हिंदू
मान्यता के अनुसार चार धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। इन्हें तीर्थ भी कहा जाता
है। ये चार धाम चार दिशाओं में स्थित है। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण रामेश्वर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में
द्वारिका। प्राचीन समय से ही चारधाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनकी महिमा का प्रचार
आद्यशंकराचार्यजी ने किया था। माना जाता है, उन्होंने 4 धाम व 12 ज्योर्तिलिंग को सुचीबद्ध किया
था।
क्यों
बनाए गए चार धाम
चारों धाम चार दिशा में स्थित करने के पीछे जो सांंस्कृतिक लक्ष्य था, वह यह कि इनके दर्शन के बहाने भारत के लोग कम से कम पूरे भारत का दर्शन कर सके। वे विविधता और अनेक रंगों से भरी भारतीय संस्कृति से परिचित हों। अपने देश की सभ्यता और परंपराओं को जानें। ध्यान रहे सदियों से लोग आस्था से भरकर इन धामों के दर्शन के लिए जाते रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से आवागमन के साधनों और सुविधा में विकास ने चारधाम यात्रा को सुगम बना दिया है।
चारों धाम चार दिशा में स्थित करने के पीछे जो सांंस्कृतिक लक्ष्य था, वह यह कि इनके दर्शन के बहाने भारत के लोग कम से कम पूरे भारत का दर्शन कर सके। वे विविधता और अनेक रंगों से भरी भारतीय संस्कृति से परिचित हों। अपने देश की सभ्यता और परंपराओं को जानें। ध्यान रहे सदियों से लोग आस्था से भरकर इन धामों के दर्शन के लिए जाते रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से आवागमन के साधनों और सुविधा में विकास ने चारधाम यात्रा को सुगम बना दिया है।
किस
धाम की क्या विशेषता है
बद्रीनाथ धाम-बद्रीनाथ उत्तर दिशा मेंओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बद्रीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहां पर यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहां वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
बद्रीनाथ धाम-बद्रीनाथ उत्तर दिशा मेंओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बद्रीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहां पर यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहां वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
रामेश्वर
धाम-रामेश्वर
में भगवान शिव की पूजा लिंग रूप में की जाती है। यह शिवलिंग बारह द्वादश
ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की
है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है। यह हिंद
महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है।
पुरी
धाम-पुरी
का श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के
तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी
नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से
एक गिना जाता है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। यहां मुख्य
रूप से भात का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
द्वारिका
धाम-द्वारका
भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे पर बसी है। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान
कृष्ण ने इसे बसाया था। कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, गोकुल में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही
किया। यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांडवों को
सहारा दिया। कहते हैं असली द्वारका तो पानी में समा गई, लेकिन कृष्ण की इस भूमि को आज
भी पूज्य माना जाता है। इसलिए द्वारका धाम में श्रीकृष्ण स्वरूप का पूजन किया जाता
है।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-SAS-char-dham-yatra-tradition-news-hindi-5497158-NOR.html
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