Monday, March 28, 2016

नामकरण संस्कार की परंपरा क्यों?


नामकरण संस्कार के संबंध में स्मृति संग्रह में लिखा है

आयुर्वर्चोभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुदिष्टं मनीषिभ:।।

नामकरण संस्कार से आयु व तेज की वृद्धि होती है और लौकिक व्यवहार के नाम की प्रसिद्धि से इंसान का अलग अस्तित्व बनता है। इस संस्कार को दस दिन का सूतक खत्म होने के बाद ही किया जा सकता है। पराशर मृह्यसूत्र में लिखा है- दशम्यामुत्थाप्य पिता नाम करोति। कहीं-कहीं 100 वें दिन या एक साल बीत जाने के बाद नामकरण करने की विधि प्रचलित है। गोभिल गृह्यसूत्रकार के अनुसार जननादृश्यरात्रे व्युष्टे शतरात्रे संवत्सरे वा नामधेयकरणाम्। इस संस्कार में बच्चे को शहद चटाकर कहा जाता है कि तू अच्छा और प्रिय लगने वाला बोल। इसके बाद सूर्य दर्शन करवाए जाते हैं।
साथ ही, कामना भी की जाती है कि बच्चा सूर्य के समान तेजस्वी व प्रखर हो। इसके साथ ही भूमि को नमन कर देव संस्कृति के प्रति श्रद्धापूर्वक समर्पण किया जाता है। शिशु का नया नाम लेकर सभी लोग चिरंजीवी, धार्मिक, स्वस्थ और समृद्ध होने की कामना करते हैं। पहले गुण प्रधान नाम द्वारा या महापुरुषों, भगवान आदि के नाम पर रखे नाम द्वारा यह प्रेरणा दी जाती थी कि बच्चा जीवन भर उन्हीं की तरह बनने को प्रयत्नशील रहे। मनोवैज्ञानि तथ्य यह है कि जिस तरह के नाम से इंसान को पुकारा जाता है, उसे उसी तरह के गुणो की अनुभूति होती है। जब घटिया नाम से पुकारा जाएगा, तो इंसान के मन में हीनता के ही भाव जागेंगे। इसलिए नाम की सार्थकता को समझते हुए ऐसा ही नाम रखना चाहिए, जो शिशु को प्रोत्साहित करने वाला और गौरव अनुभव कराने वाला हो।
नामकरण के तीन आधार माने गए है। पहला जिस नक्षत्र में बच्चे का जन्म होता है, उस नक्षत्र की पहचान हो। इसलिए नाम नक्षत्र के लिए नियत अक्ष्रर से शुरू होना चाहिए, ताकि नाम से जन्म नक्षत्र का पता चले और ज्योतिषीय राशिफल भी समझा जा सकें। मूलरूप से नामों की वैज्ञानिकता का यही एक दर्शन है। दूसरा यह है कि नाम आपको जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक बने और तीसरा यह कि नाम से आपके जातिनाम, वंश, गोत्र आदि की जानकारी हो जाए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-why-the-tradition-of-the-naming-ceremony-5107366-NOR.html

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