शास्त्रों के अनुसार सुबह उठते ही करने चाहिए ‘कर दर्शन’, जानिए क्यों? – सुबह सुहानी हो तो
दिन अच्छा गुजरता है। दिन अच्छा हो इसके लिए हम सुबह अपने अंदर और बाहर अर्थात मन
में और घर में शांति और प्रसन्नता चाहते हैं। हम आंख खुलते ही कोई ऐसी चीज देखना
पसंद नहीं करते जिससे हमारा दिन खराब हो। हमारा दिन हमारे लिए शुभ हो इसके लिए
ऋषियों ने कर दर्शनम् का संस्कार हमें दिया है।हमारी संस्कृति हमें धर्ममय जीवन
जीना सिखाती है। हमारा जीवन सुखी, समृद्ध, आनंदमय बने इसके लिए संस्कार रचे गए और दिनचर्या
तय की गई। दिनचर्या का आरंभ नींद खुलने के तत्काल बाद शुरू हो जाता है। दिन की
शुरुआत का पहला कदम है- कर दर्शनम् अर्थात हथेलियों को देखना। सुबह उठते ही सबसे
पहले हमें हथेलियों के ही दर्शन करना चाहिए। यहां जानिए क्या होता है सुबह-सुबह
हथेलियों के दर्शन करने से…
कैसे
करें कर दर्शनम् –
सुबह जब नींद से जागें तो अपनी
हथेलियों को आपस मे मिलाकर पुस्तक की तरह खोल लें और यह श्लोक पढ़ते हुए हथेलियों
का दर्शन करें-
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये
सरस्वती।
कर मूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्॥
कर मूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्॥
अर्थात- (मेरे) हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी का, मध्य में सरस्वती का और मूल भाग में ब्रह्मा का निवास है।
अर्थात- (मेरे) हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी का, मध्य में सरस्वती का और मूल भाग में भगवान विष्णु का निवास
है।
हथेलियों के दर्शन का मूल भाव
तो यही है कि हम अपने कर्म पर विश्वास करें। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि
ऐसे कर्म करें जिससे जीवन में धन, सुख और
ज्ञान प्राप्त करें। हमारे हाथों से ऐसा कर्म हों जिससे दूसरों का कल्याण हो।
संसार में इन हाथों से कोई बुरा कार्य न करें।
हथेलियों के दर्शन के समय मन में संकल्प लें कि मैं परिश्रम कर दरिद्रता और अज्ञान को दूर करूंगा और अपना व जगत का कल्याण करूंगा।
हथेलियों के दर्शन के समय मन में संकल्प लें कि मैं परिश्रम कर दरिद्रता और अज्ञान को दूर करूंगा और अपना व जगत का कल्याण करूंगा।
हाथों
का ही दर्शन क्यों –
हमारी संस्कृति हमें सदैव कर्म
का संदेश देती है। जीवन के चार आधार- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को पुरुषार्थ कहा गया है। ईश्वर पुरुषार्थी
मनुष्य की ही सहायता करते हैं। कर्म से हम अपने जीवन को स्वर्ग बना सकते हैं और
नर्क में भी ढकेल सकते हैं। मनुष्य के हाथ शरीर के महत्वपूर्ण अंग हैं। हमारे दो
हाथ पुरुषार्थ और सफलता के प्रतीक हैं।
इस परंपरा के संबंध में वेद कहते हैं-
कृतं मे दक्षिणेहस्ते जयो मे सष्य आहित:। – अथर्ववेद 7/50/८
अर्थात- मेरे दाहिने हाथ में पुरुषार्थ है और बाएं हाथ में सफलता।
भावार्थ यही है कि हम यदि परिश्रम करते हैं तो सफलता अवश्य मिलती है। हमे अपने
कर्म में पीछे नहीं हटना चाहिए,
अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तर:। – ऋग्वेद 10/60/12
अर्थात- परिश्रम से हमारे हाथों में श्री और सौभाग्य होते हैं। अर्थ
यह है कि हम परिश्रम करेंगे तो ही हमें धन मिलेगा। धन से हम सुख-समृद्धि का
सौभाग्य पाएंगे। वेद हमें यह भी सचेत करते हैं कि हमारे हाथ से कोई बुरा काम न हो।
हस्तच्युतं जनयत प्रशस्तम्। – सामवेद -72
अर्थात- हमारे हाथों से सदा श्रेष्ठ का निर्माण हो। हम सदा अच्छे काम
करें। किसी का बुरा न करें। किसी को दु:ख न पहुंचाएं।
शिक्षा-
प्रभाते कर दर्शनम् का यही
संदेश है। हम सुबह उठते ही अपनी हथेलियों के दर्शन कर अच्छे कार्य करने का संकल्प
लें, ताकि दिनभर हमारे मन में कोई बुरे
विचार न आएं। अच्छे कार्यां से ही हमारी अलग पहचान बनती है। http://www.ajabgjab.com/2014/09/kar-darshnam-mantra-and-complete.html
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