Monday, January 30, 2017

वसंत पंचमी

माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर विशेष रूप से ज्ञान की देवी माता सरस्वती की पूजा की जाती है। इस पर्व को मनाने के पीछे कई धार्मिक किवंदतियां हैं, उनमें से एक इस प्रकार है-

मान्यता के अनुसार, जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो विशेषकर मनुष्यों की रचना के बाद उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया हुआ है। तब उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थीं। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया।

जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में जैसे चेतना आ गई। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी पर तुम्हारी आराधना की जाएगी। वसंत पंचमी को मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है। इसीलिए इस दिन उनकी आराधना की जाती है।

सरस्वती को भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं।ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन किया गया है। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।

सरस्वती पूजा की संपूर्ण विधि
सरस्वती माता की पूजा करने वाले को सबसे पहले मां सरस्वती की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखकर उनके सामने धूप-दीप और अगरबत्ती जलानी चाहिए।

इसके बाद पूजन आरंभ करनी चाहिए। सबसे पहले अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्घ करें-


"ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥"

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें


ऊं केशवाय नम:

ऊं माधवाय नम:,
ऊं नारायणाय नम:,

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-


ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।

त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें 'चन्‍दनस्‍य महत्‍पुण्‍यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्‍यम् लक्ष्‍मी तिष्‍ठतु सर्वदा।'

बिना संकल्प के की गयी पूजा सफल नहीं होती है इसलिए संकल्प करें। हाथ में तिल, फूल, अक्षत मिठाई और फल लेकर 'यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये|' इस मंत्र को बोलते हुए हाथ में रखी हुई सामग्री मां सरस्वती के सामने रख दें। इसके बाद गणपति जी की पूजा करें।

गणपति पूजन
हाथ में फूल लेकर गणपति का ध्यान करें। मंत्र पढ़ें-


गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

हाथ में अक्षत लेकर गणपति का आवाहन: करें


ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।


इतना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें।

अर्घा में जल लेकर बोलें-


एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं,

पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।

रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं


इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:


दुर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को वस्त्र पहनाएं।

इदं पीत वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:
इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र:

इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें।

इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:।

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें:

इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें:

एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:

इसी प्रकार से नवग्रहों की पूजा करें। गणेश के स्थान पर नवग्रह का नाम लें। 

कलश पूजन
घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली लपेटें।  नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें।

ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:।


अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:।


(अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,


 ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)

इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण और इन्द्र देवता की पूजा करें। 

सरस्वती पूजन 
सबसे पहले माता सरस्वती का ध्यान करें
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।1।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।

इसके बाद सरस्वती देवी की प्रतिष्ठा करें। हाथ में अक्षत लेकर बोलें


ॐ भूर्भुवः स्वः महासरस्वती, इहागच्छ इह तिष्ठ।


इस मंत्र को बोलकर अक्षर छोड़ें। इसके बाद जल लेकर


'एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।


प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं:


ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः,


 हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।


ॐ श्री सरस्वतयै नमः।।


इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।


ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः।


पूजयामि शिवे, भक्तया, सरस्वतयै नमो नमः।।


ॐ सरस्वतयै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।


इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब सरस्वती देवी को इदं पीत वस्त्र समर्पयामि कहकर पीला वस्त्र पहनाएं।

नैवैद्य अर्पण
पूजन के पश्चात देवी को "इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं सरस्वतयै समर्पयामि" मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: "इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि" बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें।


इदं आचमनयं ऊं सरस्वतयै नम:।


इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें:


इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि।


अब एक फूल लेकर सरस्वती देवी पर चढ़ाएं और बोलें:


एष: पुष्पान्जलि ऊं सरस्वतयै नम:।

इसके बाद एक फूल लेकर उसमें चंदन और अक्षत लगाकर किताब कॉपी पर रख दें। 

पूजन के पश्चात् सरस्वती माता के नाम से हवन करें। इसके लिए भूमि को स्वच्छ करके एक हवन कुण्ड बनाएं। आम की अग्नि प्रज्वलित करें। हवन में सर्वप्रथम '
ऊं गं गणपतये नम:' स्वाहा मंत्र से गणेश जी एवं 'ऊं नवग्रह नमः' स्वाहा मंत्र से नवग्रह का हवन करें, तत्पश्चात् सरस्वती माता के मंत्र 'ॐ सरस्वतयै नमः स्वहा' से 108 बार हवन करें। हवन का भभूत माथे पर लगाएं। श्रद्धापूर्वक प्रसाद ग्रहण करें इसके बाद सभी में वितरित करें।

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