Thursday, March 10, 2016

गंगा जल पीने की संस्कृति बनाने के पीछे ये हैं बड़े कारण


हिंदू धर्म में किसी के भी जन्म या मृत्यु के बाद गंगा जल से घर को शुद्ध करने की परंपरा है। साथ ही, यदि कोई मरने की स्थिति में हो तो उसे गंगा जल पिलाने और दाह संस्कार के बाद उसकी राख को गंगा के पवित्र जल में प्रवाहित करने की भी पंरपरा रही है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं में गंगा पापों का नाश कर मोक्ष देने वाली देव नदी मानी गई है। यह केवल धार्मिक नजरिए से ही पवित्र नहीं है, बल्कि विज्ञान ने भी गंगा के जल को पवित्र माना है। अाइए जानते हैं गंगा के जल की पवित्रता के पीछे छुपे धार्मिक वैज्ञानिक तथ्यों को।
पौराणिक कथाएं
गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। मिथकों के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीने की बूंदों से गंगा का निर्माण किया। तीन प्रमुख देवताओं में से दो के स्पर्श के कारण इसका जल बहुत पवित्र समझा गया। एक अन्य कथा के अनुसार राजा सगर ने अपने तपस्या के बल से साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की। एक दिन राजा सगर ने देवलोक को जीतने के लिए एक यज्ञ किया। यज्ञ के लिए घोड़ा आवश्यक था जो इंद्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ऋषि के समीप बंधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं। उन्होंने ऋषि का अपमान किया। तपस्या कर रहे ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आंखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गए। सगर के पुत्रों की आत्माओं को मुक्ति नहीं मिली, क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी।
भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे पूर्वजों अंतिम संस्कार कर, राख को गंगाजल में प्रवाहित किया जा सके और भटकती आत्माएं स्वर्ग में जा सकें। भगीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुए और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हुए और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके।
गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊंचाई से जब पृथ्वी पर गिरूंगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी। तब भगीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी। जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे-पीछे गंगा सागर संगम तक गई, जहां सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गई और पृथ्वी पर रहने वालों के लिए श्रद्धा का केन्द्र बन गई।
क्या कहता है इतिहास

कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे। वे लिखते हैं कि अंग्रेज़ जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज़ जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।
ये है वैज्ञानिक मान्यता

गंगा अपने उद्गम स्थल से लेकर मैदानों में आने तक प्राकृतिक स्थानों, वनस्पतियों से होकर बहती है। इस जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ेज वायरस होते हैं।
ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं। जिससे गंगा का जल लंबे समय तक प्रदूषित नहीं होता है। इस प्रकार के गुण अन्य किसी नदी के जल में नहीं पाए गए हैं। इस तरह गंगा जल धर्म भाव के कारण मन पर और विज्ञान की नजर से तन पर सकारात्मक प्रभाव देने वाला है।

http://religion.bhaskar.com/news/JMJ-SAS-mythological-importance-of-ganga-river-4871576-NOR.html

 

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