Friday, December 29, 2017

कैसे हुआ था गांधारी के 100 पुत्रों का जन्म? ये हैं उनके नाम

महाभारत के अनुसार, राजा धृतराष्ट्र के 100 पुत्र थे, ये बात हम सभी जानते हैं। उनका जन्म कैसे हुआ और उनके नाम क्या थे, ये बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको वही बता रहे हैं-
ऐसे हुआ कौरवों का जन्म
एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए। गांधारी ने उनकी बहुत सेवा की। प्रसन्न होकर उन्होंने गांधारी को सौ पुत्र होने का वरदान दिया। समय पर गांधारी को गर्भ ठहरा और वह दो वर्ष तक पेट में ही रहा। इससे गांधारी घबरा गई और उसने अपना गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के समान एक मांस पिंड निकला। महर्षि वेदव्यास ने योगदृष्टि से यह देख लिया, वे तुरंत गांधारी के पास आए।
उन्होंने गांधारी से उस मांस पिंड पर जल छिड़कने को कहा। जल छिड़कते ही उस पिंड के 101 टुकड़े हो गए। तब व्यासजी ने गांधारी से कहा कि इन मांस पिंड़ों को घी से भरे कुंडों में डाल दो और इन्हें दो साल बाद खोलना। समय आने पर उन्हीं कुंडों से पहले दुर्योधन और बाद में गांधारी के 99 पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई। उनके नाम इस प्रकार हैं।

1. दुर्योधन, 2. दु:शासन, 3. दुस्सह, 4. दुश्शल, 5. जलसंध, 6. सम, 7. सह, 8. विंद, 9. अनुविंद, 10. दुद्र्धर्ष, 11. सुबाहु, 12. दुष्प्रधर्षण, 13. दुर्मुर्षण, 14. दुर्मुख, 15. दुष्कर्ण, 16. कर्ण, 17. विविंशति, 18. विकर्ण, 19. शल, 20. सत्व, 21. सुलोचन, 22. चित्र, 23. उपचित्र, 24. चित्राक्ष, 25. चारुचित्र, 26. शरासन, 27. दुर्मुद, 28. दुर्विगाह, 29. विवित्सु, 30. विकटानन, 31. ऊर्णनाभ, 32. सुनाभ, 33. नंद, 34. उपनंद, 35. चित्रबाण, 36. चित्रवर्मा, 37. सुवर्मा, 38. दुर्विमोचन, 39. आयोबाहु, 40. महाबाहु, 41. चित्रांग, 42. चित्रकुंडल, 43. भीमवेग, 44. भीमबल, 45. बलाकी, 46. बलवद्र्धन, 47. उग्रायुध, 48. सुषेण, 49. कुण्डधार, 50. महोदर, 51. चित्रायुध, 52. निषंगी, 53. पाशी, 54. वृंदारक, 55. दृढ़वर्मा, 56. दृढ़क्षत्र, 57. सोमकीर्ति, 58. अनूदर, 59. दृढ़संध, 60. जरासंध, 61. सत्यसंध, 62. सद:सुवाक, 63. उग्रश्रवा, 64. उग्रसेन, 65. सेनानी, 66. दुष्पराजय, 67. अपराजित, 68. कुण्डशायी, 69. विशालाक्ष, 70. दुराधर, 71. दृढ़हस्त, 72. सुहस्त, 73. बातवेग, 74. सुवर्चा, 75. आदित्यकेतु, 76. बह्वाशी, 77. नागदत्त, 78. अग्रयायी, 79. कवची, 80. क्रथन, 81. कुण्डी, 82. उग्र, 83. भीमरथ, 84. वीरबाहु, 85. अलोलुप, 86. अभय, 87. रौद्रकर्मा, 88. दृढऱथाश्रय, 89. अनाधृष्य, 90. कुण्डभेदी, 91. विरावी, 92. प्रमथ, 93. प्रमाथी, 94. दीर्घरोमा, 95. दीर्घबाहु, 96. महाबाहु, 97. व्यूढोरस्क, 98. कनकध्वज, 99. कुण्डाशी, 100. विरजा।

Wednesday, December 27, 2017

महाभारत का इंद्रप्रस्थ आज है दिल्ली,

महाभारत काल की कहानियां और जगहें आज भी लोगों के लिए जिज्ञासा और रहस्य की बात है। उस काल से जुड़ी हर रोचक जानकारी लोग आज भी जनना चाहते हैं। इस समय के लोग कैसे थे, रीति-रिवाज कैसे थे आदि। उस समय के शहर और जगहें भी कई लोगों के लिए रूची का विषय है।
महाभारत काल की कई प्रसिद्ध जगहें आज भी मौजूद है, लेकिन उनका रूप और नाम आदि बदल चुके हैं। ऐसे में हम आपके लिए म 9 ऐसी जगहों की जानकारी लेकर आए है, जो आज भी मौजूद है, लेकिन उनका संबंध महाभारत काल से माना जाता है। जानिए आज कहां और किस नाम से बसी हैं महाभारत काल की ये 9 प्रसिद्ध जगहें...

1. इंद्रप्रस्‍थ

इंद्रप्रस्थ महाभारत की सबसे खास जगहों में से एक मानी जाती है। हस्तिनापुर से निकाले जाने के बाद पांडवों ने इंद्रप्रस्थ को ही अपनी राजधानी बनाया था। महाभारत कालिन इंद्रप्रस्‍थ वर्तमान में भारत की राजधानी द‌िल्ली है।

2. हस्त‌िनापुर

महाभारत में सबसे ज्यादा महत्व हस्त‌िनापुर को द‌िया गया है, क्योंक‌ि हस्त‌िनापुर कौरवों का राज्य था और पूरी महाभारत की कथा हस्त‌िनापुर के आज-पास ही घूमती है। हस्त‌िनापुर के ल‌िए ही महाभारत का युद्ध हुआ था। यह स्‍थान वर्तमान में मेरठ शहर के पास बसा है।

3. तक्षशीला

तक्षशीला जो महाभारत काल में गंधार प्रदेश राजधानी थी, गंधार ही आज कंधार के नाम से जाना जाता है। जो अफगानिस्तान में मौजूद है। कौरवों की माता गंधारी गंधार के राजा सुबल की पुत्री थी। मान्यता है क‌ि यहीं पांडवों के वंशज जनमेजय ने अपने प‌िता परीक्ष‌ित की सांप काटने से मृत्यु के बाद क्रोध‌ित होकर सर्पयज्ञ का आयोजन क‌िया था, ज‌िसमें हजारों नाग जलकर भस्म हो गए थे।

4. उज्‍जान‌िक

महाभारत में ज‌िस उज्‍जान‌िक नामक स्‍थान का ज‌िक्र क‌िया गया है वह वर्तमान काशीपुर है, जो उत्तराखंड में स्‍थ‌ित है। यहां पर गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों को श‌िक्षा दी थी। यहां स्‍थ‌ित द्रोणसागर झील के बारे में कहा जाता है क‌ि पांडवों ने इस झील का न‌िर्माण क‌िया था।

5. वारणावत

महाभारत में वारणावत का वर्णन पाया जाता है। यह वहीं स्‍थान है जहां कौरवों ने लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मारने का प्रयास क‌िया था। यह लाक्षागृह आज उत्तर प्रदेश के बागपत में स्‍थ‌ित है।

6. पांचाल

पांचाल द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद का राज्य था। मान्यताओं के अनुसार, आज यह जगह हिमालय और चंबा नदी के बीच के क्षेत्रों में बसी है। इसी जगह पर पांडवों और द्रौपदी का विवाह हुआ था।

7. वृंदावन

महाभारत काल का वृंदावन आज भी इसी नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश में स्‍थ‌ित है। इस जगह का खास संबंध भगवान कृष्ण से माना जाता है, यहीं पर भगवान श्रीकृष्‍ण गौपियों के साथ रास रचाया करते थें।

8. अंग प्रदेश

कर्ण के राज्य अंग देश को लेकर मतभेद माना जाता है। कुछ लोगों के अनुसार, बिहार का भागलपुर महाभारत काल का अंगदेश है तो कुछ के अनुसार उत्तरप्रदेश के गोंडा को कर्ण का राज्य माना जाता है।

9. मथुरा

महाभारत में कंश की नगरी मथुरा का वर्णन भी पाया जाता है। आज भी इस जगह को मथुरा के नाम से ही जाना जाता है। इसी जगह पर भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण की जन्मभूम‌ि में आज भी श्रद्धालु दर्शन के ल‌िए आते हैं।

Tuesday, December 26, 2017

मंगलवार को भूलकर भी न करें ये 5 काम, माना जाता है अपशकुन

ज्योतिष में शकुन और अपशकुन की मान्यता का काफी महत्व है। दैनिक जीवन में होने वाली छोटी-छोटी बातों से भविष्य में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की जानकारी मिल सकती है। शकुन यानी भविष्य में होने वाली अच्छी बातों के संकेत और अपशकुन यानी भविष्य में परेशानियां आने के संकेत।

मंगल का दिन है मंगलवार
मंगलवार का कारक ग्रह मंगल है। मंगल देव ग्रहों के सेनापति हैं और मेष-वृश्चिक राशि के स्वामी हैं। कुंडली में मंगल की स्थिति काफी महत्वपूर्ण होती है। मंगल शुभ होता है तो व्यक्ति को भूमि और भवन से संबंधित लाभ मिलते हैं, माता का सहयोग मिलता है। जबकि अशुभ मंगल की वजह से वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

मंगलवार को होती है हनुमानजी की विशेष पूजा
श्रीरामचरित मानस के अनुसार हनुमानजी का जन्म मंगलवार को ही हुआ था। इसकारण आज भी हर मंगलवार हनुमानजी के मंदिरों में भक्तों की भीड़ रहती है। मंगलवार को हनुमानजी के दर्शन करने से सभी दुख दूर हो सकते हैं।

मंगलवार को ये काम माना जाता है अपशकुन
1.नेल कटर का उपयोग न करें।
2.बाल न कटवाएं। दाढ़ी न बनवाएं।
3.धार वाली चीजें न खरीदें। जैसे चाकू, कैंची आदि।
4.माता से ऊंची आवाज में बात न करें।
5.घर में मांसाहार न पकाएं।

ये हैं मंगलवार के कुछ खास उपाय
- मंगलवार को हनुमानजी के सामने चमेली के तेल का दीपक जलाएं।
- शिवलिंग पर लाल फूल चढ़ाएं।
- मंगल ग्रह के लिए मसूर की दाल का दान करें।
- गाय की हरी घास खिलाएं।

Sunday, December 24, 2017

क्यों करते हैं शिवलिंग की आधी परिक्रमा? ध्यान रखें ये 7 बातें


शिवलिंग भगवान शिव का निराकर स्वरूप है। शिवलिंग की पूजा से जुड़े बहुत से नियम भी धर्म ग्रंथों में बताए गए हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही नियमों के बारे में बता रहे हैं।

भगवान शिव का ही पूजा लिंग रूप में क्यों?
शिवमहापुराण के अनुसार, एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण उन्हें सकल (साकार) भी कहा गया है। इसलिए शिव सकल व निष्कल दोनों हैं। उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही है अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरूप का प्रतीक होता है। भगवान शिव ब्रह्मस्वरूप और निष्कल (निराकार) हैं इसलिए उन्हीं की पूजा में निष्कल लिंग का उपयोग होता है। संपूर्ण वेदों का भी यही मत है।

1. 
शिवलिंग की पूजा कभी जलधारी के सामने से नहीं करनी चाहिए।

2. 
शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जलाधारी को लांघा नहीं जाता।

3. 
शिवलिंग पर हल्दी या मेहंदी न चढ़ाएं, क्योंकि यह देवी पूजन की सामग्री है।

4. 
शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए।

5. 
शिवलिंग पर कभी तांबे के बर्तन से दूध नहीं चढ़ाना चाहिए।

6. 
शिवलिंग की पूजा करते समय मुंह दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए।

7. 
पूजा करते समय शिवलिंग के ऊपरी हिस्से को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

Saturday, December 23, 2017

आपके साथ है या नहीं भगवान श्रीकृष्ण, इन 4 तरीकों से लगा सकते हैं पता

कहा जाता है कि हमें हर पल भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए। मनुष्य को सदैव अपना मन देव भक्ति में लगाए रखना चाहिए, लेकिन कई बार अनजाने में ही सही पर हम कुछ ऐसे काम भी कर जाते है, जिनसे भगवान हमसे नाराज हो जाते है और हमारा साथ छोड़ देते है। महाभारत के उद्योगपर्व में ऐसी चार बातों के बारे में बताया गया हैं, जिनका पालन करने पर भगवान प्रसन्न होते है और हम पर उनकी कृपा बनी रहती है।

श्लोक-
यतः सत्यं यतो धर्मो, यर्तो ह्रीरार्जवं यतः।
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः।।
पहला और दूसरा गुण है सत्यता और धर्म-
श्रीकृष्ण के प्रिय थे सत्य और धर्म के प्रतीक युधिष्ठिर
युधिष्ठिर के सत्यवादी होने की बात सभी जानते हैं। युधिष्ठिर स्वयं भगवान धर्मराज के पुत्र थे, इसलिए वे भी धर्म के ही प्रतीक थे। युधिष्ठिर ने पूरे जीवन में धर्म का पालन किया, चाहे फिर उसकी वजह से उन्हें दुख ही क्यों ना झेलना पड़े हो। हमेशा सच बोलने और धर्म का पालन करने की वजह से ही श्रीकृष्ण ने हर परिस्थिति में युधिष्ठिर का साथ दिया। इसलिए कहा जाता है, जो मनुष्य हमेशा सच बोलता है और किसी भी स्थिति में अपने धर्म का त्याग नहीं करता है, उस पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है।

तीसरा गुण है लज्जा (शर्म)-

16 हजार राजकुमारियों की लज्जा देख श्रीकृष्ण ने कर लिया था उनसे विवाह
पुराणों के अनुसार नरकासुर नाम के राक्षस ने 16 हजार राजकुमारियों का अपहरण करके, उन्हें बंदी बना कर रखा था। श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके सभी राजकुमारियों को उसकी कैद से आजाद किया था। जब श्रीकृष्ण ने उन राजकुमारियों के चेहरे पर लज्जा और श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण का भाव देखा तो श्रीकृष्ण ने उन सभी राजकुमारियों को अपनी पत्नियों के रूप में स्वीकार कर, उनसे विवाह कर लिया था। जो भक्त अपने मन में लज्जा का भाव रखता है और सच्चे मन से भगवान की भक्ति करता है, भगवान ऐसे भक्त का साथ हर हाल में देते है।

चौथा गुण है सरलता-

सरलता ही खासियत थी श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा की
भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती एक मिसाल मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा की सबसे बड़ी खासियत उनकी सरलता ही थी। सुदामा के इसी गुण की वजह से वह श्रीकृष्ण को प्रिय थे। जिस मनुष्य के मन में छल-कपट न हो, जिसका मन साफ हो और जो दूसरों का बुरा कभी न चाहे, ऐसे सरल स्वभाव वाले लोगों से भगवान हमेशा प्रसन्न रहते है।

चौथा गुण है सरलता-

सरलता ही खासियत थी श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा की
भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती एक मिसाल मानी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र सुदामा की सबसे बड़ी खासियत उनकी सरलता ही थी। सुदामा के इसी गुण की वजह से वह श्रीकृष्ण को प्रिय थे। जिस मनुष्य के मन में छल-कपट न हो, जिसका मन साफ हो और जो दूसरों का बुरा कभी न चाहे, ऐसे सरल स्वभाव वाले लोगों से भगवान हमेशा प्रसन्न रहते है।
https://religion.bhaskar.com/news/JM-JKR-DGRA-UTLT-how-to-know-god-is-with-you-or-not-5775237-PHO.html?seq=1