श्रीराम-सीता, शिव-पार्वती से इस वैवाहिक रिश्ते की बारीकियां समझी जा सकती
हैं। श्रीराम ने धनुष तोड़कर सीता से विवाह किया। धनुष अहंकार का प्रतीक है। धनुष
हमेशा तना रहता है और जब भी बाण चलाता है तो किसी के प्राण ही लेता है। अहंकार भी
हमारे जीवन में ऐसा ही है। 'जब तक
हमारे भीतर अहंकार है, हम किसी के
प्रति प्रेम, दया, विश्वास जैसी भावनाओं से जुड़ ही नहीं
सकते हैं।' सुखी
वैवाहिक जीवन के लिए ये भावनाएं बहुत जरूरी हैं।
श्रीराम ने पहले अहंकार को तोड़ा, फिर सीता से विवाह किया। तभी कई परेशानियों के बाद भी उनका वैवाहिक जीवन आदर्श और दिव्य ही बना रहा।
शिवजी के लिए पार्वती ने कड़ी तपस्या की। कई मुसीबतें झेलीं, कड़े उपवास किए। कई देवताओं ने पार्वती को बहकाया भी, शिव के विरोध में बातें भी कहीं, लेकिन पार्वती का विश्वास नहीं डिगा, न ही पार्वती का समर्पण कम हुआ। सारी परिस्थितियों के बाद भी पार्वती ने शिवजी को ही चुना। ऐसा समर्पण, श्रद्धा, विश्वास और प्रेम, अगर हमारी गृहस्थी में भी आ जाए तो फिर किसी भी परिस्थिति में कभी रिश्ता कमजोर नहीं होगा।
श्रीराम ने पहले अहंकार को तोड़ा, फिर सीता से विवाह किया। तभी कई परेशानियों के बाद भी उनका वैवाहिक जीवन आदर्श और दिव्य ही बना रहा।
शिवजी के लिए पार्वती ने कड़ी तपस्या की। कई मुसीबतें झेलीं, कड़े उपवास किए। कई देवताओं ने पार्वती को बहकाया भी, शिव के विरोध में बातें भी कहीं, लेकिन पार्वती का विश्वास नहीं डिगा, न ही पार्वती का समर्पण कम हुआ। सारी परिस्थितियों के बाद भी पार्वती ने शिवजी को ही चुना। ऐसा समर्पण, श्रद्धा, विश्वास और प्रेम, अगर हमारी गृहस्थी में भी आ जाए तो फिर किसी भी परिस्थिति में कभी रिश्ता कमजोर नहीं होगा।
श्रीराम-सीता
और शिव-पार्वती का वैवाहिक जीवन हमारे लिए आदर्श हैं। अगर पति-पत्नी के बीच ऐसा
रिश्ता है तो फिर जीवन बोझ नहीं, बल्कि
उत्साह और उमंग से भरपूर रहेगा।
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