Tuesday, March 29, 2016

पूजन में अनामिका उंगली का ही उपयोग क्यों किया जाता है


हिंदू धर्मकोश के अनुसार ब्रह्मा का सिर छेदन कर देने पर भी जिसका नाम निंदित नहीं है, उसे अनामा कहते हैं। एक अन्य व्याख्या मे मान, अभिमान रहित और यश और कीर्ति की सूचक के रूप में अनामिका को वर्णित किया गया है।
अनामिका दाहिने हाथ की तीसरी उंगली को कहा गया है। यह पवित्र मानी जाती है। धार्मिक काम के समय इसी उंगली में पवित्री धारण करने का विधान है। पुराणों के अनुसार इस उंगली से शिव ने ब्रह्मा का शिरच्छेद किया था। यही कारण है कि इसे देवताओं की उंगली माना गया है।
इसलिए पूजा के समय इसका उपयोग किया जाता है यानी भगवान को कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करते समय मुख्य रूप से यही उंगली उपयोग में लाई जाती है। ध्यान रहे ज्योतिष में हाथ की पांचों अंगूठे सहित उंगलियों में ग्रह व पर्वत का निवास माना जाता है। इसके अनुसार अंगूठे में शुक्र, तर्जनी में गुरु, मध्यमा में शनि, अनामिका में सूर्य और कनिष्ठा में बुध पर्वत का वास माना जाता है। स्पष्ट है पूजन मे इसके उपयोग का फल सूर्य की तरह ही ऊर्जा, प्रकाश और यश देता है।

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