हिंदू धर्म अपनी गरिमा खोता जा रहा था तथा अन्य धर्म हिंदू धर्म को नष्ट करने के लिए प्रयासरत थे। उस समय आदि गुरु शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा हिंदू धर्म को उसका गौरव पुन: दिलाया।
उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के 4 क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया। तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है। ये चार मठ इस प्रकार हैं-
1.
उत्तरामण्य मठ या उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ में स्थित है।
2.
पूर्वामण्य मठ या पूर्वी मठ, गोवर्धन मठ जो कि पुरी में स्थित है।
3.
दक्षिणामण्य मठ या दक्षिणी मठ, शृंगेरी शारदा पीठ जो कि शृंगेरी में स्थित है।
4.
पश्चिमामण्य मठ या पश्चिमी मठ, द्वारिका पीठ जो कि द्वारिका में स्थित है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-aadi-shankrachraya-jayanti-tomorrow-11-may-5319773-NOR.html

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