संस्कार की नींव अर्थात अनुशासन । प्रत्येक कृति के लिए यदि अनुशासन, नियम नहीं बनाए, तो वह कृति अपूर्ण होती है । प्रात: उठने से लेकर रात्री सोने तक अनुशासन का अचूकता से पालन करें, तो अध्यात्म में शीघ्र प्रगति होती है । उसके लिए बाल्यावस्था में ही अनुशासन का संस्कार बालमन पर अंकित करना चाहिए ।
बच्चों को
स्वावलंबी बनाना
बाल्यावस्था से ही बच्चोंको योग्य शिक्षा दें । नींद से जागने पर अपने ओढावन की तह करना सिखाएं । आरंभ में ठीक से नहीं होगी; परंतु धीरे-धीरे बच्चा जैसे बडा होगा, वैसे व्यवस्थितता उसमें आए बिना नहीं रहेगी ।
प्रातःकालीन क्रिया समाप्त होनेपर विद्यालय का अभ्यास, विद्यालय की तैयारी उन्हें ही करने की सीख दें । अभ्यास की पुस्तकें,बहियां ठीक से योग्य स्थानपर रखना सिखाएं । विद्यालय अथवा बाहर से आने पर जूते-चप्पल,
बस्ता इत्यादि निश्चित स्थान पर ही रखना सिखाएं ।
उसी प्रकार हाथ पैर स्वच्छ धोने के पश्चात कपडे बदलकर
उनकी ठीक से तह बनाकर रखना सिखाएं । कपडे के बटन अथवा हुक टूटा
हो अथवा कपडे थोडे से उधड गए हों तो उन्हें ही सीना सिखाएं । अपना कार्य स्वयं करने में बच्चों को भी आनंद होता है । आयु के अनुसार स्वयं के कपडे धोना भी सिखाएं ।
सबेरे-सायं का नाश्ता होने के उपरांत प्याला तथा थाली धोना सिखाएं ।
संक्षेप में,
बच्चों को स्वावलंबी बनाएं । उसमें लडका-लडकी ऐसा भेदभाव न हो । प्रत्येक बात की शिक्षा दें,
तो बच्चा घर में हो अथवा अन्य स्थान पर,
वह अच्छा व्यवहार ही करेगा ।
व्यसमय-समय पर प्रार्थना तथा कृतज्ञता क्त करना सिखाना
प्रात: सोकर उठने के पश्चात बच्चों को बिस्तर में ही प्रार्थना करना
तथा ईश्वर ने आज का दिन दिखाया इस हेतु कृतज्ञता व्यक्त करना सिखाएं । मुंह धोने के उपरांत भगवान को नमस्कार करने के लिए कहें । कुछ भी खाने से पूर्व उनसे प्रार्थना करवाएं । उसी प्रकार प्रत्येक बात
ईश्वर की कृपा से ही हुई है, यह उनके मनपर अंकित करें ।
जल्दी
सोना एवं जल्दी उठना
बाल्यावस्था से ही बच्चों को जल्दी उठना सिखाएं । अनेक घरों में यह देखा जाता है कि बच्चे पढाई हेतु रात्रि में जागते हैं एवं सबेरे ८-९ बजे उठते हैं । इसके विपरीत रात्रि में जल्दी सोकर प्रात:काल अभ्यास करने से वह अधिक अच्छे से ध्यान में रहता है । कहा जाता है कि, रात्रि में शीघ्र सोना एवं
प्रातः शीघ्र उठनेवाले को स्वास्थ्य तथा धन संपत्ति का लाभ होता है । ‘पूर्वकाल में ऋषिमुनि
ब्राह्ममुहूर्त पर उठकर वेदपठन करते थे । रात्रिमें रज-तमकी प्रबलता होती है । इसके विपरीत प्रात:काल सात्त्विकता होने से उसका अभ्यास पर अच्छा परिणाम होता है ।
प्रत्येक
बात समय
पर करना सिखाएं
छोटे बच्चे बडों की कृति से ही सीखते हैं; इसलिए बडों को ही अपना आचरण, बोलना, अन्यों का सम्मान करना, इत्यादि करना चाहिए । उसी प्रकार प्रत्येक बात समयपर
करें । ‘पश्चात करेंगे’
कहने से, पुन: वह बात नहीं होती । उसके लिए शरीर की अपेक्षा मन को ही अनुशासन में रखना होगा । अनेकों के घरमें अलमारी तथा रैकमें कपडे ठूंसे हुए अथवा अस्तव्यस्त टंगे होते हैं । उसी प्रकार घर भी अव्यवस्थित होता है । ऐसे में घरमें अचानक कोई आ
जाए, तो धांदली होती है । एक बार हाथ को अभ्यास हो जाए, तो मन को भी उसे ठीक किए बिना शांति नहीं मिलती । घर स्वच्छ तथा ठीकठाक रखने का आलस्य न हो । आलस्य
यह हमारा प्रथम क्रमांक का शत्रु है,
यह बात बच्चों के मन पर अंकित करें ।
बच्चों के
अति लाड करना टालें
आजकल घर में एक-दो ही बच्चे होने से उनकी पसंद-नापसंदका बहुत ध्यान रखा जाता है । भोजन, कपडे सभी बातों में ‘बच्चे जो कहें वही पूरब दिशा’, ऐसा दिखाई देता है । बाल्यावस्था से ही उनकी बात सुनते रहें, तो आगे चलकर वे अपनी बात नहीं मानते । इस कारण उनके अत्यधिक लाड न करें ।
बच्चों के
समक्ष स्वयं
का आदर्श रखें !
घर को ‘सत्यं शिवं सुंदरम्’ बनाना हो,
तो अनुशासन,आज्ञापालन, बडों का आदर करना, इत्यादि करना चाहिए । बडों द्वारा ऐसा आदर्श निर्माण
करना चाहिए कि हमारी रीत, अनुशासन देखकर हमारे बच्चे भी उसका अनुकरण करें । ऐसा हुआ, तो आदर्श परिवार बनने में समय नहीं लगेगा ।
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