Wednesday, March 30, 2016

पत्नी को उल्टे हाथ पर बैठाने की प्रथा क्यों है


महाभारत के शांति पर्व 235.18 के अनुसार पत्नी पति का शरीर ही है और उसके आधे भाग को अर्द्धांगिनी के रूप में वह पूरा करती है। तैतररीय ब्राह्मण 33.3.5 में इस प्रकार लिखा है अथो अर्धो वा एव अन्यत: यत् पत्नी यानी पुरुष का शरीर तब तक पूरा नहीं होता, जब तक उसे आधे अंग में उसकी अर्द्धांगिनी निवास नहीं करती। पौराणिक आख्यानों के अनुसार पुरुष का जन्म ब्रह्मा के दाहिने कंधे से व स्त्री का जन्म बाएं कंधे से हुआ है, इसलिए स्त्री को वामांगी भी कहा जाता है और विवाह के बाद स्त्री को पुरुष के वाम भाग में बैठाया जाता है।

सप्तपदी होने तक वधू को दाहिने हाथ पर बैठाया जाता है। फिर प्रतिज्ञाओं में बंधित हो जाने के बाद पत्नी बनकर आत्मीय होने के कारण उसे बाईं ओर बैठाया जाता है। इस तरह बाईं ओर जाने के बाद पत्नी गृहस्थ जीवन की प्रमुख सूत्रधार बन जाती है और अधिकार हस्तांतरण के कारण दाहिनी ओर से वह बाईं ओर आ जाती है। इस तरह की प्रक्रिया को शास्त्र में आसन परिवर्तन के नाम से जाना जाता है। हिंदू शास्त्रों में स्त्री को पुरुष का वाम अंग बताया गया है। साथ ही, वाम अंग में बैठने के अवसर भी बताए गए हैं।

वामे सिंदूरदाने च वामे वैव द्विरागमने।
वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाया प्रियािर्थनी।।

सिंदूरदान, तीर्थ पर जाते समय, भोजन, शयन व सेवा के समय पत्नी हमेशा वाम भाग में रहे। इसके अलावा अभिषेक के समय, अशीर्वाद ग्रहण करते समय और ब्राह्मण के पांव धोते समय भी पत्नी को वाम में यानी उल्टे हाथ की तरफ रहने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि जो धार्मिक काम पुरुष प्रधान होते हैं, जैसे विवाह, कन्यादान, यज्ञ, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, निष्क्रमण आदि में पत्नी पुरुष के दाईं ओर रहती है, जबकि स्त्री प्रधान कामों में वह पुरुष के वाम अंग की तरफ होती है। आप जानते ही होंगे कि मौली स्त्री के बाएं हाथ की कलाई में बांधने का नियम शास्त्रों में लिखा है। ज्योतिषी स्त्रियों के बाएं हाथ की हस्तरेखाएं देखते हैं। वैद्य स्त्रियों की बाएं हाथ की नाड़ी को छूकर इलाज करते हैं। ये सभी बातें भी स्त्री के वामांगी होने का संकेत करती हैं।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-why-wife-sit-in-the-left-part-of-the-practice-5110436-NOR.html

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