Friday, April 28, 2017

आज भी महेंद्र पर्वत पर निवास करते हैं भगवान परशुराम

समस्त सनातन जगत के आराध्य, भगवान विष्णु के छठे अवतार, अजर, अमर, अविनाशी भगवान परशुराम जी का प्राकट्य बैसाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया (अक्षय तृतीया) को माता रेणुका तथा पिता जमदग्रि के गृह निवास में हुआ।
जब-जब भी मानवता पर अत्याचार होता है, साधु पुरुषों के परित्राण हेतु भगवान अपने रूप को रचते हैं तथा दुष्टों का विनाश कर सुखप्रदायक धर्म की स्थापना करते हैं।
 
जिस मानवीय समाज में समानता, सत्य, अहिंसा, दया, करुणा का व्यवहार होता है, वहां धर्म सदैव प्रतिष्ठित रहता है। शस्त्र एवं शास्त्र का ज्ञान समाज के कल्याण हेतु ऋषियों, मुनियों, ब्राह्मणों द्वारा आदिकाल से प्रदान किया जाता रहा है लेकिन जब इस ज्ञान का प्रयोग उस समय के शासक वर्ग द्वारा समाज के अनिष्ट के लिए किया जाने लगा तथा साधारण जनमानस को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित किया जाने लगा तब भगवान परशुराम जी ने ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर उन अत्याचारी क्रूर शासक वर्ग को दंडित करने के लिए शस्त्र उठाया।
 
हैहय वंशाधिपति कार्त्तविर्य अर्जुन ने घोर तप कर भगवान दत्तात्रेय से एक सहस्र भुजाएं तथा युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर पाया। एक समय आखेट करते वह जमदग्रि ऋषि के आश्रम में आ पहुंचा, वहां उसने ऋषि के आश्रम में देवराज इंद्र द्वारा उन्हें प्रदत्त कपिला कामधेनु (गाय) के प्रभाव से समस्त सैन्य दल का अद्भुत आतिथ्य सत्कार होते देखा। तब उसने लोभ वश ऋषि से कामधेनु की मांग की।
 
ऋषि द्वारा मना करने पर वह ऋषि जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीन कर ले गया। जब भगवान परशुराम जी को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने मार्ग में ही सहस्रार्जुन को रोक कर कामधेनु लौटाने को कहा लेकिन सहस्रार्जुन युद्ध के लिए तत्पर था। युद्ध में भगवान परशुराम जी ने उससे युद्ध कर उसकी सभी भुजाएं काट डालीं तथा उसका वध कर दिया। तब सहस्रार्जुन के पुत्रों ने भगवान परशुराम जी की अनुपस्थिति में भगवान परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्रि का वध कर दिया। इस घटना से भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने अहंकारी और दुष्ट हैहयवंशी शासकों से 21 बार युद्ध किया।
 
भगवान शिव के परम भक्त भगवान परशुराम जी को दिव्य, अमोघ परशु भगवान शिव से प्राप्त हुआ। भगवान शिव की कृपा से भगवान परशुराम जी को भगवान श्री कृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच प्राप्त हुआ। भगवान परशुराम  जी ने वैदिक सनातन संस्कृति की रक्षा की। उनके अनुसार राजा का कर्तव्य होता है, प्रजा के हितों की रक्षा करना न कि उनसे आज्ञा पालन करवाना।
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक कथा के अनुसार भगवान परशुराम जी एक समय भगवान शंकर के दर्शनार्थ कैलाश में बलपूर्वक प्रवेश करने लगे तब गणेश जी के साथ हुए युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया जिससे वह एकदंत कहलाए।
 
त्रेतायुग में भगवान श्री राम जी के अवतार के समय मिथिलापुरी पहुंच कर अपने संशय निवृत्त कर वैष्णव धनुष श्री राम को प्रदान किया। महाभारत के प्रसिद्ध पात्रों भीष्म, द्रोण व कर्ण को भी भगवान परशुराम जी ने शस्त्र विद्या प्रदान की। इनकी इच्छित फल प्रदाता परशुराम गायत्री भी है।
 
ॐ  जामदगन्याय विद्महे महावीराय धीमहि।
तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।
 
भगवान श्री हरि विष्णु जी के कलियुग में होने वाले कल्कि अवतार में भगवान को भगवान परशुराम जी द्वारा ही वेद-वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान की जाएगी। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे। भगवान परशुराम जी हनुमान जी, विभीषण की भांति चिरंजीवी हैं तथा महेंद्र पर्वत पर निवास करते हैं और योग्य अधिकारी भक्तों को अपने दर्शन देते हैं।
 
ॐ  नम: परशुहस्ताय, नम: कोदंड धारिणे।
नमस्ते रुद्ररूपाय, विष्णवे वेदमूत्र्तये।।
 
हाथ में परशु धारण करने वाले परशुराम जी को नमस्कार। धनुष धारण करने वाले परशुराम जी को नमस्कार। रुद्र रूप परशुराम जी को नमस्कार, साक्षात् वेदमूर्त भगवान विष्णु, परशुराम जी को नमस्कार। भृगुकुल के सिरमौर, ब्राह्मणों के कुल का मान बढ़ाने वाले, जमदग्रि नंदन श्री परशुराम जी कलियुग के पापों से हमें बचाएं।
 
          रविशंकर शर्मा, जालंधर

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