Thursday, March 17, 2016

अस्थियों को गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन क्यों?


किसी भी मरे हुए जीव की अस्थियों को धार्मिक दृष्टिकोण से फूल कहते हैं। इसमें अगाध श्रद्धा और आदर का भाव निहित होता है। जहां संतान फल है, वहीं पूर्वजों की अस्थियां फूल कहलाती हैँ। इन्हें गंगा जैसी पवित्र नदी में विसर्जन करने के दो कारण बताए गए हैं। पहला कुर्म पुराण के मतानुसार

यावदस्थीनि गंगायां तिष्ठन्ति पुरुषस्य तु।
तावद् वर्ष सहस्त्राणि स्वर्गलोके महीयते।।

तीर्थानां परमं तीर्थ नदीनां परमा नदी।
मोक्षदा सर्वभूताना महापातकिनामपि।।

सर्वत्र सुलभा गंगा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा।
गंगाद्वारे प्रयागे च गंगासागरसंगमे।।

सर्वेषामेव भूतानां पापोपहतचेतसाम्।
गतिमन्वेषमाणानां नास्ति गंगासभा गति:।।

जितने वर्ष तक पुरुष की अस्थियां गंगा में रहती हैं, उतने हजारों साल तक वह स्वर्गलोक में पूजा जाता है। गंगा को सभी तीर्थों में परम तीर्थ और नदियों में श्रेष्ठ नदी माना गया है। वह सभी प्राणियों, यहां तक कि महापापियों को भी मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। मोक्ष के लिए हरिद्वार, प्रयाग और गंगासागर इन तीनो स्थानों में दुर्लभ है। उत्तम गति की इच्छा करने वाले प्राणियों के लिए गंगा के समान और कोई दूसरी गति नहीं है।
मृतक को पंचाग अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने के संबंध में शास्त्रकार कहते हैं-

यावदस्वीनि गंगायां तिष्ठिन्ति पुरुषस्य च।
तावदूर्ष सहस्त्राणि ब्रहमालोके महीयते।।

यानी मृतक की अस्थियां जब तक गंगा में रहती हैं, तब तक मृतात्मा शुभ लोकों में निवास करती हई आनंद का भोग करती है। धार्मिक लोगों में यह भी मान्यता है कि तब तक मृतात्मा की परलोक यात्रा प्रारंभ नहीं होती, जब तक कि उसके फूल गंगा में विसर्जित नहीं कर दिए जाते।

दूसरा, फूल को गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन करने की प्रथा के पीछे भी वैज्ञानिक कारण छुपा हुआ है। दरअसल, गंगा नदी से सैकड़ों वर्ग मील भूमि को सींचकर उपजाऊ बनाया जाता है। जिससे इसकी उपजाऊ शक्ति घटती रहती है। ऐसे में गंगा में फॉस्फोरस से युक्त खाद, लगातार बना रहे इसके लिए अस्थियां वाहित करने का रिवाज बनाया गया। उल्लेखनीय है कि फाॅस्फोरस भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक तत्व होता है, जो कि हमारी हड्‌डी में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध होता है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-GYVG-rituals-after-death-5134938-NOR.html

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