Tuesday, May 31, 2016

सूर्यास्त के समय नहीं करनी चाहिए पढ़ाई


सनातन धर्म में दैनिक दिनचर्या से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। उन्हीं में से एक है सूर्यास्त के समय पढ़ाई न करने की। दरअसल, ये पंरपरा पूरी वैज्ञानिक सोच के साथ बनाई गई है, क्योंकि सूर्यास्त के समय सूर्य का प्रकाश कुछ धुंधला सा हो जाता है। इसलिए इस समय किसी भी तरह की लाइट में पढऩे पर आंखों पर अधिक जोर पड़ता है और आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

कहते हैं शाम के समय पढ़ाई नहीं करना चाहिए। इस समय तो पूरे भक्तिभाव से भगवान की पूजा-अर्चना व संध्या करनी चाहिए। इस संबंध में विद्वानों की मान्यता है कि सूर्यास्त के समय पढ़ाई करने से एकाग्रता में कमी आती है। साथ ही यश, लक्ष्मी, विद्या आदि सभी का नाश हो जाता है।

Monday, May 30, 2016

नहाने से पहले खाना क्यों नहीं खाना चाहिए?


गङ्गेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वति
नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु
आपने घर के बुजुर्गों को यह कहते हुए सुना होगा कि नहाने से पहले खाना नहीं खाना चाहिए। हालांकि वर्तमान समय में इन बातों पर गौर नहीं किया जाता, लेकिन इस तथ्य के पीछे न सिर्फ धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार स्नान से शरीर के हर भाग को नया जीवन मिलता है। शरीर पर एकत्र हर तरह का मैल नहाने से साफ हो जाता है और एक नई ताजगी व स्फूर्ति आ जाती है। जिससे स्वाभाविक रूप से भूख लगती है। उस समय किए गए भोजन का रस हमारे शरीर के लिए पुष्टिवर्धक होता है।जबकि नहाने से पहले कुछ भी खाने से हमारी जठराग्नि उसे पचाने में लग जाती है।
नहाने पर शरीर ठंडा हो जाता है जिससे पेट की पाचन शक्ति धीमी हो जाती है। इसके कारण आंते कमजोर हो जाती हैं व कब्ज की शिकायत रहती है। इसके अलावा अन्य कई तरह के रोग हो सकते हैं। इसलिए नहाने से पहले भोजन करना वर्जित माना गया है।आवश्यक हो तो गन्ने का रस, पानी, दूध, फल व दवा नहाने से पहले ली जा सकती है, क्योंकि इनमें पानी की मात्रा अधिक होती है।

Saturday, May 28, 2016

मंदिर में चप्पल पहनकर क्यों नहीं जाते हैं?


हमारे यहां हर धर्म के देवस्थलों पर नंगे पांव प्रवेश करने का रिवाज है। चाहे मंदिर हो या मस्जिद गुरुद्वारा हो या जैनालय सभी धर्मों के देवस्थलों के पर सभी श्रद्धालु जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही प्रवेश करते हैं। दरअसल, देवस्थानों का निर्माण कुछ इस प्रकार से किया जाता है कि उस स्थान पर काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती रहती है।

नंगे पैर जाने से वह ऊर्जा पैरों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है। जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक रहती है। साथ ही, नंगे पैर चलने से एक्यूप्रेशर के फायदे भी मिलते हैं। दरअसल, आजकल अधिकांश लोग घर में भी हर समय चप्पल पहनें रहते हैं। इसलिए हम देवस्थानों में जाने से पूर्व कुछ देर ही सही पर जूते-चप्पल रूपी भौतिक सुविधा का त्याग करते हैं। इस त्याग को तपस्या के रूप में भी देखा जाता है। जूते-चप्पल में लगी गंदगी से मंदिर की पवित्रता भंग ना हो, इस वजह से भी देवस्थानों में नंगे पैर जाते हैं।

Friday, May 27, 2016

भगवान को फूल चढ़ाने के क्या हैं फायदे?


हिंदू धर्म में भगवान को पुष्प या फूल चढ़ाने को विशेष महत्व दिया गया है। देवी-देवताओं और भगवान को आरती, व्रत, उपवास या त्योहारों पर फूल चढाएं जाते हैं। धार्मिक, अनुष्ठान, संस्कार व सामाजिक कार्यों को बिना फूलों के अधूरा समझा जाता है, लेकिन फिर भी कम ही लोग ये जानते हैं कि भगवान को फूल क्यों चढाएं जाते है। यदि आप भी इसका कारण नहीं जानते हैं तो आइए हम आपको बताते हैं क्या कहते हैं धर्मग्रंथ….

हमारे धर्मग्रंथों मे पुष्प के बारे में कहा गया है

पुण्य संवर्धनाच्चापि पापौघपरिहारत। पुष्कलार्थप्रदानार्थ पुष्पमित्यभिधीयते।।
अर्थ- इसका मतलब है पुण्य को बढ़ाने, पापों को घटाने और फल को देने के कारण ही इसे पुष्प या फूल कहा जाता है।

दैवस्य मस्तकं कुर्यात्कुसुमोपहितं सदा।
अर्थ- देवता का मस्तक या सिर हमेशा फूलों से सुशोभित रहना चाहिए।

पुष्पैर्देवां प्रसीदन्ति पुष्पै देवाश्च संस्थिता
न रत्नैर्न सुवर्णेन न वित्तेन च भूरिणा
तथा प्रसादमायाति यथा पुष्पैर्जनार्दन।

अर्थ- देवता लोग रत्न, सुवर्ण, भूरि, द्रव्य, व्रत, तपस्या या और किसी चीज से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना फूल या पुष्प चढ़ाने से होते हैं।

फूल चढ़ाने का ये है बड़ा कारण
मान्यता है कि पुष्प अर्पित करने से भगवान तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं। फूलों की सुगंध से हमारे घर का वातावरण महकता रहता है, जिससे मन को शांति मिलती है। दिमाग में हमेशा सकारात्मक विचार आते हैं। नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव घर से नष्ट हो जाता है।
ये हमें अच्छा जीवन जीने की भी प्रेरणा देते हैं। फूलों का जीवन कम अवधि का होता है, लेकिन फिर भी वे जब तक मुरझा नहीं जाते तब तक वातावरण में सुगंध फैलाते रहते हैं। इसी प्रकार हमें भी समाज में ऐसा ही स्वभाव रखना चाहिए जिससे हमारे आस-पास लोगों को सुख की प्राप्ति हो सके।

फूलों से दूर होता है वास्तुदोष
वास्तु शास्त्र के अनुसार भी घर में बगीचा होना अनिवार्य बताया गया है। घर के बाहर की वाटिका घर के कई वास्तु दोषों को समाप्त कर देती है। फूल सुगंध और सौंदर्य के प्रतीक हैं। घर के आगे ब्रह्म कमल, गुड़हल, चांदनी, मीठा नीम आदि के पौधे लगाने से हर तरह के वास्तुदोष का नाश होता है।
इसके अलावा पारिजाद, मोगरा, गेंदा व सेवंती के फूलों को भी घर के आंगन में लगाना अच्छा माना गया है। इन सभी फूलों के पौधों को घर की सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने वाला व जीवन में खुशहाली लाने वाला माना गया है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-GYVG-what-are-the-advantages-of-a-wreath-to-god-5331960-NOR.html

Thursday, May 26, 2016

क्यों जरूरी मानी जाती है मंदिरों और तीर्थों की यात्रा


आधुनिक युग में सभी अपने कामों और परेशानियों में इतना व्यस्त हो गए हैं कि कई लोग मंदिरों और तीर्थों की यात्रा पर जाना तो दूर उसके बारे में सोचते तक नहीं। सामान्यतः लोग तीर्थ यात्रा के पीछे पर दान-पुण्य, पापों से मुक्ति आदि कारण ही समझते हैं, लेकिन वास्तव में मंदिर और तीर्थों की यात्रा पर जाने से और भी कई फायदे मिलते हैं। जिनकी वजह से हर किसी को नियमित रूप से मंदिर और तीर्थों पर जाना चाहिए।
1. ऊर्जा का केन्द्र
मंदिरों और तीर्थों को ऊर्जा का केन्द्र माना जाता है। कहा जाता है कि जो ऊर्जा इन जगहों पर रहती है, वह और कहीं नहीं पाई जाती। यही कारण है कि मंदिर या तीर्थ पर जाकर मनुष्य का मन शांत और ऊर्जावान हो जाता है। नियमित रूप से मंदिर जाने वाला हमेशा ऊर्जा और सकारात्मक सोच से भरा होता है। वह अपने सभी कामों को पूरी लगन और ऊर्जा से करता है।
2. सेहतमंद बनाता है
तीर्थ और मंदिरों की यात्रा स्वास्थ्य की नजर से भी फायदेमंद मानी जाती है क्योंकि जिस जगह पर मंदिर होता है, वहां का वातावरण एकदम स्वच्छ होता है। वहां का हरा-भरा वातावरण आंखों को राहत और ठंडक देता है। सामान्यतः मंदिरों में सीढ़ियां होती ही हैं, जिन्हें लगातार चढ़ने-उतरने से और भजन-कीर्तन में तालियों के साथ गाने से हथेली और तलवे पर दबाव पड़ता है, जिसे एक्यूप्रेशर कहते हैं। एक्यूप्रेशर कई रोगों को दूर करने में मदद करता है।
3. ज्ञानवर्धक
स्वास्थ्य के साथ-साथ तीर्थ यात्रा हमारे आध्यात्मिक, भौगोलिक औक ऐतिहासिक ज्ञान भी बढ़ाती है। यात्रा के दौरान कई जगहों का इतिहास और महत्व जानने को मिलता है। साथ ही उस जगह से जुड़ी कला, संस्कृति, परंपरा आदि के बारे में भी ज्ञान मिलता है।
4. नए लोगों से मुलाकात
तीर्थ यात्रा की मदद से हम अपने घर-परिवार के अलावा भी अन्य लोगों के संपर्क में आते हैं, जिससे हमारी जान-पहचान में वृद्धि होती है। जिसकी वजह से हमे कई बोलियां, रीति-रिवाज और खान-पान आदि के बारे में जानने का मौका मिलता है। तीर्थों की यात्रा करने से मनुष्य हर परिस्थित में रहना और दूसरों के प्रति अपनेपन का भाव सिखता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DHAJ-importance-of-visiting-temples-and-tirth-in-hindi-5331975-PHO.html

Wednesday, May 25, 2016

रुद्राक्ष से जुड़ी ये बातें, सब लोग नहीं जानते हैं

रुद्राक्ष यानि रुद्र+अक्ष, रुद्र अर्थात भगवान शंकर व अक्ष अर्थात आंसू। भगवान शिव के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें भूमि पर गिरने से महान रुद्राक्ष अवतरित हुआ। उसके बाद भगवान शिव की आज्ञा पाकर पेड़ों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए।
धार्मिक कारण
शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने ही इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्माजी से करवाया है। इसलिए सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसके साथ शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से ही भक्त के सभी दुख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। रुद्राक्ष को चंद्र कारक रत्न माना गया है।एकाग्रता के लिए रुद्राक्ष धारण करने के निर्देश प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं।
वैज्ञानिक कारण
रुद्राक्ष एक तरह का फल है। इसमें अनेक औषधीय गुण उपस्थित है। रुद्राक्ष को धारण करने से या इसे पानी में कुछ घंटे रखकर उस पानी को ग्रहण करने से दिल से संबंधित बीमारियां दूर होती है व मानसिक रोगों के साथ ही नसों से जुड़े रोग भी खत्म होते हैं। साथ ही, याददाश्त व एकाग्रता में भी बढ़ोतरी होती है।
रुद्राक्ष के प्रकार
मुख्य रूप से रुद्राक्ष इस प्रकार है। एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव, दो मुखी श्री गौरी-शंकर, तीन मुखी तेजोमय अग्नि, चार मुखी श्री पंचदेव, पांच मुखी सर्वदेवमयी, : मुखी भगवान कार्तिकेय, सात मुखी प्रभु अनंत, आठ मुखी भगवान श्री गणेश, नौ मुखी भगवती देवी दुर्गा, दस मुखी श्री हरि विष्णु, तेरहमुखी श्री इंद्र और चौदह मुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। इसके अलावा श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भी होते हैं।

Tuesday, May 24, 2016

क्यों घर में मकड़ी के जाले अशुभ माने जाते हैं?


आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि घर में मकड़ी के जाले नहीं रहना चाहिए। ये बहुत अशुभ होते है। ये कोई अंधविश्वास नहीं है। इसके पीछे कारण यह है कि मकड़ी के जालों की संरचना कुछ ऐसी होती है। उसमें नकारात्मक उर्जा एकत्रित हो जाती है। इसलिए घर के जिस भी कोने में मकड़ी के जाले होते है। वो कोना नकारात्मक उर्जा से भर जाता है( जिससे घर में कलह, मारियां, व अन्य कई समस्याएं हमारे जीवन को घेरने लगती है।
साथ ही, मकड़ी के एक जाले असंख्य सुक्ष्मजीव रहते हैं। जो कि हमारे स्वास्थय को नुकसान पंहुचाते हैं। इसलिए कहा जाता हैं कि घर में मकड़ी के जाले होते हैं तो घर की सुख-समृद्धि का नाश होने लगता है, क्योंकि नकारात्मक उर्जाओं के कारण घर का माहौल इतना अशांत हो जाता है कि व्यक्ति चाहकर भी अपने काम को मन लगाकर नहीं कर पाता है। इसलिए मकड़ी के जालों को अशुभ माना जाता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-why-are-considered-inauspicious-house-spider-webs-5329818-NOR.html

Monday, May 23, 2016

वाल्मीकि रामायण: ये 3 काम बनते हैं बर्बादी के कारण

वाल्मीकि रामायण भगवान राम के जीवन पर आधारित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें ज्ञान और धर्म की कई बातें बताई गई हैं। वाल्मीकि रामायण में 3 ऐसे काम बताए गए हैं, जो किसी भी मनुष्य का जीवन बर्बाद कर सकते हैं। इसलिए भूलकर भी इन 3 कामों को नहीं करना चाहिए। जानिए कौन से हैं वो 3 काम-
श्लोक-
परस्वानां च हरणं परदाराभिमर्शनम्।
सुह्मदयामतिशंका च त्रयो दोषाः क्षयावहाः।।
1. दूसरों का धन चुराना
जो मनुष्य दूसरों की वस्तु हड़पने या चुराने का प्रयास करता है, वह महापापी माना जाता है। किसी और की वस्तु को छल से पाने या चुराने से मनुष्य के जीवन के सभी पुण्यकर्म नष्ट हो जाते हैं। चोरी की हुई वस्तु से कभी भी लाभ नहीं मिलता, बल्कि उसकी वजह से नुकसान का ही सामना करना पड़ता है। चोरी करने वाले मनुष्य या ऐसे काम में साथ देने वाले मनुष्य को तामिस्र नामक नरक में दुःख भोगना पड़ते हैं। यह काम किसी के भी जीवन को बड़ी ही आसानी से बर्बाद कर सकता है, इसलिए इससे बचना चाहिए।
2. अपने हितैषियों के साथ धोखा करना
हमारे कई दोस्त या परिवारजन होते हैं, जो हम पर सबसे ज्यादा विश्वास करते हैं। ऐसे लोगो के साथ धोखा करना या उनका भरोसा तोड़ना भी किसी पाप से कम नहीं है। अपने हितैषियों का विश्वास तोड़कर हम कुछ समय के लिए लाभ जरूर पा सकते हैं, लेकिन आगे चलकर इसका फल भोगना ही पड़ता है। ऐसा करने पर भगवान भी हम से रूठ जाते हैं और इस काम के फलस्वरूप हमें कई परेशानियों और दुखों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए किसी भी लालच में आकर हमारे अपनों का विश्वार नहीं तोड़ना चाहिए।
3. पराई स्त्री के साथ संबंध बनाना
कई लोग कामातुर होकर पराई स्त्रियों पर बुरी नजर डालते हैं। ऐसी परिस्थिति में सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाते और पराई स्त्री के साथ संबंध बना लेते हैं। धर्म ग्रंथों में इसे पाप कहा गया है। ग्रंथों के अनुसार, इस पाप का प्रायश्चित किसी भी तरह संभव नहीं होता। जो भी मनुष्य ऐसा काम करता है, उसे इसके बुरे परिणाम आज नहीं तो कल झेलना ही पड़ते हैं। पराई स्त्री के साथ समागम करने वाले मनुष्य के को जयंती नामक नरक में उनके पापों की सजा मिलती है। इसलिए हर किसी को इस पाप कर्म से दूर रहना चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-valmiki-ramayana-never-do-these-3-things-in-life-in-hindi-5329597-PHO.html

Saturday, May 21, 2016

गायत्री मंत्र के जप से क्रोध होता है शांत


मंत्र जप एक ऐसा उपाय है, जिससे सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। शास्त्रों में मंत्रों को बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी बताया गया है। सबसे ज्यादा प्रभावी मंत्रों में से एक मंत्र है गायत्री मंत्र। इसके जप से बहुत जल्दी शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।
गायत्री मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं, जप के समय को संध्याकाल भी कहा जाता है।
गायत्री मंत्र के जप का पहला समय है सुबह का। सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए।
मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त से कुछ देर पहले। सूर्यास्त से पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
यदि संध्याकाल के अतिरिक्त गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। गायत्री मंत्र का जाप बोलकर नहीं करना चाहिए। मंत्र जप तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।

गायत्री मंत्र-ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।

गायत्री मंत्र का अर्थ: सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते है, परमात्मा का वह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
इस मंत्र के जप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है। जप से पहले स्नान आदि कर्मों से खुद को पवित्र कर लेना चाहिए। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए मंत्र का जप करना चाहिए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JYO-RAN-importance-and-benefits-of-gayatri-mantra-in-hindi-5328069-PHO.html

Friday, May 20, 2016

क्या महत्व है तीर्थों का

आश्रम में गुरु जी के पास कुछ शिष्यगण बैठे हुए कुछ धार्मिक स्थलों की चर्चा कर रहे थे। एक शिष्य बोला गुरु जी अब की बार गर्मियों में गंगोत्री, यमनोत्री की यात्रा करवा दीजिए। आपके साथ यात्रा का कुछ अलग ही आनंद है। दर्शन के साथ-साथ हर चीज का महत्व भी जीवंत हो जाएगा। दूसरा शिष्य कहने लगा।
गुरु जी आप हमेशा कहते हैं कि ईश्वर व उसकी शक्ति कण-कण में व्याप्त है, वो घट-घट में है, आपमें व मुझमें भी ईश्वर है। गंगा तो यहां भी बह रही है, फिर क्यों गंगोत्री, यमनोत्री जाएं और 15 दिन खराब करें। कहावत भी है मन चंगा तो कठोती में गंगा। गुरु जी एक दम शांत हो गए फिर कुछ देर के बाद बोले -जमीन में पानी तो सब जगह है ना, फिर हमें जब प्यास लगे, जमीन से पानी मिल ही जाएगा तो हमें कुए, तालाब, बावड़ी बनाने की क्या जरूरत है।
कुछ लोग एक साथ बोले ये कैसे संभव है। जब हमें प्यास लगेगी तो कब तो कुंआ खुदेगा और कब पानी निकलेगा और कब उसे पीकर प्यास बुझाएंगे।गुरु जी बोले बस यही तुम्हारे प्रश्न, तुम्हारी जिज्ञासा का उत्तर है। पृथ्वी में हर जगह पानी होने के बावजूद जहां वह प्रकट है या कर लिया गया है, आप वहीं तो प्यास बुझा पाते हैं। इसी तरह ईश्वर जो सूक्ष्म शक्ति है, घट-घट में व्याप्त है, ये तीर्थ स्थल, कुंए और जलाशयों की भांति, उस सूक्ष्म शक्ति के प्रकट स्थल हैं।
जहां किसी महान आत्मा के तप से, श्रम से, उसकी त्रिकालदर्शी सोच से वो सूक्ष्म-शक्ति इन स्थानों पर प्रकट हुई और प्रकृति के विराट आंचल में समा गई। जहां आज भी जब हमें अपनी आत्मशक्ति की जरूरत होती है तो इन स्थलों पर जाकर अपनी विलीन आत्म-शक्ति को प्राप्त करते हैं। दूसरे शब्दों में हमारी इच्छा शक्ति को यहां आत्मशक्ति मिलती है और हमें प्यास लगने पर कुंआ खोदने की जरूरत नहीं होती।

Thursday, May 19, 2016

कैसे तैर गए राम सेतु निर्माण में पत्थर?


माता सीता की खोज के लिए जब प्रभु राम की सेना लंका की ओर चली, तो रास्ते में विशाल समुद्र बड़ी बाधा बनकर सामने आया। सेना सहित समुद्र को पार करना लगभग असंभव था। तीन दिन के इंतजार के बाद जब कोई हल न निकला तो श्रीराम ने गुस्से से अपना धनुष-बाण उठाया और मानव रूप बनाकर प्रकट हुए समुद्र ने उन्हें पुल निर्माण का सुझाव दिया। इसमें बढ़ी बाधा यह थी कि समुद्र की तेज लहरों पर पत्थर कैसे टिकेंगे। समुद्र ने ही इसका समाधान किया।

उसने प्रभु श्रीराम को बताया कि उनकी सेना में नल और नील नाम के दो वानर हैं, जिन्हें बचपन में एक ऋषि से आशीर्वाद मिला था कि उनसे स्पर्श किए पत्थर पानी में तैर जाएंगे। श्रीराम की आज्ञा से नल व नील ने सभी पत्थरों को अपने हाथों से स्पर्श कर वानरों को देते गए, क्योंकि उन्हें पत्थर तैराने का अशीर्वाद मिला हुआ था। इसलिए सारे पत्थर तैर गए और पुल निर्माण आसान हो गया। यह प्रतीकात्मक है। दरअसल नल और नील पुल निर्माण के विशेषज्ञ इंजीनियर थे। समुद्र ने केवल सेना में उनकी उपस्थिति का परिचय भर कराया। बस फिर क्या था श्रीराम की कृपा से प्रसिद्ध राम सेतु बन गया।

Wednesday, May 18, 2016

क्यों करते हैं घर में सत्यनारायण भगवान की कथा ?

भारत में हिंदू धर्मावलंबियो के बीच सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है। उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। विद्वानों की माने तो स्कंद पुराण के रेवाखंड में इस कथा का उल्लेख मिलता है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से करीब 170 श्लोक संस्कृत भाषा मे उपलब्ध है। जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं। जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान।
व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दंड स्वरूप संपति और बंधु बांधवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। अक्सर पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।

Tuesday, May 17, 2016

ये 4 बातें ध्यान रखें हनुमानजी की, हमेशा मिलेगी कामयाबी


हनुमानजी की पूजा से ही नहीं, बल्कि उनसे कुछ बातें सीख लेने पर भी हमारी सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं और सभी कामों में सफलता मिल सकती है। यहां जानिए हनुमानजी से हम कौन-कौन सी बातें सीख सकते हैं...
1. संघर्ष क्षमता
हनुमानजी जब सीता की खोज में समुद्र पार कर रहे थे, तब उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सुरसा और सिंहिका नाम की राक्षसियों ने हनुमानजी को समुद्र पार करने से रोकना चाहा था, लेकिन बजरंग बली नहीं रुके और लंका पहुंच गए। हमें भी कदम-कदम पर ऐसे ही संघर्षों का सामना करना पड़ता है। संघर्षों से न डरते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की सीख हनुमानजी से लेनी चाहिए।
2.चतुराई
हनुमानजी ने समुद्र पार करते समय सुरसा से लड़ने में समय नहीं गंवाया। सुरसा हनुमानजी को खाना चाहती थी। उस समय हनुमानजी ने अपनी चतुराई से पहले अपने शरीर का आकार बढ़ाया और अचानक छोटा रूप कर लिया। छोटा रूप करने के बाद हनुमानजी सुरसा के मुंह में प्रवेश करके वापस बाहर आ गए। हनुमानजी की इस चतुराई से सुरसा प्रसन्न हो गई और रास्ता छोड़ दिया। चतुराई की यह कला हम हनुमानजी से सीख सकते हैं।
3.संयमितजीवन
हनुमानजी आजीवन ब्रह्मचारी रहे यानी उनका जीवन संयमित था। संयमपूर्वक रहने के कारण ही वे बहुत ताकतवर थे। हमारे जीवन में खान-पान और रहन-सहन सबकुछ असंयमित हो रहा है। असंयमित दिनचर्या के कारण गंभीर रोगों का डर लगा रहता है। संयम के साथ कैसा रहना चाहिए, ये बात हम हनुमानजी से सीख सकते हैं। आज जो लोग विवाहित हैं, वे भी अपने खान-पान और रहन-सहन में सावधानी रखेंगे तो उन्हें भी श्रेष्ठ स्वास्थ्य मिल सकता है।
4.लोक-कल्याण
हनुमानजी का अवतार ही श्रीराम के काम के लिए हुआ था। श्रीराम का काम यानी रावण का अंत करके तीनों लोकों का सुखी करना। हनुमानजी ने श्रीराम का साथ दिया। हमें भी हनुमानजी से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि जो लोग अच्छा और समाज सेवा का काम करते हैं, उनका साथ दें।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-SEHE-we-should-learn-these-4-things-from-hanumanji-5322204-PHO.html?seq=1