Friday, March 18, 2016

पिंडदान करने की परंपरा क्यों?


 हिंदू धर्म में पिंडदान की परंपरा वेदकाल से ही प्रचलित है। पितरों के मोक्ष के लिए यह एक अनिवार्य परंपरा है इसका बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है। योगवशिष्ठ में बताया गया है-
आदौ मृता वयमिति बुध्यन्ते तदनुक्रमात्।
बंधु पिंडदादिदानेन प्रोत्पन्ना इवा वेदिन:।।

प्रेत अपनी स्थिति को इस प्रकार अनुभव करते हैं कि हम मर गए हैं और परिवार वालों के पिंडदान से हमारा नया शरीर बना है। यह अनुभूति भावनात्मक ही होती है। इसलिए पिंडदान का महत्व उससे जुड़ी भावनाओं की बदौलत ही होता है। ये भावनाएं प्रेतों-पितरों को स्पर्श करती हैं। पिंडदानादि पाकर पितृगण प्रसन्न होकर सुख, समृद्धि का अशीर्वाद देते हैं और पितृलोक को लौट जाते हैं। जो पुत्र इसे नहीं करते, उनके पितर उन्हें शाप देते हैं। भारत में गया वह स्थान है, जहां दुनिया भर के हिंदू पितरों का पिंडदान करके उन्हें मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं। कहा जाता है कि सबसे पहले पितृपक्ष में पिंडदान का विशेष धार्मिक महत्व बताया जाता है।
पिंडदान के लिए जौ या गेहूं के आटे में तिल या चावल का आटा मिलाकर इसे दूध में पकाते हैं और शहद व घी मिलाकर लगभग 100 ग्राम के 7 गोल पिंड बनाते हैं। एक पिंड मृतात्मा के लिए और छह जिन्हें तर्पण किए जाते हैं, उनके लिए समर्पित करने का विधान है। वायु पुराण् में दी गई गया महात्म्य कथा के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि रचते समय गयासुर नामक एक दैव्य को पैदा किया। उसने कोलाहर पर्वत पर घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने वर मांगने को कहा। इस पर गयासुर ने वर मांगा मेरे स्पर्श सभी जीव मुक्ति प्राप्त कर बैकुंठ जाने लगे। मान्यता है कि तभी से गया पितरों के मोक्ष का केंद्र बन गया।
श्राद्ध का वैज्ञानिक विवेचन
अन्य मासों कि अपेक्षा श्राद्ध के दिनों में चन्द्रमा पृथ्वी के निकटतम रहता है | इसी कारण उसकी आकर्षण-शक्ति का प्रभाव पृथ्वी तथा प्राणियों पर विशेष रूप से पड़ता है | श्राद्ध के समय पृथ्वी पर कुश रखकर उसके ऊपर पिडों में चावल,जौ,तिल,दूध,शहद, तुलसीपत्र आदि डाले जाते है | चावल व जौ में ठंडी विद्युत् , तिल व दूध में गर्म विद्युत् तथा तुलसीपत्र में दोनों प्रकार की विद्युत होती है | शहद की विद्युत् अन्य सभी पदार्थो की विद्युत और वेदमंत्रों को मिलाकर एक साथ कर देती है | कुषाएं पिडों की विद्युत् को पृथ्वी में नहीं जाने देती | शहद ने जो अलौकिक विद्युत् पैदा की थी, वह श्राद्धकर्ता की मानसिक शक्ति द्वारा पितरों व परमेश्वर के पास जाती है जिससे पितरों को तृप्ति प्राप्त होती है |

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