1. अहंकार
से बचें
अहंकार जब परिवार में प्रवेश करता है तो फिर वहां परिवार गौण और व्यक्तिवाद हावी हो जाता है।
2. सिर्फ स्वयं का लाभ न देखें
परिवार में केवल स्वयं का लाभ नहीं देखना चाहिए। सभी के विषय में सोचना चाहिए।
3. गलत काम करने से बचें
परिवार को सहेजने के लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि हम क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं और इसका क्या परिणाम भुगतना पड़ सकता है। आप कुछ भी करें, अगर गलत किया है तो कीमत परिवार को भी चुकानी ही पड़ेगी।
रावण के जीवन से समझें इन तीन बातों का असर
अहंकार और क्रोध ने रावण का तो सर्वनाश किया ही, पूरे राक्षस कुल को प्राण देकर रावण के बुरे कर्मों की कीमत चुकानी पड़ी। शक्ति के अभिमान में रावण ने कभी यह नहीं सोचा था कि उसके परिवार का भी विनाश हो जाएगा।
अहंकार जब परिवार में प्रवेश करता है तो फिर वहां परिवार गौण और व्यक्तिवाद हावी हो जाता है।
2. सिर्फ स्वयं का लाभ न देखें
परिवार में केवल स्वयं का लाभ नहीं देखना चाहिए। सभी के विषय में सोचना चाहिए।
3. गलत काम करने से बचें
परिवार को सहेजने के लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि हम क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं और इसका क्या परिणाम भुगतना पड़ सकता है। आप कुछ भी करें, अगर गलत किया है तो कीमत परिवार को भी चुकानी ही पड़ेगी।
रावण के जीवन से समझें इन तीन बातों का असर
अहंकार और क्रोध ने रावण का तो सर्वनाश किया ही, पूरे राक्षस कुल को प्राण देकर रावण के बुरे कर्मों की कीमत चुकानी पड़ी। शक्ति के अभिमान में रावण ने कभी यह नहीं सोचा था कि उसके परिवार का भी विनाश हो जाएगा।
राक्षस कुल के अधिकतर सदस्य
रावण की चाटुकारिता में थे, कुछ
उससे डरते थे और जो निडर होकर सत्य बोलते थे, उनकी सुनी नहीं जाती थी। पूरे परिवार की बागडोर रावण के हाथ
में थी, लेकिन
रावण खुद अपने अहंकार के हाथ की कठपुतली था। उसका अहंकार उससे जो कराता, वो वही करता था।
परिणाम हमारे सामने है। अगर
रावण ने एक पल के लिए भी यह सोचा होता कि उसके कर्मों का परिवार पर क्या प्रभाव
पड़ सकता है तो शायद वो इतनी बड़ी चूक करने से बच जाता। सिर्फ अहंकार के कारण उसे
अपने कर्मों में परिवार के अच्छे-बुरे का ध्यान नहीं रहा।
हमेशा याद रखना चाहिए कि आपके
हर एक कर्म से एक महीन डोर परिवार के साथ बंधी है। हमारा कर्म जिस दिशा में होगा, परिवार भी उसी दिशा में खिंचा
जाएगा।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-SEHE-3-tips-for-happy-family-from-shriram-charit-manas-4904237-NOR.html
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