Friday, March 25, 2016

शुभ काम की शुरुआत में स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है?

स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकाम करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध' यानी 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।' इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है।
लोग पूजा स्थान में या किसी शुभ अवसर पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि स्वास्तिक चिन्ह शुभ और लाभ में बढ़ोतरी करने वाला होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार स्वास्तिक का संबंध असल में वास्तु से है। इसकी बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा में एक जैसा दिखता है। अपनी बनावट की इसी खूबी के कारण यह घर में मौजूद हर प्रकार के वास्तुदोष को कम करने में सहायक होता है।शास्त्रों में स्वास्तिक को विष्णु का आसन व लक्ष्मी का स्वरुप माना गया है। इसके अलावा कुछ लोग इसे गणेशजी का स्वरूप भी मानते है। कुमकुम या सिंदूर से बना स्वास्तिक ग्रह दोषों को दूर करने वाला होता है। साथ् ही, यह धन कारक योग बनाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार अष्टधातु का स्वास्तिक मुख्य द्वार के पूर्व दिशा में रखने से सुख व धन में बढ़ोतरी होती है।

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