किसी भी पूजन कर्म में आरती के बाद चरणामृत दिया जाता है। चरणामृत शब्द का
अर्थ है भगवान के चरणों से प्राप्त अमृत। इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा
मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना
गया है। यहां जानिए चरणामृत से जुड़ी खास बातें...
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के अनुसार जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने अयोध्या से वनवास के
प्रस्थान किया उस दौरान उनकी भेंट एक केवट से हुई। केवट ने श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को अपनी नाव में बैठाकर
गंगा नदी पार करवाई थी। उस केवट ने कहा था कि...
पद पखारि जलुपान
करि आपु सहित परिवार।
पितर पारु प्रभुहि
पुनि मुदित गयउ लेइ पार।।
अर्थात् भगवान श्रीराम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न
केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो
गया, बल्कि उसने अपने
पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक भी है। चरणामृत का जल तांबे के पात्र में रखा जाता है। आयुर्वेद के
अनुसार तांबे के बर्तन में रखे पानी का सेवन करने से अनेक रोग नष्ट हो सकते हैं।
इस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। इस जल में
तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है, जिससे चरणामृत की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि
चरणामृत स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।http://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DMV-importance-of-charnamrit-4948700-NOR.html
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