शिवलिंग भगवान
शिव का निराकर स्वरूप है। शिवलिंग की पूजा से जुड़े बहुत से नियम भी धर्म ग्रंथों
में बताए गए हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही नियमों के बारे में बता रहे हैं।
भगवान शिव का ही पूजा लिंग रूप में क्यों?
शिवमहापुराण के अनुसार, एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण उन्हें सकल (साकार) भी कहा गया है। इसलिए शिव सकल व निष्कल दोनों हैं। उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही है अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरूप का प्रतीक होता है। भगवान शिव ब्रह्मस्वरूप और निष्कल (निराकार) हैं इसलिए उन्हीं की पूजा में निष्कल लिंग का उपयोग होता है। संपूर्ण वेदों का भी यही मत है।
शिवमहापुराण के अनुसार, एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण उन्हें सकल (साकार) भी कहा गया है। इसलिए शिव सकल व निष्कल दोनों हैं। उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही है अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरूप का प्रतीक होता है। भगवान शिव ब्रह्मस्वरूप और निष्कल (निराकार) हैं इसलिए उन्हीं की पूजा में निष्कल लिंग का उपयोग होता है। संपूर्ण वेदों का भी यही मत है।
1. शिवलिंग की पूजा कभी जलधारी के सामने से नहीं करनी चाहिए।
2. शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जलाधारी को लांघा नहीं जाता।
3. शिवलिंग पर हल्दी या मेहंदी न चढ़ाएं, क्योंकि यह देवी पूजन की सामग्री है।
4. शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
5. शिवलिंग पर कभी तांबे के बर्तन से दूध नहीं चढ़ाना चाहिए।
6. शिवलिंग की पूजा करते समय मुंह दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए।
7. पूजा करते समय शिवलिंग के ऊपरी हिस्से को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
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